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तीसरा दिन– सुबह सोकर उठा तो रिमझिम बारिश अपने पूरे शबाब पर थी। सामने लक्ष्मणगंगा बादलों से निकलकर नीचे हरे जंगलों में कहीं खो जा रही थी। गोविंदघाट की रोमानी सुबह अपने आप में बहुत कुछ कह रही थी। वास्तव में यह स्थान रास्ता नहीं वरन मंजिल होनी चाहिए। बारिश प्रकृति का उत्सव है। प्रकृति आज पूरे श्रृंगार में उत्सव मना रही थी। पहाड़ों की बरसात जितनी डरावनी होती है उतनी ही सुंदर भी। इस मौसम में पहाड़ हरी चादर तो वैसे भी ओढ़ लेते हैं। इस हरी चादर के ऊपर सफेद बादलों का दुशाला ओढ़ प्रकृति सुंदरी अपने अप्रतिम स्वरूप में निखर आती है।
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दूसरा दिन– मुझे रात में पता चल गया था कि हरिद्वार से बद्रीनाथ के लिए पहली बस 3.15 पर है। मैंने पहले ही तय कर लिया कि इतनी सुबह बस पकड़ना मेरे बस की बात नहीं। वैसे इस पहली बस के बाद भी इस मार्ग पर निजी बस ऑपरेटरों की कई बसें हैं। अन्तिम बस सम्भवतः 8 बजे है। उत्तराखण्ड परिवहन निगम की एकमात्र बस 5.30 बजे है। उत्तराखण्ड परिवहन निगम को पहाड़ सम्भवतः अच्छा नहीं लगता और शायद इसी कारण वह अपनी अधिकांश बसें मैदानी इलाकों में चलाता है। कोई दिल्ली तो कोई चण्डीगढ़। उत्तराखण्ड के अन्दरूनी भागों का जिम्मा निजी बस संचालकों के ही ऊपर है।
बारिश में पहाड़ खतरनाक हो जाते हैं। मानसून के दौरान पहाड़ों पर नहीं जाना चाहिए। बादल फटते हैं,बाढ़ आती है,रास्ते बन्द हो जाते हैं। बहुत रिस्क होता है। ऐसा सुनते–सुनते अजीर्ण हो गया था। तो जुमलों की सच्चाई जानने का दूसरा कोई उपाय नहीं सिवाय इसके कि मौके पर पहुँच कर इनकी परीक्षा ली जाय। संयोग कुछ ऐसा रहा कि इस साल अर्थात् 2019 के मानसून में न्यूज चैनलों पर लगभग रोज ही आधा हिन्दुस्तान नदियों की बाढ़ में बहता रहा। राजस्थान के रेगिस्तान में भी बाढ़ आती रही। फिर पहाड़ों का तो पूछना ही क्याǃ
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अब मेरा कार्यक्रम पाँचवें केदार अर्थात कल्पेश्वर जाने का था। पंचकेदार में से प्रथम केदार,केदारनाथ के दर्शन तो पहले ही कर चुका हूँ। इस बार की यात्रा में चतुर्थ व पंचम केदार की यात्रा के लिए निकला था। चतुर्थ केदार अर्थात् रूद्रनाथ का दर्शन कठिन चढ़ाई के पश्चात् एक दिन पूर्व सम्पन्न हुआ और अब पंचम केदार कल्पेश्वर। क्रम की बाध्यताओं का अनुकरण करना आज के व्यस्त जीवन में काफी मुश्किल है। तो मुझे जहाँ भी पहुँचना संभव था पहुँचता रहा।