Friday, April 26, 2019

रामेश्वरम

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सुबह के 10 बजे मदुरई से चलने के बाद हम चलते ही रहे। 2 बजे तक हम 165 किमी की दूरी तय कर भारत की मुख्य भूमि को छोड़कर,पंबन ब्रिज पर पहुँच चुके थे। चारों तरफ पानी ही पानी देखकर गाड़ी रोकी गयी। समु्द्र को हनुमान की तरह लांघता पुल रोमांच पैदा कर रहा था। वैसे पुल से गुजरते हुए यह कतई महसूस नहीं हो रहा था कि हम समुद्र के ऊपर से गुजर रहे हैं। खट्टे–मीठे अनन्नास की फांके खाते हुए इस पुल पर टहलना और फोटो खींचना कितना आनन्ददायक है,यह यहाँ पहुॅंच कर ही जाना जा सकता है। गाड़ी का ड्राइवर लाख शोर मचाये,हम तो अपनी वाली ही करेंगे।

Friday, April 19, 2019

मदुरई

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वेल्लोर से शाम के 7.30 बजे हम मदुरई के लिए रवाना हो गये। अब रात भर चलना था। सोच कर ही चक्कर आ रहे थे। ड्राइवर भी जुनूनी था। चल पड़े तो चल पड़े। सुबह के समय ही तिरूमला से सीधे मदुरई के लिए निकल लिए होते तो शाम तक या 8-9 बजे तक मदुरई में होते। दिनभर बस की खिड़की से तमिलनाडु का जनजीवन देखने को मिला होता और रात मदुरई के किसी होटल में बीतती। लेकिन ऐसा होना किस्मत में नहीं था। प्लान ड्राइवर का था। छोटी सी ट्रैवलर गाड़ी। पैर फैलाने की भी जगह नहीं थी तो पैरों को सूजन झेलनी ही थी।

Friday, April 12, 2019

तिरूमला टु मदुरई

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आज यात्रा का तीसरा दिन था। कल शाम के समय जब हम भगवान वेंकटेश के दर्शन कर कमरे लौटे तो एक और घटना हुई। और वो ये कि आगे की ʺयात्राʺ करने वाले ʺयात्रियोंʺ के लिए "ट्रैवलर" गाड़ी की बुकिंग की गयी। तिरूमला के सीमित दायरे में ट्रैवेल एजेंट भी संभवतः सीमित ही हैं। हमारे सामने तिरूपति पहुँचकर भी गाड़ी बुक करने का विकल्प था लेकिन हमें यहीं से बेहतर लगा सो कर लिया।

Friday, April 5, 2019

जय वेंकटेश्वर

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बालाजी या तिरूपति श्री वेंकटेश्वर भगवान का मन्दिर आन्ध्र प्रदेश के सुदूर दक्षिणी छोर पर बसे चित्तूर जिले के उत्तरी छोर पर अवस्थित है। तिरूपति कस्बे से सटे हुए,इसके ठीक उत्तर में पूरब से पश्चिम को फैली हुई पूर्वी घाट की पहाड़ियाँ नजर आती हैं। ये श्रृंखलाएं यहाँ से उत्तर की ओर बढ़ती जाती हैं। तिरूपति के उत्तर में सर्पाकार रूप में फैली इन पहाड़ियों के भाग को शेषाचल कहा जाता है जो आदिशेष या शेषनाग को प्रदर्शित करती हैं। पौराणिक कथाओं के अनुसार आदिशेष ने संसार को अपने हजारों फनों वाले शीर्ष पर धारण कर रखा है।
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