Friday, January 24, 2020

भारत की भूगर्भिक संरचना (1)

पृथ्वी पर स्थित किसी भी भाग की भूगर्भिक संरचना से हमें कई तथ्यों की जानकारी प्राप्त होती है। क्योंकि शैलों या चट्टानों की संरचना का मृदाओं और खनिज संसाधनों पर प्रत्यक्ष प्रभाव पड़ता है। किसी देश की कृषि और उद्योग भी शैलों की संरचना पर आधारित होते हैं। उदाहरण के लिए तलछटों के जमाव से निर्मित अवसादी शैलोें का अपरदन कर जब नदियाँ किसी मैदानी भाग का निर्माण करती हैं तो ऐसी भूमि कृषि के लिए अत्यन्त उपयोगी होती है। जबकि कठाेर प्राचीन शैलों,जिनमें जीवावशेष नहीं पाए जाते,से निर्मित मृदा कृषि के लिए अनुपयोगी होती है।
अवसादी शैलों में पेट्रोलियम के अतिरिक्त कोई खनिज नहीं पाया जाता। जबकि आग्नेय और रूपान्तरित शैलों में उपयोगी और मूल्यवान खनिज प्राप्त होते हैं। कार्बानिफेरस युग में भूगर्भ में दबे वनों से निर्मित शैलों में कोयला प्राप्त होता है। सागरों में होने वाले जमावों से निर्मित शैलों में खनिज तेल प्राप्त होने की सम्भाव्यता अधिक होती है।
भूगर्भिक संरचना का अध्ययन मानव इतिहास के समान विभिन्न कालों में किया जाता है। जिस तरह मानव इतिहास को पाषाण युग,लौह युग,ताम्र युग इत्यादि युगों के आधार पर अध्ययन किया जाता है उसी तरह पृथ्वी का वर्तमान स्वरूप भी करोड़ों वर्षाें के दाैरान विभिन्न् अवस्थाओं से गुजरते हुए बना है। पृथ्वी की उत्पत्ति के पश्चात इसके भू–गर्भ की रचना एक लम्बे कालक्रम में हुई। इसका इतिहास करोड़ों वर्ष पुराना है जिसे कल्प,युग और शक या काल में बाँटा जाता है। तो अब हम भारत की भूगर्भिक संरचना के बारे में विस्तार से जानेंगे। लेकिन उससे पहले पृथ्वी के भूगर्भिक इतिहास के कालक्रम के बारे में जान लेते हैं। इससे भारत की भूगर्भिक संरचना को समझने में आसानी रहेगी।

कल्प (Era)
युग (Epoch)
शक (Period)
अवधि वर्ष
प्रांरभ होने का समय
(वर्ष पहले)
1.(a) आर्कियन
(Archaean)

आर्कियन
(Archaean)
1.(b) प्रीपैलियोजोइक
(Pre-Palaeozoic)

प्रीकैम्ब्रियन
(Pre-Cambrian)
2. पैलियाजोइक
(Palaeozoic)
प्राथमिक युग
(Primary)
1.कैम्ब्रियन
(Cambrian)
10,00,00,000
60,00,00,000

2. आर्डोविसियन
(Ordovician)
6,00,00,000
50,00,00,000

3. सिल्यूरियन
(Silurian)
4,00,00,000
44,00,00,000

4. डेवोनियन
(Devonian)
5,00,00,000
40,00,00,000

5. कार्बानिफेरस
(Carboniferous)
8,00,00,000
35,00,00,000

6. पर्मियन
(Permian)
4,50,00,000
27,00,00,000
3. मेसोजोइक
(Mesozoic)
दि्वतीयक युग
(Secondary)
1. ट्रियासिक
(Triassic)
4,50,00,000
22,50,00,000


2. जुरैसिक
(Jurassic)
4,50,00,000
18,00,00,000


3. क्रीटैसियस
(Cretaceous)
6,50,00,000
13,50,00,000
4. सेनोजोइक
(Cenozoic)
तृतीयक युग
(Tertiary)
1. इयोसीन
(Eocene)
3,00,00,000
7,00,00,000

2. मायोसीन
(Miocene)
1,50,00,000
4,00,00,000

3. ओलिगोसीन
(Oligocene)
1,40,00,000
2,50,00,000


4. प्लायोसीन
(Pliocene)
1,00,00,000
1,10,00,000
5. नियोजोइक⁄नूतन
(Neozoic)
चतुर्थक युग
(Quaternary)
1. प्लीस्टोसीन
(Pleistocene)
(अभिनूतन)
9,90,000
10,00,000

2. होलोसीन
(Holocene)
वर्तमान
10,000

भूगर्भविज्ञानियों के अनुसार भारत के भूगर्भ में आर्कियन और प्री–कैम्ब्रियन युग की प्राचीनतम शैलों से लेकर क्वाटरनरी युग की नवीनतम शैलें पायी जाती हैं। भूवैज्ञानिक विशेषताओं के आधार पर भारत को तीन वृहद भागों में बाँटा जा सकता है–
1. प्रायद्वीपीय भारत,जो प्राचीनतम शैलों से निर्मित गोण्डवानालैण्ड का अंग है और भारत का सर्वाधिक प्राचीन भूभाग है।
2. हिमालय तथा नवीन वलित पर्वत श्रेणियाँ,जो सागरों में निक्षेपित नवीन अवसादी शैलों से निर्मित हैं और प्रायद्वीपीय भारत के निर्माण के पश्चात बनीं।
3. उक्त दोनों भूखण्डों के निर्माण के पश्चात अस्तित्व में आया सिन्धु–गंगा–ब्रहमपुत्र का मैदान,जो उक्त दोनों भागों के अपरदन से प्राप्त पदार्थाें के निक्षेपण से बना एक नवीन,नीरस मैदानी भूभाग है।

भारत की भूगर्भिक संरचना का वर्गीकरण

भूगर्भ का निर्माण चट्टानों या शैलों से हुआ है। शैलें मूलतः दो प्रकार की होती हैं– एक तो आरंभिक शैलें हैं जिनका निर्माण पृथ्वी की आन्तरिक शक्तियों के कारण हुआ तथा दूसरी वे चट्टानें हैं जिनका निर्माण इन आरंभिक शैलों के रूपान्तरण अथवा इनके अपरदन से प्राप्त मलबा के अवसादों के रूप में जमने से होता है। भारत में ये सभी प्रकार की शैलें पायी जाती हैं। ऐतहिसिक कालक्रम के आधार पर भारत की शैलों को निम्नवत वर्गीकृत किया जा सकता है–
A. अति प्राचीन या प्री–कैम्ब्रियन कल्प की शैलें
B. पुराण कल्प की शैलें
C. द्रविड़ कल्प की शैलें
D. आर्यन कल्प की शैलें

अति प्राचीन या प्री–कैम्ब्रियन कल्प की शैलें
इसे आर्कियन कल्प भी कहा जाता है। यह भूगर्भिक समय मापन का सर्वाधिक प्राचीन खण्ड है जो पृथ्वी के निर्माण (4.6 अरब वर्ष पूर्व) से लेकर पैलियोजोइक कल्प (57 करोड़ वर्ष पूर्व) के कैम्ब्रियन काल के प्रारम्भ तक माना जाता है। पृथ्वी के इतिहास का लगभग 86.7 प्रतिशत भाग इसी काल का माना जाता है। विश्व के समस्त प्राचीन पठारों और वलित पर्वतों का गर्भ भाग इन्हीं शैलों का बना हुआ है। इस युग की शैलों को दो समूहों में बाँटा जाता है–
(1) आर्कियन समूह की शैलें– ये सर्वाधिक प्राचीन शैलें हैं। इनका निर्माण तब हुआ जब पृथ्‍वी सर्वप्रथम अपने निर्माण के बाद ठण्डी हुई। इस तरह ये चट्टानें पृथ्वी पर किसी भी प्रकार के जीवन की उत्पत्ति से पूर्व की चट्टानें हैं। इन पृथ्वी के भीतर की शक्तियों के प्रभाव के कारण इन शैलों का इतना अधिक रूपान्तरण हुआ है कि ये अपने मौलिक स्वरूप को खो चुकी हैं। वर्तमान में ये रवेदार–कायान्तरित रूप में पाई जाती हैं। ये ग्रेनाइट,नीस और शिष्ट प्रकार की शैलें हैं जो आधारभूत शैलों के रूप में पायी जाती हैं। इनमें जीवाश्मों का अभाव है। इन शैलों का ही क्षरण होने से बाद की शैलों का निर्माण हुआ। इन शैलों का विस्तार प्रायद्वीपीय पठार के दो–तिहाई भाग पर पाया जाता है। इन शैलों का विस्तार तीन मुख्य समूहों में पाया जाता है–
(i) बंगाल नीस– इस प्रकार की शैलों का विस्तार भारत के पूर्वी घाट,उड़ीसा के पूर्वी घाट और बोलांगिर जिलों,झारखण्ड के मानभूम और हजारीबाग जिलों,आन्ध्र प्रदेश के नेल्लौर तथा तमिलनाडु और कर्नाटक के अधिकांश भागों में इस शैल का विस्तार पाया जाता है।
(ii) बुंदेलखण्ड नीस– इस शैल का विस्तार प्रायद्वीप के उत्तरी सिरे पर उत्तर प्रदेश के बुंदेलखण्ड,मध्य प्रदेश के बघेलखण्ड और राजस्थान के कुछ भागों में पाया जाता है।
(iii) नीलगिरि नीस– नीलगिरि नीस शैल नीले भूरे से लेकर गहरे रंगों की होती है। इस चट्टान का विस्तार पश्चिमी घाट की नीलगिरि पहाड़ियों के क्षेत्र में,तमिलनाडु के दक्षिण अर्काट,पलनी पहाड़ियों,शेवरॉय पहाड़ियों,आन्ध्र प्रदेश के नेल्लौर,उड़ीसा के बालासोर,कर्नाटक,केरल,झारखण्ड,छत्तीसगढ़ तथा अरावली (राजस्थान) में पाया जाता है। इसे चारनोकॉइट सीरीज  के नाम से भी जाना जाता है।
उपर्युक्त शैल समूहों का नामकरण उन स्थानों के नाम पर किया गया है जहाँ ये विशेष रूप से पाई जाती हैं। ये चट्टानें भारत के खनिज भण्डार के रूप में जानी जाती हैं। इन शैलों में लोहा,तांबा,मैंग्नीज,अभ्रक,डोलाेमाइट,शीश,जस्ता,चाँदी और सोना जैसे खनिज प्रचुरता से पाए जाते हैं।

(2) धारवाड़ समूह की शैलें– इस भूगर्भिक काल का विस्तार 250 करोड़ वर्ष पूर्व से लेकर 180 करोड़ वर्ष पूर्व तक था। यह भारत की  प्रथम रूपान्तरित चट्टानें हैं जो भारतीय भूगर्भिक कालक्रम में धारवाड़ समूह के नाम से जानी जाती हैं। भारत में इनका प्रथम अध्ययन कर्नाटक के धारवाड़ जिले में किया गया था। ऐसा माना जाता है कि आर्कियन युग में भूपटल के सिकुड़ने से आरम्भिक पर्वतों का निर्माण हुआ। ये पर्वत नीस और शिष्ट शैलों से बने थे। कालान्तर में इन शैलों का अपरदन हुआ और उस पदार्थ के निक्षेपण से प्राचीनतम अवसादी शैलों का निर्माण हुआ। इन्हीं शैलों को धारवाड समूह कहा जाता है। इन शैलों में भी जीवाश्म का अभाव पाया जाता है क्योंकि इस समय तक पृथ्वी पर जीवन का आविर्भाव नहीं हुआ था। इस तरह धारवाड़ समूह में आग्नेय और अवसादी दोनों ही प्रकार की शैलें पाई जाती हैं। धारवाड़ युग में ही अरावली श्रेणी का निर्माण प्राचीनतम वलित पर्वतों के रूप में हुआ। बाद में अनाच्छादन के कारण ये समतल हो गयीं। ये संसार के सबसे पुराने मोड़दार पर्वत हैं।

धारवाड़ समूह की शैलें तीन बिखरे हुए क्षेत्रों में पाई जाती हैं–
(i) कर्नाटक के धारवाड़,बेल्लारी और शिमोगा जिलों में जहाँ से इनका विस्तार तमिलनाडु के नीलगिरि और मदुरई जिलों तक हुआ है।
(ii) छोटा नागपुर पठार के मध्य और पूर्वी हिस्सों,मेघालय पठार तथा मिकिर पहाड़ियों में।
(iii) दिल्ली के पास अरावली की रियोलो श्रेणी में अलवर के दक्षिण तक।
प्रायद्वीपीय क्षेत्र के बाहर भी ये शैलें पश्चिमी हिमालय क्षेत्र में लद्दाख,जास्कर,कुमाऊँ और गढ़वाल में पायी जाती हैं–
(i) हिमाचल प्रदेश में स्पीति घाटी के निकट वैक्रता श्रेणी  के रूप में।
(ii) कश्मीर में सेलखाला श्रेणी  के नाम से।
(iii) असम के पठारी भाग में शिलांग श्रेणी  के नाम से।
प्रायद्वीपीय भाग की धारवाड़ शैलाें में अत्यधिक रूपान्तरण हुआ है। इनमें खनिज पदार्थ अधिक मात्रा में पाए जाते हैं। ये चट्टानें आर्थिक दृष्टि से सर्वाधिक महत्वपूर्ण शैलें हैं। देश की लगभग सभी प्रमुख धातुएँ जैसे सोना,मैंग्नीज,ताँबा,लोहा,टंग्स्टन,क्रोमियम,जस्ता इत्यादि इन्हीं चट्टानों से मिलते हैं। फ्लोराइट,इल्मैनाइट,सुरमा,सीसा,वुल्फ्राम,अभ्रक,कोबाल्ट,एस्बेस्टस,गार्नेट,संगमरमर,कोरडम आदि खनिज भी इन्हीं चट्टानों से प्राप्त होते हैं।

धारवाड़ शैल समूह की महत्वपूर्ण श्रेणियाँ इस प्रकार हैं–
(i) चैम्पियन श्रेणी– धारवाड़ समूह की इस श्रेणी का नामकरण कोलार स्वर्ण क्षेत्र के चैम्पियन शैल भित्ति के नाम पर हुआ है। यह श्रेणी मैसूर के उत्तर–पूर्व तथा बंगलौर के पूर्व में स्थित है और कोलार व रायचूर जिलों तक विस्तृत है। यहाँ विश्व की सर्वाधिक गहरी सोने की खानें मिलती हैं जो 3.5 किलोमीटर तक गहरी हैं। यहाँ प्रति टन स्वर्ण अयस्क में लगभग 5.5 ग्राम सोना पाया जाता है।
(ii) चम्पानेर श्रेणी– यह वड़ोदरा के आस–पास अरावली श्रेणी के बाहरी क्षेत्रों में स्थित है। इसमें क्वार्ट्ज,फाइलाइट,स्लेट तथा संगमरमर प्राप्त होता है। इसी श्रेणी से हरे रंग का संगमरमर प्राप्त होता है।
(iii) क्लोजपेट श्रेणी– यह श्रेणी मध्य प्रदेश के बालाघाट और छिंदवाड़ा जिलों में फैली है। यहाँ क्वार्ट्ज,ताँबा और मैग्नीफेरस की चट्टानें पायी जाती हैं।
(iv) लौह अयस्क श्रेणी– इस श्रेणी का विस्तार सिंघभूमि,मयूरभंज और केंवझर में मिलता है। यहाँ भारी मात्रा में लौह–अयस्क के भण्डार है।
(v) रीयालो श्रेणी– इस श्रेणी का विस्तार दिल्ली (मजनू का टीला) से लेकर अलवर तक उत्तर–पूर्व से दक्षिण–पश्चिम की ओर पाया जाता है। यहाँ संगमरमर प्रचुर मात्रा में पाया जाता है। मकराना और भगवानपुर के उच्च कोटि के संगमरमर इसी श्रेणी में पाए जाते हैं। इसे दिल्ली श्रेणी के नाम से भी जाना जाता है।
(vi) चिल्पी श्रेणी– मध्य प्रदेश के बालाघाट और छिंदवाड़ा जिलों में विस्तृत इस श्रेणी में ग्रीट,फाइलाइट,क्वार्ट्ज,मैग्नीफेरस और हरे पत्थर की खानें पाई जाती हैं।
(vii) सकोली श्रेणी– यहश्रेणी मध्य प्रदेश के रीवां और जबलपुर जिलों में मिलती है। इस श्रेणी में अभ्रक,डोलोमाइट,शिष्ट और संगमरमर प्रचुरता से पाए जाते हैं। इस श्रेणी का संगमरमर अत्यन्त उच्च कोटि का होता है।
(viii) खोण्डोलाइट श्रेणी– यह श्रेणी पूर्वी घाट के उत्तरी सीमांत क्षेत्र से कृष्णा नदी की घाटी तक एक बड़े भाग में विस्तृत है। यहाँ खोण्डोलाइट,कोडुराइट,चर्नाेकाइट और नाइस श्रेणी की चट्टानें मिलती हैं।





मानचित्र के संकेतक–
1. क्वाटरनरी युग के निक्षेप
2. शिवालिक क्रम की शैलें
3. निचली और मध्य मायोसीन शैलें
4. पैलियोजोइक शैलें
5. टर्शियरी युग की शैलें
6. राजमहल एवं दक्कन लावा
7. मेसोजोइक शैलें
8. मेसोजोइक एवं पैलियोजोइक शैलें
9. गोण्डवाना एवं ऊपरी पैलियोजोइक शैलें
10. पुराण एवं निचली पैलियोजोइक शैलें
11. विन्ध्यन एवं कुडप्पा शैलें
12. मलावी ज्वालामुखी
13. ग्रेनाइट शैलें
14. धारवाड़ क्रम
15. अवर्गीकृत रवेदार शैलें
16. चारनोकाइट शैलें


अन्य सम्बन्धित विवरण–

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