आज हमारी इस यात्रा का अंतिम दिन था। अर्थात औरंगाबाद की यात्रा का अंतिम दिन,क्योंकि यात्रा का अंत तो कभी हो ही नहीं सकता। हमारी जीवन यात्रा के साथ ये छोटी–मोटी यात्राएं तो चलती ही रहेंगी आैर जीवन यात्रा में नयी–नयी कहानियां जुड़ती रहेंगी। फिर भी एक बड़े चक्र का छोटा सा भाग पूर्ण होने वाला था। औरंगाबाद से बाहर निकल कर घूमने का काम पूरा हो चुका था और अब औरंगाबाद शहर की सड़कें ही बची थीं। काम कम था और समय पर्याप्त। ऐसे में थोड़ा अधिक सोया जा सकता है। अब छोटी कक्षाओं में कभी पढ़ी गयी संस्कृत की उस सूक्ति– "दीर्घसूत्री विनश्यति" काे भूलकर हम भी सुबह के पौने सात बजे तक सोते रहे।
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Friday, March 30, 2018
Friday, March 23, 2018
देवगिरि उर्फ दौलताबाद
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2 बजे हम दौलताबाद किले पहुँचे। दौलताबाद अपने इतिहास,महत्व और विशेषताआें की वजह से कम और मुहम्मद तुगलक के अदूरदर्शी फैसलों की वजह से अधिक जाना जाता है। दौलताबाद का किला औरंगाबाद से एलोरा जाने वाले राष्ट्रीय राजमार्ग संख्या 52 के किनारे स्थित है। मुख्य सड़क छोड़कर किले की ओर बढ़ने पर बायें हाथ टिकट काउण्टर है।किले का प्रवेश शुल्क 15 रूपये है यानी अजंता या एलोरा का आधा। वैसे प्रवेश शुल्क कम या अधिक होने से इसके महत्व में कोई अंतर नहीं आता। इसके बाद दाहिनी तरफ मुड़कर आगे बढ़ने पर बायें हाथ किले का मुख्य प्रवेश द्वार है। मुख्य द्वार से प्रवेश करने पर एक लम्बा पथरीला रास्ता मिलता है।
2 बजे हम दौलताबाद किले पहुँचे। दौलताबाद अपने इतिहास,महत्व और विशेषताआें की वजह से कम और मुहम्मद तुगलक के अदूरदर्शी फैसलों की वजह से अधिक जाना जाता है। दौलताबाद का किला औरंगाबाद से एलोरा जाने वाले राष्ट्रीय राजमार्ग संख्या 52 के किनारे स्थित है। मुख्य सड़क छोड़कर किले की ओर बढ़ने पर बायें हाथ टिकट काउण्टर है।किले का प्रवेश शुल्क 15 रूपये है यानी अजंता या एलोरा का आधा। वैसे प्रवेश शुल्क कम या अधिक होने से इसके महत्व में कोई अंतर नहीं आता। इसके बाद दाहिनी तरफ मुड़कर आगे बढ़ने पर बायें हाथ किले का मुख्य प्रवेश द्वार है। मुख्य द्वार से प्रवेश करने पर एक लम्बा पथरीला रास्ता मिलता है।
Friday, March 16, 2018
एलोरा–धर्माें का संगम (दूसरा भाग)
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गुफा संख्या 29 घूम लेने के बाद अब हमें गुफा संख्या 30-34 में जाना था। इसके लिए हमें पुनः तिराहे तक वापस आकर सड़क पकड़नी पड़ती। मैंने वहाँ तैनात सुरक्षा गार्ड से पूछा तो उसने शार्टकट बता दिया। चट्टानों और झाड़ियों के बीच से होकर जाने वाली पगडण्डी पर हम चलते बने। बसें भी दूर से दिख रही थीं। ऊँचे–नीचे रास्ते पर चलते हुए संगीता कुढ़ रही थी और साथ ही मुझे कोस भी रही थी। दूर पक्की सड़क पर चलती बसों को देखकर यह कुढ़न और भी बढ़ जा रही थी। वैसे यह दूरी आधा किमी से अधिक नहीं है। जल्दी ही हम भी अपनी मंजिल तक पहुँच गये। अर्थात गुफा संख्या 30-34 में।
Friday, March 9, 2018
एलोरा–धर्माें का संगम (पहला भाग)
कल देर शाम हम अजंता से लौटे थे। अच्छा और शुद्ध शाकाहारी होटल खोजने में थोड़ा समय गँवाया। औरंगाबाद सेन्ट्रल बस स्टेशन के आस–पास कुछ देर तक टहलते रहे। तो सोने में थोड़ी देर होनी ही थी। और दिन भर भागदौड़ करने के बाद रात में थोड़ी देर से सोयेंगे तो उठने में भी थोड़ी देर होनी ही थी। और देर का मतलब सुबह उठने में पौने सात बज गये। आज एलोरा की तैयारी थी। कल अजंता में थे। वैसे तो औरंगाबाद से एलोरा की दूरी अजंता की तुलना में काफी कम है लेकिन कल रविवार के दिन अजंता में मनुष्यों की भीड़ और भीड़ के सेल्िफयाना अंदाज ने हमें अंदर तक हिला दिया था और हम जल्दी निकलने के लिये तैयार होेने में काफी तेजी दिखा रहे थे।
Friday, March 2, 2018
अजंता–हमारी ऐतिहासिक धरोहर (दूसरा भाग)
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अजंता की गुफाएं महाराष्ट्र के औरंगाबाद जिले में औरंगाबाद से लगभग 100 किमी की दूरी पर अवस्थित हैं। अपने स्वर्णिम काल के इतिहास की परतों में गुम हाे जाने के बाद 1819 में मद्रास सेना के कुछ यूरोपीय सैनिकों ने अनजाने में ही इन गुफाओं का पता लगाया। बाद में सन 1824 में जनरल सर जेम्स अलेक्जेण्डर ने राॅयल एशियाटिक सोसायटी की पत्रिका में सर्वप्रथम अजंता गुफाओं पर लेख प्रकाशित कर इन्हें शेष विश्व की नजर में लाया।
ये गुफाएँ वाघोरा नदी की घाटी में निकटवर्ती धरातल से 76 मीटर की ऊँचाई पर घोड़े की नाल के आकार में खोदी गयीं हैं। अजंता गुफाओं की समुद्रतल से ऊँचार्इ 439 मीटर या 1440 फुट है।