कल नलसरोवर की बस खोजते–खोजते पाटन और मोढेरा जाना पड़ा। तो आज मैं सतर्क था। कल रात वापस आकर खाना खाने और सोने में भले ही बहुत देर हो गयी लेकिन आज मैं सुबह बहुत जल्दी उठ गया। वजह यह थी कि नलसरोवर की पहली बस सुबह 7.15 पर ही थी और गुजरात में दिसम्बर के महीने में सुबह के साढ़े छः बजे के बाद ही अँधेरा छँट रहा था। तो पौने सात बजे मैं होटल से निकल कर गीता मंदिर बस स्टेशन की ओर चल पड़ा।
Pages
▼
Friday, February 22, 2019
Friday, February 15, 2019
मोढेरा का सूर्य मंदिर–समृद्ध अतीत की निशानी
इस यात्रा के बारे में शुरू से पढ़ने के लिए यहाँ क्लिक करें–
जैन मंदिर के पास से मुझे पता लगा कि बस स्टैण्ड पास में ही या लगभग एक किमी की दूरी पर है। लेकिन यह जूना बस स्टैण्ड है। नये बस स्टैण्ड जाने के लिए मुझे 50 का पहाड़ा पढ़ने वाले ऑटो वालों की ही सुनना था। 2.30 बजे तक मैं पाटन के नये बस स्टैण्ड में था। ऑटो वाले ने बताया कि बेचराजी रूट की कोई बस पकड़ लेंगे तो वह मोढेरा होकर ही जायेगी। मैं बस का इंतजार करने लगा। साथ ही दिमाग में यह भी बिठाने की कोशिश करने लगा कि बस के शीशे के पीछे गुजराती लिपि में बेचराजी किस तरह से लिखा होगा। बस सामने खड़ी हो तो इंतजार कुछ आसान लगता है।
Friday, February 8, 2019
रानी की वाव
अहमदाबाद और इसके आस–पास की यात्रा में मेरे सामने कई लक्ष्य थे। सबसे नजदीकी था अहमदाबाद शहर के अन्दर की ऐतिहासिक इमारतों का दर्शन। दूसरा था अहमदाबाद के उत्तर–पूर्व में लगभग 138 किमी की दूरी पर पाटन शहर में स्थित विश्व विरासत स्थल रानी की वाव और इससे कुछ दूरी पर मोढेरा का सूर्य मंदिर। तीसरा लक्ष्य था अहमदाबाद के दक्षिण–पश्चिम में नलसरोवर पक्षी अभयारण्य और सिंधु घाटी सभ्यता के बन्दरगाह शहर लोथल का भ्रमण।
Friday, February 1, 2019
एक्सप्रेस ऑफ साबरमती
हिमालय घुमक्कड़ों के लिए स्वर्ग है। लेकिन दिसम्बर के महीने में जमा देने वाली ठण्ड में हिमालय की यात्रा तो अवश्य हो जायेगी पर घुमक्कड़ी का आनन्द तो शायद ही आये। हाँ,समन्दर के किनारे अवश्य ही आनन्ददायक होंगे। तो इस बार भारत के पश्चिमी हिस्से की ओर। घुमक्कड़ के लिए मौसम थोड़ा सा सहायता करता है तो घुमक्कड़ी कुछ आसान हो जाती है। अब दिसम्बर के अंतिम सप्ताह में उत्तर भारत ठण्ड से सिहर रहा है तो गुजरात में ठण्ड का रंग गुलाबी है। ऐसे ही मौसम में थर्मल इनर,स्वेटर,जैकेट,मफलर और कम्बल से लदे–फदे,भारी–भरकम शरीर को ढोते हुए मैं गुजरात के अहमदाबाद की ओर चल पड़ा।