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Friday, November 29, 2019

हिमालय की उत्पत्ति

हिमालय जैसी विशाल पर्वत श्रृंखला का निर्माण एक अत्यधिक जटिल प्रक्रिया के फलस्वरूप हुआ है। इसे समझने के पूर्व कुछ मूलभूत तथ्यों और सिद्धान्तों के बारे में जानना आवश्यक है। भूगोल और भूगर्भविज्ञान का अध्ययन करने वाले तो इसके बारे में जानकारी रखते हैं लेकिन दूसरे लोगों के लिए इसे समझना थोड़ा कठिन है। आइए इसे आसानी से समझने की कोशिश करते हैं।
लम्बे भूगर्भिक अध्ययनों और आधुनिक शोधों से पता चलता है कि महाद्वीपों और महासागरों का जो स्वरूप वर्तमान में दिखाई पड़ता है वह हमेशा से ऐसा ही नहीं रहा है। इनकी स्थिति और आकार हमेशा बदलते रहे हैं। प्लेट टेक्टानिक्स सिद्धान्त  इसकी सरल व्याख्या प्रस्तुत करता है। इसके अनुसार पृथ्वी की ऊपरी परत कई छोटे–छोटे टुकड़ों के मिलने से बनी है। इन टुकड़ों को प्लेट कहते हैं।

Friday, November 22, 2019

उत्तरी पर्वतीय भाग (3)

हिमालय के मोड़– पश्चिम में सिन्धु नदी और पूर्व में ब्रह्मपुत्र नदी,हिमालय को आर–पार काट कर प्रवाहित होती हैं। इन्हीं स्थानों के पास पश्चिम में नंगा पर्वत और पूर्व में नामचा बरवा शिखर स्थित हैं। इन्हें ही हिमालय की सीमा माना जाता है। इन दोनों ही स्थलों पर हिमालय पर्वत श्रृंखला में तीव्र मोड़ पाये जाते हैं। पश्चिम में हिमालय की सामान्य दिशा उत्तर–पश्चिम है जो एकाएक मुड़ कर दक्षिण–पश्चिम हो जाती है। यहाँ ये सुलेमान व किरथर श्रेणी के रूप में जाने जाते हैं। पूर्व में हिमालय की दिशा उत्तर–पूर्व है जो एकाएक मुड़कर दक्षिण हो जाती है जिसे अराकानयोमा के नाम से जाना जाता है। नामचा बरवा के आगे इन्हें कई नामों यथा पटकोई,नागा,मणिपुर,लुशाई,अराकान इत्यादि नामों से जाना जाता है।

Friday, November 15, 2019

उत्तरी पर्वतीय भाग (2)

ट्रांस हिमालय या तिब्बत हिमालय– महान हिमालय के उत्तर में,इसी के समानान्तर कई श्रेणियाँ पायी जाती हैं। इन्हें सम्मिलित रूप से ट्रांस हिमालय  या तिब्बत हिमालय कहा जाता है। यह श्रेणी पश्चिम से पूर्व तक 960 किलोमीटर की लम्बाई में विस्तृत है। पूर्वी तथा पश्चिमी किनारों पर इसकी चौड़ाई 40 किलोमीटर है जबकि मध्य भाग में यह 225 किलोमीटर चौड़ी है। इस श्रेणी की औसत ऊँचाई 3100 से 3700 मीटर है। इस श्रेणी के अन्तर्गत जास्कर,लद्दाख,कैलाश और काराकोरम श्रेणियाँ आती हैं। सिन्धु,सतलज और ब्रह्मपुत्र नदियों का उद्गम ट्रांस हिमालय श्रेणियों में ही होता है।

Friday, November 8, 2019

उत्तरी पर्वतीय भाग (1)

भारत में बड़े पैमाने पर धरातलीय विविधताएं पायी जाती हैं। पर्वत,पठार,मैदान,द्वीप इत्यादि सभी भूस्वरूपों के दर्शन भारत भूमि पर व्यापक रूप से होते हैं। भारत के सम्पूर्ण भू–क्षेत्र का लगभग 29 प्रतिशत भाग पर्वतीय है जबकि 28 प्रतिशत भाग पठारी और शेष 43 प्रतिशत भाग मैदानी है। विश्व औसत की तुलना में भारत में मैदानों का प्रतिशत अधिक है। भूगोल के अनेक विद्वानों ने भारत के सम्पूर्ण भू–क्षेत्र को अध्ययन की सुविधानुसार 4 भागों में बाँटा है। इन चार भू–भागों में प्रायद्वीपीय पठारी भाग सबसे प्राचीन भूखण्ड है। भौगोलिक इतिहास के अनुसार पठारी भाग के निर्माण के एक लम्बे अन्तराल के पश्चात हिमालय का निर्माण हुआ।

Friday, November 1, 2019

भारत–एक परिचय

विष्णु पुराण के अनुसार–
उत्तरं यत्समुद्रस्य हिमाद्रेश्चैव दक्षिणम्।
वर्षं तद्भारतं नाम,भारती यत्र सन्ततिः।।
अर्थात जो समुद्र के उत्तर तथा हिमालय के दक्षिण में स्थित है,वह देश भारतवर्ष कहलाता है। उसमें भरत की सन्तानें बसी हुई हैं।
भारत संभवतः उतना ही प्राचीन देश है जितनी कि स्वयं मानव सभ्यता। इसकी सभ्यता और संस्कृति 5000 वर्ष से भी अधिक प्राचीन है। जहाँ तक नामकरण का प्रश्न है,आर्याें द्वारा सर्वप्रथम पंजाब के क्षेत्र में अपना प्रभुत्व स्थापित कर इसका नाम "सप्त सैन्धव" रखा गया। इसके पश्चात पूरब की ओर अपना प्रभुत्व विस्तार करके,गंगा–यमुना के मध्य भाग को उन्होंने "ब्रह्मर्षि देश" कहा।