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Friday, November 22, 2019

उत्तरी पर्वतीय भाग (3)

हिमालय के मोड़– पश्चिम में सिन्धु नदी और पूर्व में ब्रह्मपुत्र नदी,हिमालय को आर–पार काट कर प्रवाहित होती हैं। इन्हीं स्थानों के पास पश्चिम में नंगा पर्वत और पूर्व में नामचा बरवा शिखर स्थित हैं। इन्हें ही हिमालय की सीमा माना जाता है। इन दोनों ही स्थलों पर हिमालय पर्वत श्रृंखला में तीव्र मोड़ पाये जाते हैं। पश्चिम में हिमालय की सामान्य दिशा उत्तर–पश्चिम है जो एकाएक मुड़ कर दक्षिण–पश्चिम हो जाती है। यहाँ ये सुलेमान व किरथर श्रेणी के रूप में जाने जाते हैं। पूर्व में हिमालय की दिशा उत्तर–पूर्व है जो एकाएक मुड़कर दक्षिण हो जाती है जिसे अराकानयोमा के नाम से जाना जाता है। नामचा बरवा के आगे इन्हें कई नामों यथा पटकोई,नागा,मणिपुर,लुशाई,अराकान इत्यादि नामों से जाना जाता है।

हिमालय के हिमनद– आर्द्रता की मात्रा में अन्तर के अनुसार हिमालय में हिमरेखा (snowline) अलग–अलग ऊँचाई पर पायी जाती हैं। हिमरेखा वह सीमा रेखा हाेती है जिसके ऊपर स्थायी रूप से बर्फ जमी रहती है अथवा इससे अधिक ऊँचाई के क्षेत्र वर्ष पर हिमाच्छादित (snow capped) रहते हैं। असम हिमालय में अधिक आर्द्रता के कारण हिमरेखा 4420 मीटर की ऊँचाई तक पायी जाती है जबकि कश्मीर हिमालय में शुष्कता के कारण यह 6000 मीटर की ऊँचाई पर पायी जाती है अर्थात अधिक ऊँचाई पर चली जाती है। इसी तरह नेपाल हिमालय में 4500 मीटर पर तथा कुमायूँ व पंजाब हिमालय (हिमाचल प्रदेश) में 5200 मीटर पर स्थायी हिमरेखा पायी जाती है। इस तरह ध्यान दें तो पता चलता है कि पश्चिम से पूर्व की ओर हिमरेखा की ऊँचाई क्रमशः घटती जाती है। हिमरेखा की स्थिति सूर्य के तापमान और ढाल की तीव्रता से भी प्रभावित होती है। हिमालय के दक्षिणी ढालों पर अधिक धूप पड़ती है। साथ ही अधिक वर्षा के कारण अपरदन भी अधिक होता है जिस कारण तीव्र ढाल पाये जाते हैं। उपर्युक्त दोनों कारणों से हिमरेखा ऊपर चली जाती है जबकि उत्तरी ढालों पर इसके विपरीत कारकों की वजह से हिमरेखा काफी नीचे तक चली आती है।

पर्वतीय ढलानों पर जब बर्फ का भार अत्यधिक हो जाता है तो वह नीचे की ओर सरकने लगती है। इस तरह हिमनद  या हिमनदियों  (Glacier) की उत्पत्ति होती है। ये हिमनदियाँ ही पिघल कर जीवनदायिनी नदियों को जन्म देती हैं। हिमालय के दक्षिणी ढाल तीव्र हैं तो हिमनदियाँ काफी नीचे तक उतर आती हैं जबकि उत्तरी ढालों पर ये ऊपर ही रह जाती हैं। दक्षिणी ढालों पर 2360 मीटर तक की ऊँचाई पर भी हिमनदियाँ प्रवाहित होती हैं लेकिन तिब्बती ढलानों पर स्थायी हिम की प्रधानता है। हिमनदियों के आकार और गति में भी विभिन्नता पायी जाती है। अधिकांश हिमनदियाँ 4 से 5 किलोमीटर लम्बी और 1.5 से 4 किलोमीटर तक चौड़ी होती हैं। इनकी गति 8-10 सेमी से 30 सेमी प्रतिदिन तक होती हैं। महान हिमालय और काराकोरम श्रेणी में विश्व की कुछ विशालतम हिमनद पाये जाते हैं। लघु हिमालय में अपेक्षाकृत छोटे हिमनद पाये जाते हैं। हिमालय के पश्चिमी छोर से लेकर पूर्वी छोर तक लगभग 15000 हिमनद पाये जाते हैं। काराकोरम श्रेणी में विश्व के कुछ प्रसिद्ध हिमनद पाये जाते हैं जो ध्रुवीय क्षेत्रों के बाहर सबसे बड़े हिमनद हैं। काराकोरम श्रेणी की नुब्रा घाटी में सियाचिन हिमनद 75 किलोमीटर लम्बा है। यह ध्रुवीय क्षेत्रों के बाहर विश्व का दूसरा बड़ा हिमनद है। इसके अतिरिक्त इसी श्रेणी में सासाइनी 68 किलोमीटर लम्बा हिमनद है। हिसपार 50 किलाेमीटर लम्बा हिमनद है जो हुंजा घाटी में गिरता है। बियाफो 60 किलोमीटर और बाल्टोरा 58 किलोमीटर लम्बे हिमनद हैं जो सिन्धु की सहायक शिगार में गिरते हैं। चोगोलुंगमा शिगार में तथा रीया ऊपरी श्योक में गिरते हैं।
वृहत हिमालय या महान हिमालय में भी हिमनदों ने अत्यधिक अपरदन किया है। चोगोलुंग्मा 50 किलाेमीटर लम्बा हिमनद है जो 2070 मीटर की ऊँचाई तक चला आता है। कुमायूँ हिमालय में मिलाम तथा सिक्किम में जेमू हिमनद 20 किलोमीटर से अधिक लम्बे हैं। पीर पंजाल श्रेणी में सबसे बड़ा हिमनद सोनापानी है जो लाहौल और स्पीति की चंद्रा घाटी में पाया जाता है। इसकी लम्बाई 15 किलोमीटर है तथा यह रोहतांग दर्रे के पास 4000 मीटर की ऊँचाई पर स्थित है।


हिमालय के दर्रे–  हिमालय की दुर्गम श्रेणियों को दर्राें की सहायता से कई स्थानों पर पार किया जा सकता है। हिमालय के अधिकांश दर्राें की ऊँचाई 4000 मीटर से लेकर 5500 मीटर तक है। ऊँचे दर्राें के कारण भारत और मध्य एशिया के बीच हिमालय पर्वत व्यावसायिक और सामाजिक अवरोध बने रहे। इसी कारण भारत पर जितने भी बाहरी आक्रमण हुए वे उत्तर के दर्राें से न होकर उत्तर–पश्चिम में स्थित खैबर (1027 मीटर),बोलन (1790 मीटर),गोमल,मकरान,टोची और कुर्रम आदि दर्राें से हुए। ये सभी दर्रे अब पाकिस्तान में हैं। हिमालय के दर्राें में जम्मू और कश्मीर में बनिहाल,बारालाचा,बुर्जिल,चांग ला,जोजीला,पेंजी ला,पीर पंजाल,कारा ताघ,थांग ला,खारदुंग ला,आफिल,इमिस ला,खुंजेराब,लनक ला,हिमाचल प्रदेश में वेब्सा,रोहतांग,शिपकी ला,उत्तराखण्ड में लिपुलेख,नीति,माणा,मंगशा धुरा,मुलिंग ला,ट्रेल पास,नीति,सिक्किम में नाथूला,जेलेप्ला,अरूणाचल प्रदेश में पंगसान,लिखापानी,बोमडी ला
,डिफू, प्रमुख हैं।

जम्मू–कश्मीर के दर्रे–
बनिहाल दर्रा– यह दर्रा समुद्रतल से 2832 मीटर की ऊँचाई पर स्थित है और पीर–पंजाल श्रेणी में,श्रीनगर को जम्मू से जोड़ता है। शीत ऋतु में यह बर्फ से ढक जाता है। अतः वर्ष भर यातायात के संचालन के लिए इस दर्रे में जवाहर सुरंग  का निर्माण किया गया। इस सुरंग का उद्घाटन सन 1956 में हुआ था।
बारालाचा– यह दर्रा समुद्रतल से 5045 मीटर की ऊँचाई पर स्थित है। यह मनाली से लेह को जोड़ने वाले राजमार्ग पर पड़ता है। शीत ऋतु अर्थात नवम्बर से मई तक यह बर्फ जम जाने के कारण यातायात के लिए बन्द रहता है।
बुर्जिल दर्रा– 4100 मीटर की ऊँचाई पर स्थित यह दर्रा श्रीनगर को गिलगित–बल्तिस्तान होते हुए काशगर एवं मध्य–एशिया से जोड़ता था। भारत–पाकिस्तान के बीच एल.ओ.सी. के पास स्थित होने के कारण यह अब कम प्रयोग में आता है।
चांग ला– वृहत हिमालय में स्थित यह दर्रा समुद्रतल से 5270 मीटर ऊँचा है। यह लद्दाख को तिब्बत से जोड़ता है। इस दर्रे को पार करने के बाद अत्यन्त तीखी चढ़ाई मिलती है। यह रास्ता तिब्बत के एक शहर तांग्स्ते को जाता है। इस दर्रे का नाम चांग–ला बाबा के नाम पर पड़ा है। शीत ऋतु में यह दर्रा बन्द रहता है।
जोजीला दर्रा– वृहत हिमालय श्रेणी में स्थित यह दर्रा समुद्रतल से 3850 मीटर की ऊँचाई पर स्थित है तथा श्रीनगर काे कारगिल और लेह से जोड़ता है। जोजीला का अर्थ है बर्फीले तूफान का दर्रा। शीतकाल में बर्फबारी के कारण यह दिसम्बर से मई तक बन्द रहता है। इस दर्रे से होकर द्रास और जोजीला नदियाँ प्रवाहित होती हैं। प्रसिद्ध अमरनाथ गुफा जोजीला के दक्षिण में सिन्ध घाटी के ऊपरी भाग में स्थित है।
पेंजी ला– यह दर्रा जोजीला दर्रे के पूर्व में 5000 मीटर की ऊँचाई पर स्थित है। महान हिमालय का यह दर्रा कश्मीर घाटी को लद्दाख से जोड़ता है। यह दर्रा भी शीतकाल में बन्द रहता है।
पीर पंजाल दर्रा– जम्मू को श्रीनगर से जोड़ने वाला यह पारंपरिक दर्रा मुगल रोड पर स्थित है। भारत–पाकिस्तान विभाजन के बाद इसे बन्द कर दिया गया। जम्मू को कश्मीर से जोड़ने वाला यह सबसे सीधा और छोटा मार्ग है। यह 3490 मीटर की ऊँचाई पर स्थित है।
कारा ताघ दर्रा– यह काराकोरम श्रेणी में स्थित है और 6000 मीटर से भी अधिक ऊँचा है। यह दर्रा प्राचीन रेशम मार्ग पर अवस्थित है।
थांगला दर्रा– यह समुद्रतल से 5359 मीटर की ऊँचाई पर यह दर्रा लद्दाख में स्थित है। खारदुंग ला के बाद मोटर वाहन चलने लायक यह भारत का दूसरा सबसे ऊँचा दर्रा है।
खारदुंग ला– यह समुद्र तल से 5603 मीटर ऊँचा दर्रा है। यह देश का ऐसा सबसे ऊँचा दर्रा है जहाँ मोटर वाहन चलाये जा सकते हैं।
आफिल दर्रा– काराकोरम श्रेणी में के–2 शिखर के उत्तर में स्थित यह दर्रा 5000 मीटर की ऊँचाई पर स्थित है। यह दर्रा लद्दाख को चीन के सिन्कियांग से जोड़ता है। यह दर्रा भी शीत ऋतु में बन्द रहता है।
इमिस ला– यह दर्रा अत्यन्त दुरूह भूभाग में 4500 मीटर की ऊँचाई पर स्थित है। यह लद्दाख को तिब्बत से जोड़ता है।

हिमाचल प्रदेश के दर्रे–
देब्सा दर्रा– यह 5270 मीटर की ऊँचाई पर स्थित वृहत हिमालय का एक दर्रा है। यह हिमाचल प्रदेश के कुल्लू और स्पीति जिलों के बीच अवस्थित है। कुल्लू और स्पीति को जोड़ने वाले परंपरागत पिन–पार्वती पास की तुलना में यह आसान और कम दूर का विकल्प है।
रोहतांग दर्रा– यह दर्रा समुद्र तल से 3979 मीटर की ऊँचाई पर स्थित है। यह हिमाचल प्रदेश की कुल्लू,लाहौल और स्पीति घाटियों को जोड़ता है। लेह–मनाली के बीच मुख्य मार्ग होने के कारण इस पर भारी यातायात होता है।
शिपकी ला– यह समुद्रतल से 6000 मीटर से भी अधिक ऊँचाई पर स्थित है। यह सतलज नदी द्वारा बनाये गये गार्ज से होकर गुजरता है और हिमाचल प्रदेश को तिब्बत से जोड़ता है। शीतकाल में यह दर्रा बर्फ से ढका रहता है।

उत्तराखण्ड के दर्रे–
लिपुलेख दर्रा– वृहत हिमालय का यह दर्रा उत्तराखण्ड के पिथौरागढ़ में स्थित यह दर्रा उत्तराखण्ड को तिब्बत से जोड़ता है। कैलाश–मानसरोवर की यात्रा भी इसी दर्रे से होकर की जाती है। अत्यधिक भूस्खलन के कारण यह मार्ग हमेशा क्षतिग्रस्त होता रहता है।
माना दर्रा– महान हिमालय का यह दर्रा समुद्रतल से 5611 मीटर की ऊँचाई पर स्थित है और उत्तराखण्ड को तिब्बत से जोड़ता है। शीतकाल में यह दर्रा यातायात के लिए बन्द रहता है।
मंगशा धुरा दर्रा– समुद्रतल से 5000 मीटर से अधिक ऊँचाई पर स्थित वृहत हिमालय का यह दर्रा उत्तराखण्ड को तिब्बत से जोड़ता है। मानसरोवर यात्रियों को इस दर्रे से भी होकर गुजरना पड़ता है।
मुलिंग ला– गंगोत्री के उत्तर में स्थित वृहत हिमालय का यह दर्रा उत्तराखण्ड को तिब्बत से जोड़ता है।
ट्रेल पास– यह दर्रा उत्तराखण्ड के पिथौरागढ़ और बागेश्वर जिलों में समुद्रतल से 5212 मीटर की ऊँचाई पर स्थित है। पिण्डारी हिमनद की कगार पर स्थित यह दर्रा पिण्डारी घाटी को मिलाम घाटी से जोड़ता है। खड़े ढाल और विषम धरातल के कारण इस दर्रे को पार करना काफी कठिनाई भरा होता है।
नीति दर्रा– यह दर्रा समुद्रतल से 5068 मीटर की ऊँचाई पर स्थित है और उत्तराखण्ड को तिब्बत से जोड़ता है। मानसरोवर और कैलाश यात्रा का मार्ग इस दर्रे से होकर गुजरता है।

पूर्वाेत्तर भारत के दर्रे–
नाथूला दर्रा– यह दर्रा भारत–चीन सीमा पर भारत के सिक्किम प्रान्त में समुद्रतल से 4310 मीटर की ऊँचाई पर स्थित है। प्राचीन रेशम मार्ग इस दर्रे से हाेकर गुजरता था। 1962 के भारत–चीन युद्ध के पश्चात इसे बन्द कर दिया गया और उसके बाद इसे पुनः 2006 में खोला गया।

जेलेप ला– यह दर्रा समुद्रतल से 4538 मीटर की ऊँचाई पर स्थित है। यह चुंबी घाटी से गुजरते हुए सिक्किम को तिब्बत की राजधानी ल्हासा से जोड़ता है।
पंगसान दर्रा– यह दर्रा अरूणाचल प्रदेश में समुद्र तल से 4000 मीटर की ऊँचाई पर स्थित है। यह अरूणाचल प्रदेश को म्यांमार के माण्डले से जोड़ता है।
लिखापानी दर्रा– भारत के अरूणाचल प्रदेश राज्य में स्थित यह दर्रा 4000 मीटर से भी अधिक ऊँचा है। यह अरूणाचल प्रदेश को म्यांमार से जोड़ता है। यह दर्रा वर्षपर्यन्त खुला रहता है।
बोमडीला– यह भूटान के पूर्व में स्थित एक दर्रा है जिसकी समुद्रतल से ऊँचाई 2600 मीटर है। यह अरूणाचल प्रदेश को तिब्बत की राजधानी ल्हासा से जोड़ता है।
दिहांग दर्रा– यह अरूणाचल प्रदेश के पूर्वी भाग में स्थित एक दर्रा है जिसकी समुद्रतल से ऊँचाई 1220 मीटर है। यह अरूणाचल प्रदेश को म्यांमार से जोड़ता है।




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