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Friday, July 7, 2017

भोपाल–राजा भोज के शहर में

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24 मई को दिन में भोजपुर मन्दिर और भीमबेटका की गुफाएं देखने के बाद शाम के 7 बजे तक हम कमरे पर थे। अब समय आराम करने का था क्योंकि दिन में इतनी धूप लगी थी कि शरीर तो क्या आत्मा भी जल उठी थी। लेकिन हमारी किस्मत में आराम कहाँǃ नीरज के मन में एक कीड़ा कुलबुलाने लगा। महाकालेश्वर दर्शन की इच्छा जगी। मैंने भी आधे मन से सहमति दे दी। आधे मन से इसलिए,क्योंकि महाकालेश्वर के दर्शन मैं पहले भी कर चुका था और इस यात्रा में हमारे पास समय कम था। आज रात की ही योजना बन गई। खाना खाकर रात के 9 बजे निकल पड़े भोपाल के आई.एस.बी.टी. स्टेशन के लिए। हमारे मित्र सुरेन्द्र गुप्ता ने बताया था कि उज्जैन के लिए रात के दस बजे तक आराम से बसें मिल जाती हैं। टाउनशिप के सामने से हमने लोकल बस पकड़ी। भोपाल होशंगाबाद रोड पर स्थित औद्योगिक क्षेत्र मण्डीदीप से भोपाल के लिए लोकल बसें चलती हैं। हम ऐसी ही एक बस में चढ़े थे। अब लोकल बस में बैठे हैं और अन्जान जगह है तो बार–बार सिर उचकाकर बाहर देखना तो पड़ेगा ही कि कहाँ तक पहुँचे हैं।
लाख सावधानी के बाद भी बस वाले ने आई.एस.बी.टी. बस स्टेशन से 200 मीटर पहले ही हबीबगंज रेलवे स्टेशन के पास उतार दिया। पैदल चलते हुए बस स्टेशन पहुँचे तो पता लगा कि अभी उज्जैन के लिए कोई बस नहीं। नीरज ने दृढ़ संकल्प लिया कि वापस नहीं जायेंगे। स्टेशन परिसर में स्थित एक–दो अन्य ऑपरेटरों से भी सम्पर्क किया तो नतीजा वही निकला। उल्लेखनीय है कि मध्य प्रदेश में पुरानी राज्य परिवहन निगम वाली व्यवस्था बहुत पहले ही समाप्त की जा चुकी है और यह सेवा अब निजी हाथों में है। वैसे यह निजी सेवा भी पूरी तरह संगठित और समयबद्ध तरीके से संचालित होती है। अलग–अलग निजी संचालक निर्धारित समय पर अपनी बसें चलाते हैं।

काफी पूछताछ करने पर एक दूसरा रास्ता निकला और वो ये कि भोपाल से इन्दौर जाने वाली बस पकड़कर देवास चले चलते हैं और वहाँ से उज्जैन। देवास दोनों रूटों का जंक्शन है। भोपाल से देवास की दूरी 152 किमी है जबकि देवास से उज्जैन लगभग 40 किमी दूर है। समय धीरे–धीरे गुजरता जा रहा था। पता लगा कि इन्दौर की बस रात में 1.15 बजे है। अचानक प्लान बनाने का यही साइड इफेक्ट है। दिन भर में शरीर थक कर चूर हो चुका था। फिर भी किसी तरह से सवा एक बजे का इन्तजार किया गया। बस में सबसे पीछे की सीट मिली जिसे मैं कभी पसन्द नहीं करता। फिर भी महाकाल के नाम पर इतना तो कष्ट झेला ही जा सकता है।
बस अच्छी स्पीड से चली और 25 मई की सुबह पाँच बजे तक देवास पहुँच गयी। वहाँ उतरे तो देवास से उज्जैन की बस लगी थी। ज्यादा इन्तजार नहीं करना पड़ा और 5.20 बजे चलकर यह बस 6.15 बजे उज्जैन पहुँच गयी। उज्जैन में भी बस वहाँ रूकी जहाँ से महाकाल मन्दिर के लिए आटो मिलती है। वैसे अभी हम नित्यकर्म से वंचित थे अतः वहीं पर एक सार्वजनिक स्नानघर में नहा–धोकर लगभग 7.15 बजे पैदल ही मन्दिर की ओर चल पड़े। स्टैण्ड से मन्दिर की यह दूरी लगभग डेढ़ किमी है। मन्दिर पहुँचे तो कोई खास भीड़–भाड़ नहीं दिखी जो मेरे लिए काफी प्रसन्नता का विषय था। वैसे मैं पहले एक बार महाकालेश्वर का दर्शन कर चुका था इसलिए बहुत उत्साहित नहीं था। प्रसाद वगैरह लेकर लाइन में लग गये।

ज्यों–ज्याें अन्दर बढ़ते गये लाइन की भयावहता समझ में आने लगी और गर्भगृह तक पहुँचते–पहुँचते तो स्थिति असहनीय होने लगी क्योंकि शरीर भी बहुत अधिक सहने की स्थिति में नहीं था। इस सारी परिस्थिति की वजह थे मन्दिर के पण्डे जो कि अधिक दक्षिणा के लालच में दूसरे मुख्य द्वार से लोगों को दर्शन करा रहे थे और लाइन में लगे लोग अपनी बारी के लिए छटपटा रहे थे। खैर किसी तरह से 9.30 बजे तक दर्शन हुए और हमने जल्दी से बाहर आकर आटो पकड़ी क्योंकि वापस जाने के लिए बस पकड़नी थी। बस स्टेशन पहुँचे तो  10.30 बजे की बस थोड़ी देर में निकलने वाली थी। जल्दी–जल्दी टिकट बुक कराया गया। जल्दी में पेट को कुछ खुराक भी नहीं मिल पायी। कुरकुरे और फ्रूटी से सन्तोष करना पड़ा। इस बार बिल्कुल आगे अर्थात ड्राइवर के पीछे वाली सीट ली गयी। संयोग से ए.सी. बस मिल गयी जिससे वापसी की यात्रा काफी आरामदायक बन गयी।

उज्जैन आते समय नान ए.सी. स्लीपर बस का किराया भोपाल से देवास का 220 रूपये तथा देवास से उज्जैन का साधारण बस का 35 रूपये लगा था जबकि वापसी का उज्जैन से भोपाल का ए.सी. बस का किराया 330 रूपये लगा। इस किराये में एक छोटी पानी की बोतल और एक छोटा पैकेट कुरकुरे भी शामिल था। महाकाल का नाम लेते हुए 2.30 बजे तक हम भोपाल पहुँच गये। स्टेशन पहुँचकर मध्य प्रदेश की सर्वविख्यात सेव टमाटर की सब्जी और रोटी की आपूर्ति की गयी क्योंकि पेट में चूहे उछल–कूद मचा रहे थे। इसके बाद फिर अपने मित्र सुरेन्द्र की राम कुटिया में पहुँच गये।

26 मई

आज हमारा भोपाल का लोकल दौरा था। मेरा विचार था कि एक आटो बुक कर लिया जाय। परन्तु मित्र ने सलाह दी कि आटो बहुत महंगा पड़ेगा और लोकल बस से घूम लिया जाय। मेरी तो इच्छा बस से घूमने की नहीं थी लेकिन फिर भी दो लोग कोई बात कहें तो मान लेनी चाहिए। सो मैंने भी मान लिया। सबसे पहले पहुँचे ताज उल मस्जिद। पता चला कि आज शुक्रवार है इसलिए अन्दर प्रवेश नहीं मिलेगा। इधर भी अन्दर जाकर कोई नमाज तो पढ़नी नहीं थी इसलिए आगे बढ़े। मित्र ने सलाह दी मस्जिद क्या देखना,कोई मन्दिर देखा जाय। मैं ऐसा भेद नहीं मानता। क्योंकि
"शौके दीदार अगर है तो नजर पैदा कर।"
भोपाल शहर से लगभग 7 किमी की दूरी पर एक जगह है मन भान या मनुआ भान की टेकरी। इसे महावीर गिरि के नाम से भी जाना जाता है। यहाँ एक पहाड़ी पर एक जैन मन्दिर बना है। एक आटो बुक कर हम लोग यहीं चल दिये। पहाड़ी पर ऊपर चढ़ने के लिए रोपवे भी बना है जिसमें दो ही ट्रालियां उस समय दिख रहीं थीं। हमने इसका उपयोग किया और टिकट लेकर ऊपर पहुँचे। काफी सुन्दर जगह है लेकिन तेज धूप व गर्मी की वजह से बिल्कुल सुनसान दिख रही थी और इक्का–दुक्का लैला–मजनूं टाइप के लोग ही दिखाई पड़ रहे थे।
जैन मन्दिर बिल्कुल पहाड़ी की चोटी पर ही बना है। मन्दिर में जैन संत श्री मन भद्र जी की मूर्ति स्थापित है। साथ ही जैन संत श्री विजय सूरी जी,श्री जिंदुत्ता सुरेश्वर जी तथा आचार्य मनुतुंग की चरण पादुकाएं रखी गयी हैं। मन्दिर के एक गेट पर पत्थर पर किसी भाषा में एक लेख उत्कीर्ण है जिसे अभी भी पढ़ा नहीं जा सका है। यह स्थान ओसवाल राजवंश की साधना–स्थली भी रहा है। यहाँ कार्तिक के महीने में एक मेले का आयोजन भी किया जाता है।
मन भान की टेकरी से उतर कर हम पुनः भोपाल की ओर लौटे। अगला लक्ष्‍य था झीलों के शहर भोपाल का प्रसिद्ध बड़ा तालाब। भोपाल निवासी मित्र साथ थे तो आटो बुक करने में कोई विशेष परेशानी नहीं हो रही थी और ज्यादा खर्च भी नहीं लग रहा था।

भोपाल का बड़ा तालाब भोपाल के लिए जीवन रेखा है। इसे अंग्रेजी में अपर लेक भी कहा जाता है। तालाब का कुल जल–भराव क्षेत्रफल 31 वर्ग किमी है। किसी समय यह एशिया की सबसे बड़ी कृत्रिम झील के रूप में विख्यात थी। भोपाल के इस बड़े तालाब का निर्माण 11वीं शताब्दी में परमार राजा भोज ने करवाया था। कहा जाता है कि धार के प्रसिद्ध राजा भोज एक बार एक असाध्य चर्मरोग से पीड़ित हो गये। एक संत ने सलाह दी कि 365 स्रोतों वाला जलाशय बनवाकर उसमें स्नान करें। राजकर्मचारियों ने एक ऐसी घाटी का पता लगाया जो बेतवा नदी के मुहाने पर स्थित थी। लेकिन बेतवा नदी का पानी इस घाटी काे भरने के लिए पर्याप्त नहीं था। इसलिए इस घाटी से 32 किमी पश्चिम में बह रही एक और नदी के पानी को इस घाटी की ओर मोड़ने के लिए एक बाँध बनाया गया। यह बाँध भोजपुर के नजदीक बनाया गया था। इन प्रयासों से जो विशाल जलाशय बना उसका नाम भोजपाला रखा गया।
यह विशाल जलाशय प्रसिद्ध भोजपुर मन्दिर से भोपाल तक फैला हुआ था। इस तालाब के निर्माण के साथ ही इसके आस–पास के क्षेत्र में भोपाल शहर बसना शुरू हुआ। जलाशय के नाम पर ही शहर का नाम भोजपाल पड़ा जो कालान्तर में भोपाल हो गया। भोपाल शहर तालाब के पूर्वी छोर पर बसा है जबकि तालाब के अधिकांश किनारों पर ग्रामीण आबादी निवास करती है। इस तालाब के किनारे पर ही भोपाल शहर के दक्षिण में शहर से सटे हुए वन विहार राष्ट्रीय उद्यान भी स्थित है। भोजपुर के पास तालाब पर बने बाँध को सन् 1405-1434 में तत्कालीन मालवा शासक होशंगशाह ने इस क्षेत्र की यात्रा करते समय,अपनी बीवी की बीमारी की वजह मानकर तोड़ दिया। इससे बाँध का जल चारों तरफ फैल गया और बीच में एक टापू भी निकल गया। वर्तमान में यह टापू ही मण्डीद्वीप या मण्डीदीप के नाम से जाना जाता है।

भोपाल का यह बड़ा तालाब भोपाल निवासियों के लिए कई तरह से उपयोगी है। सबसे बड़ा उपयोग दैनिक उपभोग के पानी का है। शाम के समय तालाब के किनारे टहलने,बोटिंग करने और पिकनिक मनाने में भी इसका उपयोग होता है। तालाब के बीच में एक टापू है जिसमें किसी मुस्लिम संत की मजार बनी है। तालाब से सटे स्थित राष्ट्रीय उद्यान जैव विविधता की दृष्टि से धनी है। अपने लगभग 1000 वर्ष लम्बे जीवनकाल में यह तालाब एक प्राकृतिक आर्द्र भूमि में परिवर्तित हो गया है जिससे पक्षियों की अनेकों प्रजातियां यहां निवास करने लगीं हैं। प्रारम्भ से लेकर अबतक तालाब के आस–पास बहुत कुछ बदल गया है लेकिन तालाब को अस्तित्व में लाने वाला राजाभोज का बनवाया हुआ मिट्टी का वह बाँध आज भी अपने पुराने स्वरूप में है। तालाब के किनारे एक स्थान पर राजा भोज की प्रतिमा स्थापित की गयी है।
तो दिनभर भोपाल की सड़कों पर इधर–उधर भटकने के बाद हम शाम को फिर मित्र के घर पहुँच गये। दिन भर का समय गँवाने के बाद भी भोपाल से ठीक से परिचित नहीं हो सके। जिसका पछतावा बाद में भी बना रहा। आज की रात हमें भोपाल एक्सप्रेस से ग्वालियर जाना था जो कि 9.20 बजे थी। इसलिए शाम को खाना पैक कराकर स्टेशन के लिए चल पड़े।

ताज उल मस्जिद
मन भान की टेकरी से भोपाल शहर का विहंगम दृश्य
मन भान की टेकरी पर स्थित जैन मन्दिर


जैन मन्दिर के पास स्थित एक शैल संरचना





बड़ा तालाब के किनारे राजा भोज की मूर्ति


बड़ा तालाब

बड़ा तालाब के किनारे बने कुछ माडल–




शाम के समय बड़ा तालाब

अगला भाग ः ग्वालियर–जयविलास पैलेस

सम्बन्धित यात्रा विवरण–
1. सांची–महानता की गौरवगाथा
2. भोजपुर मन्दिर–एक महान कृति
3. भीमबेटका–पूर्वजों की निशानी
4. भोपाल–राजा भोज के शहर में
5. ग्वालियर–जयविलास पैलेस
6. ग्वालियर का किला

भोपाल शहर का गूगल मैप–

4 comments:

  1. भोपाल की शान है यहाँ का सागर जैसा विशाल तालाब,

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    1. धन्यवाद भाई साहब आप ब्लाग पर आते हैं तो साहस बढ़ जाता है

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  2. असली घुमक्कड़ी वही होती है जिसमे प्लानिंग नहीं होती है बढ़िया पोस्ट

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    1. धन्यवाद। बिना प्लानिंग के थोड़ा झेलना पड़ता है।

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