Friday, November 8, 2019

उत्तरी पर्वतीय भाग (1)

भारत में बड़े पैमाने पर धरातलीय विविधताएं पायी जाती हैं। पर्वत,पठार,मैदान,द्वीप इत्यादि सभी भूस्वरूपों के दर्शन भारत भूमि पर व्यापक रूप से होते हैं। भारत के सम्पूर्ण भू–क्षेत्र का लगभग 29 प्रतिशत भाग पर्वतीय है जबकि 28 प्रतिशत भाग पठारी और शेष 43 प्रतिशत भाग मैदानी है। विश्व औसत की तुलना में भारत में मैदानों का प्रतिशत अधिक है। भूगोल के अनेक विद्वानों ने भारत के सम्पूर्ण भू–क्षेत्र को अध्ययन की सुविधानुसार 4 भागों में बाँटा है। इन चार भू–भागों में प्रायद्वीपीय पठारी भाग सबसे प्राचीन भूखण्ड है। भौगोलिक इतिहास के अनुसार पठारी भाग के निर्माण के एक लम्बे अन्तराल के पश्चात हिमालय का निर्माण हुआ।
इसके बाद हिमालय से निकली नदियों ने पहाड़ों से बहा कर लाए गये अवसादों का निक्षेपण कर विशाल मैदानों का निर्माण किया।
भारत के विशाल भौतिक शरीर को चार प्रमुख भागों में बाँटा जाता है–
A. उत्तरी पर्वतीय भाग
B. प्रायद्वीपीय पठारी भाग
C. उत्तरी मैदानी भाग
D. तटीय मैदान और द्वीप समूह

उत्तरी पर्वतीय भाग

भारत के भौतिक विभागों में सबसे उत्तर में हिमालय पर्वतमाला स्थित है। हिमालय भारत का शीर्ष है। उन्नत भाल है। यह सदियों से अडिग दीवार की भाँति भारत भूमि की रक्षा करता रहा है। यह पवित्र भारत–भूमि का सबसे सुंदर और साथ ही सर्वाधिक दुर्गम भू–भाग है। हिमालय आदिकाल से ही भारतीयों की आस्था के साथ जुड़ा हुआ है। हिमालय भारत की सीमाओं को उत्तर–पश्चिम,उत्तर और उत्तर–पूर्व की ओर से घेरे हुए है। आइए इसके बारे में विस्तार से जानते हैं।
यह विशाल भूस्वरूप भारत के उत्तर में किसी विशाल वृत्त के चाप के रूप में पश्चिम से पूर्व की ओर 2400 किलोमीटर की लम्बाई और 160 से 400 किलोमीटर की चौड़ाई में फैला हुआ है। यह फैलाव 22 देशान्तर रेखाओं के बीच पाया जाता है। इस भूभाग की औसत ऊँचाई 6000 मीटर है। एशिया महाद्वीप में 6500 मीटर से ऊँची 94 चोटियाँ हैं जिनमें से 92 इसी भाग में पायी जाती हैं। यह पर्वतमाला भारत के 5 लाख वर्ग किलोमीटर क्षेत्रफल में फैली हुई है। यह पर्वतमाला पामीर की गाँठ से निकलने वाली विशाल पर्वत प्रणाली का ही अंग है। इसके उत्तर में तिब्बत के ऊँचे पठार पर पूर्व–पश्चिम दिशा में विस्तृत कई पर्वत श्रेणियाँ पायी जाती हैं लेकिन ये हिमालय की तरह चापाकार रूप में न होकर एक सीधी रेखा में पायी जाती हैं। जैसे अलिंग–कांगड़ी,काराकोरम और क्युनलुन ऐसी ही पर्वत श्रेणियाँ हैं। पश्चिम और पूर्व के इसके दोनों छोरों पर इस चाप में तीव्र मोड़ पाये जाते हैं। इन मोड़ों से आगे की श्रेणियां भिन्न–भिन्न नामों से जानी जाती हैं। जैसे पश्चिम में नंगा पर्वत और इसके निकट से प्रवाहित होने वाली सिन्धु नदी से आगे की श्रेणियों को हिन्दुकुश,सुलेमान और किरथर श्रेणियाें के नाम से जाना जाता है जो पाकिस्तान में फैली हुई हैं। इन्हें बलूचिस्तान चाप के नाम से भी जाना जाता है। पूर्व में यह नामचा–बरवा पर्वत शिखर और ब्रह्पुत्र नदी से आगे अराकान–योमा श्रेणी के नाम से जाना जाता है जो अराकान सागर की ओर बढ़ती चली गयी है। इसमें भी कई श्रेणियां हैं जिन्हें दक्षिण में पटकोई,नागा,मणिपुर,लुशाई,अराकान इत्यादि के नाम से जाना जाता है। ये श्रेणियां भारत और म्यानमार के मध्य सीमा बनाती हैं। इस तरह निर्णायक रूप से,पश्चिम में नंगा पर्वत व सिन्धु नदी और पूर्व में नामचा बरवा शिखर और ब्रह्मपुत्र नदी के बीच की पर्वत श्रेणी को हम हिमालय के नाम से जानते हैं। यहाँ एक उल्लेखनीय तथ्य यह है कि ये दोनों नदियां हिमालय की सभी श्रेणियों को पूरी तरह से आर–पार काटकर प्रवाहित होती हैं। यह तथ्य ये प्रमाणित करता है कि ये नदियां हिमालय से भी अधिक प्राचीन हैं। इस कारण इन्हें पूर्ववर्ती (अर्थात जो हिमालय की उत्पत्ति के पहले से अस्तित्व में हैं) नदियां भी कहते हैं। इसके बारे में हम आगे जानेंगे। अब हिमालय पर आगे बढ़ते हैं।
हिमालय पश्चिम से पूर्व तक एकल पर्वत श्रेणी न होकर कई पर्वत श्रेणियों का समूह है। सामान्यतः इसमें 4 (चार) पर्वत श्रेणियां पायी जाती हैं जिन्हें पृथकतः पहचाना जा सकता है–

1. महान हिमालय
2. लघु हिमालय
3. उप हिमालय
4. ट्रांस हिमालय
अब इन चारों श्रेणियों की अलग–अलग विशेषताएं के बारे में जानते हैं–

वृहत हिमालय या महान हिमालय या हिमाद्रि– पश्चिम में नंगा पर्वत से लेकर पूर्व में नामचा बरवा पर्वत तक अथवा सिन्धु नदी से ब्रह्मपुत्र नदी तक,यह श्रेणी एक अभेद्य दीवार की तरह से 2400 किलोमीटर की लम्बाई में पश्चिम से पूरब तक फैली हुई है। उत्तर से दक्षिण की इसकी चौड़ाई औसतन 25 किलोमीटर है। इस श्रेणी की औसत ऊॅंचाई 6000 मीटर है। वैसे यह तथ्य कुछ विद्वानों के अनुसार कुछ भिन्न भी हो सकता है। इसके 40 से भी अधिक ज्ञात शिखर 7000 मीटर से भी अधिक ऊँचे हैं जबकि 273 ऐसी अज्ञात चोटियाँ हैं जिनकी ऊँचाई 6000 मीटर से अधिक है। इस श्रेणी की सर्वाधिक ऊँचाई इसके मध्यवर्ती भाग अथवा नेपाल वाले भाग में पायी जाती है। पश्चिमी भाग में इसकी चौड़ाई अधिक है जो पूरब की ओर घटती जाती है। पश्चिमी भाग में हिमालय की तीनों श्रेणियां अर्थात वृहत हिमालय,मध्य हिमालय और शिवालिक,स्पष्टतः दृष्टिगोचर होती हैं जबकि पूर्व की तरफ ये तीनों श्रेणियां आपस में मिलती हुई सी प्रतीत होने लगती हैं। इस श्रेणी की सर्वाेच्च चोटी माउंट एवरेस्ट है जो 8848 मीटर ऊँची है। इस चोटी को तिब्बती भाषा में चोमोलुंगमा के नाम से जाना जाता है। यह एक तिब्बती शब्द है जिसका अर्थ होता है– पर्वतों की रानी। इसे गौरीशंकर या सागरमाथा  के नाम से भी जाना जाता है। उल्लेखनीय है कि भारतीय सर्वेक्षण विभाग के राधाकृष्ण सिकन्दर ने सबसे पहले इस चोटी की उपस्थिति का परिचय दिया। चूँकि उस समय भारतीय सर्वेक्षण विभाग के अध्यक्ष सर जार्ज एवरेस्ट थे,अतः उन्हीं के नाम पर इसे माउण्ट एवरेस्ट नाम दिया गया। नंगा पर्वत (8126 मीटर),नंदा देवी (7818 मीटर),गोसाईथान (8013 मीटर),कंचनजंघा (8598 मीटर),मकालू (8481 मीटर),नुनकुन (7135 मीटर),अन्नपूर्णा (8078 मीटर),मनसालू (8156 मीटर),धौलागिरि (8172 मीटर) इस श्रेणी की अन्य प्रमुख चोटियाँ हैं। इस श्रेणी के उत्तर में सिन्धु एवं ब्रह्मपुत्र नदियां प्रवाहित होती हैं। इस श्रेणी के उत्तर में कुछ उच्च मैदानी भाग भी पाये जाते हैं जिन्हें देवसाई और रूपशू मैदान के नाम से जाना जाता है। ये मैदान जास्कर श्रेणी के क्रमशः उत्तर और दक्षिण में अवस्थित हैं। यह पर्वत श्रेणी काफी तीव्र ढाल वाली है। इसमें भी इसके दक्षिणी भाग का ढाल अर्थात भारत की ओर वाले भाग का ढाल,उत्तरी भाग अथवा तिब्बत की ओर वाले भाग के ढाल की तुलना में काफी तीव्र है। दक्षिणी भाग में तीव्र ढाल के कारण घाटियाँ अपेक्षाकृत सँकरी पायी जाती हैं। इस श्रेणी की अधिक ऊँचाई की वजह से इस पर अनेक हिमनद या हिमनदियां (बर्फ की नदी) भी पायी जाती हैं। ये हिमनदियां पश्चिमी भाग अर्थात कश्मीर की ओर 2440 मीटर की ऊँचाई तक मिलती हैं जबकि पूर्वी व मध्य भाग में ये 3960 मीटर की ऊँचाई तक पायी जाती हैं। अर्थात पश्चिमी भाग में ये अपेक्षाकृत नीचे तक चली आती हैं।

इस श्रेणी को कुछ निश्चित दर्रों के रास्ते ही पार किया जा सकता है। इनमें कश्मीर में बुर्जिल और जोजीला,हिमाचल प्रदेश में बड़ा लाचा ला और शिपकी ला,उत्तराखण्ड में थांगला,माना,नीति और लिपुलेख,सिक्किम में नाथूला और जेलेपला आदि प्रमुख हैं। हिमालय की इस श्रेणी में भारत के कुछ प्रमुख धार्मिक स्थान जैसे केदारनाथ,बद्रीनाथ,यमुनोत्री,गंगोत्री,गौमुख,अमरनाथ,हेमकुण्ड साहिब,आदि कैलाश,किन्नर कैलाश,श्रीखण्ड महादेव इत्यादि अवस्थित हैं। इन स्थलों की यात्रा अत्यन्त दुर्गम होती है। इस श्रेणी के बारे में माना जाता है कि यह अभी भी निर्माणावस्था में है। अतः गर्भ भाग में यह काफी सक्रिय है और वहाँ हलचलें होती रहती हैं जिसके कारण सम्पूर्ण हिमालय और इसके आस–पास के भागों में हल्के से लेकर तीव्र भूकम्प आते रहते हैं।

मध्य हिमालय या लघु हिमालय– हिमालय की यह श्रेणी महान हिमालय के दक्षिण में,उसी के समानान्तर पश्चिम से पूरब को फैली हुई है। इस श्रेणी की औसत ऊँचाई 1800 से 3000 मीटर के मध्य मानी जाती है जबकि इसकी अधिकतम ऊँचाई 4500 मीटर तक है। इस श्रेणी की उत्तर से दक्षिण की चौड़ाई 80 से 100 किमी के बीच है। कश्मीर,हिमाचल प्रदेश और नेपाल में यह श्रेणी प्रायः अविच्छिन्न रूप में पायी जाती है लेकिन उत्तराखण्ड में यह नदियों द्वारा कई जगह खण्डित हो गयी है। इस श्रेणी में नदियाँ लगभग 1000 मीटर की गहराई पर प्रवाहित होती हैं। हिमालय की इस श्रेणी में कई छोटी–छोटी श्रेणियाँ मिलती हैं जिनकी कई नसें या भुजाएं निकलकर इधर–उधर फैली हुई हैं। जम्मू और कश्मीर की पीर पंजाल,हिमाचल प्रदेश की धौलाधार,उत्तराखण्ड की मसूरी और नेपाल की महाभारत लेख श्रेणी इसी के अन्तर्गत आती हैं। पीर पंजाल मध्य हिमालय की सबसे लम्बी श्रेणी है जिसकी ऊँचाई 4000 मीटर है। झेलम और व्यास नदियों के मध्य लगभग 400 किलोमीटर की लम्बाई में यह श्रेणी फैली हुुई है। पीर पंजाल (3494 मीटर),बनिहाल (2832 मीटर) और बुदिलपीर (4200 मीटर) दर्रे इसी श्रेणी में अवस्थित हैं। पीर पंजाल श्रेणी वृृहत हिमालय से सतलज नदी के निकट अलग होती है तथा चिनाब और रावी–व्यास नदियों के प्रवाह प्रदेश को एक–दूसरे से अलग करती है। रावी व व्यास नदियाँ इसी श्रेणी से निकलती हैं। इसी श्रेणी के दक्षिण–पूर्व में हिमाचल प्रदेश में धौलाधार श्रेणी विस्तृत है। धौलाधार के दक्षिण में शिमला और मसूरी की पहाड़ियाँ स्थित हैं। धौलाधार श्रेणी वृहत हिमालय से उत्तराखण्ड के बद्रीनाथ के पास अलग होती है। भारत के प्रमुख हिल–स्टेशन जैसे डलहौजी,मसूरी,चकराता,रानीखेत,नैनीताल,दार्जिलिंग इत्यादि हिमालय की इसी श्रेणी के निचले भागों में अवस्थित हैं। इन नगरों की ऊँचाई औसतन 1500 से 2000 मीटर के बीच है। भूगर्भिक दृष्टिकोण से हिमालय का यह भाग,महान हिमालय के विपरीत प्रायः शान्त रहता है। महान हिमालय की ही तरह इस श्रेणी के भी उत्तरी ढाल मंद हैं जबकि दक्षिणी ढाल अत्यंत तीव्र हैं। इस श्रेणी के ढालों पर घने कोणधारी वन पाए जाते हैं। ऊँचाई वाले भागों में,जहाँ वृक्षों की सीमा समाप्त होती है ,घास के छोटे–छोटे मैदान पाए जाते हैं जिन्हें कश्मीर में मर्ग और उत्तराखण्ड में बुग्याल और पयार कहते हैं। जैसे गुलमर्ग,सोनमर्ग,टंगमर्ग,खिलनमर्ग,दयारा बुग्याल,बेदिनी बुग्याल इत्यादि।
महान हिमालय और मध्य हिमालय के मध्य दाे प्रसिद्ध खुली घाटियां पायी जाती हैं। पश्चिमी भाग में महान हिमालय और पीर पंजाल श्रेणी के मध्य कश्मीर की विश्व प्रसिद्ध घाटी पायी जाती है जबकि पूर्वी भाग में नेपाल की काठमाण्डू घाटी पायी जाती है।
कश्मीर घाटी समुद्रतल से 1600 मीटर की ऊँचाई पर,150 किलोमीटर की लम्बाई और 89 किलोमीटर की चौड़ाई में फैली है। इसका क्षेत्रफल लगभग 4900 वर्ग किलोमीटर है। यह झेलम नदी द्वारा निर्मित मैदान है। घाटी के उत्तरी भाग में झेलम नदी दक्षिण–पूर्व से उत्तर–पश्चिम की ओर प्रवाहित होती है। यहाँ डल और वूलर झीलें अवस्थित हैं। पीर पंजाल और बनिहाल दर्राें से हाेकर इस घाटी में पहुँचा जा सकता है। काठमाण्डू घाटी समुद्रतल से 1500 मीटर की ऊँचाई पर 25 वर्ग किलोमीटर के क्षेत्रफल में विस्तृत है। हिमाचल प्रदेश की कांगड़ा और कुल्लू घाटियां भी मध्य हिमालय में ही पायी जाती हैं।
महान हिमालय और मध्य हिमालय के बीच विशाल सीमान्त दरार या ग्रेट बाउण्डरी फॉल्ट (great boundary fault) पायी जाती है जो पंजाब से असम तक मिलती है। इसमें उल्टे मोड़ व भ्रंश पाये जाते हैं।

उप हिमालय या वाह्य हिमालय या शिवालिक श्रेणी– यह हिमालय की सबसे दक्षिणी श्रेणी है। यह पंजाब के पोटवार बेसिन के दक्षिण से आरम्भ होकर पूर्व में कोसी नदी तक 2000 किलोमीटर की लम्बाई में विस्तृत है। इसके बाद इसका क्रम भंग हो गया है। पूर्व में अरूणाचल प्रदेश में भी कुछ दूरी तक ये पायी जाती हैं। हिमाचल प्रदेश और पंजाब में इनकी चौड़ाई 50 किलोमीटर तक है जबकि अरूणाचल प्रदेश में यह केवल 15 किलोमीटर तक रह जाती है। इस श्रेणी की ऊँचाई 600 से 1500 मीटर तक पायी जाती है। इस श्रेणी का निर्माण प्रायः बालू,कंकड़,पत्थर आदि ढीले पदार्थाें से हुआ है,इस कारण ये अनेक स्थानों पर तीव्र वर्षा या नदियों द्वारा खण्डित कर दी गयी हैं। इसी तरह से पश्चिमी बंगाल में तिस्ता और रायडाक नदियों ने लगभग 90 किलोमीटर की चौड़ाई में इनका अस्तित्व ही समाप्त कर दिया है। शिवालिक श्रेणी के पीछे इसे लघु हिमालय से पृथक करने वाली लम्बाकार घाटियां स्थित हैं जिन्हें पश्चिम में दून और पूर्व में द्वार कहते हैं। देहरादून एक ऐसी ही घाटी में बसा है जो 75 किलोमीटर लम्बी और 15 से 20 किलोमीटर चौड़ी है। ऊधमपुर,कोटली,कोटा,पातली,चुम्बी,कियार्दा और कोठरी आदि ऐसी ही घाटियाँ हैं। यह श्रेणी हिमालय का सबसे नवीन भाग है जिसका उद्भव सबसे बाद में हुआ। इस श्रेणी का सम्पूर्ण पर्वतपदीय भाग दलदली और वनाच्छादित है।
शिवालिक श्रेणी को जम्मू में जम्मू की पहाड़ियां तथा पूर्वाेत्तर भारत में डाफला,मिरी,अबोर तथा मिशमी पहाड़ियों के नाम से जाना जाता है। शिवालिक पहाड़ियों के ढालों पर वन पाये जाते हैं जिनकी सघनता पूर्व की ओर वर्षा की अधिकता के कारण बढ़ती जाती है।
शिवालिक श्रेणी अपने उत्तर में मध्य हिमालय से सीमान्त दरार द्वारा अलग होती है।










अगला भाग ः उत्तरी पर्वतीय भाग (2)

अन्य सम्बन्धित विवरण–

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