मई के महीने में मध्य प्रदेश की यात्रा पर शायद ही कोई जाता होगा। लेकिन मैंने लगभग 10 दिन की ऐसी यात्रा की थी कि उसकी याद मन से निकलने को तैयार न थी। अब इसे भुलाने के लिए किसी ठण्डी जगह जाना जरूरी महसूस होने लगा। तो जून के महीने में शरीर को ठण्डक का एहसास दिलाने के लिए हिमाचल प्रदेश की वादियों में डलहौजी की ओर निकल पड़े। हमेशा की तरह मैं और मेरी चिरसंगिनी संगीता। सबसे पहली लड़ाई– घर से बनारस की। आधा दिन तो इसी में निकल जाता है और इसके बाद कहीं वास्तविक युद्ध शुरू हो पाता है।
Friday, July 28, 2017
Friday, July 21, 2017
ग्वालियर का किला
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28 मई
आज हमारी इस यात्रा का आखिरी दिन था और आज का कार्यक्रम था ग्वालियर का किला। कल जब हम ग्वालियर पहुँचे और आटो से इधर–उधर भाग–दौड़ कर रहे थे तो कई जगह से ग्वालियर के किले की बाहरी दीवारों की एक झलक दिखाई पड़ी थी। काफी रोमांचक लगा। आज हम बिल्कुल पास से इसे देखने जा रहे थे। अपने होटल के पास से ही हमने आटो पकड़ी और आधे घण्टे के अन्दर 15–20 रूपये में किले के गेट तक पहुँच गये।
Friday, July 14, 2017
ग्वालियर–जयविलास पैलेस
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26 मई की रात को दिल्ली जाने वाली भोपाल एक्सप्रेस समय से चली और ऐसे ही समय से चलती रहती तो भोर में 2.55 बजे यह ग्वालियर पहुँच गयी होती। लेकिन रात में हमारे सोते रहने का फायदा उठाकर आँधी–पानी ने हमला किया और रेलवे के तार वगैरह टूट गये और इसकी मरम्मत होने में ट्रेन 4 घण्टे लेट हो गयी। ग्वालियर पहुँचने में 7 बज गये। वैसे इससे हम लोगों का समय के अतिरिक्त और कोई विशेष नुकसान नहीं हुआ। लेकिन हमारे लिए समय ही सबसे महत्वपूर्ण चीज थी। ग्वालियर पहुँच कर भी वैसा ही हुआ जैसा कि हर जगह होता है। हम लोग स्टेशन से बाहर प्लेटफार्म नं0 1 की ओर बाहर निकले और ऑटो वालों की शरण में पड़े।
26 मई की रात को दिल्ली जाने वाली भोपाल एक्सप्रेस समय से चली और ऐसे ही समय से चलती रहती तो भोर में 2.55 बजे यह ग्वालियर पहुँच गयी होती। लेकिन रात में हमारे सोते रहने का फायदा उठाकर आँधी–पानी ने हमला किया और रेलवे के तार वगैरह टूट गये और इसकी मरम्मत होने में ट्रेन 4 घण्टे लेट हो गयी। ग्वालियर पहुँचने में 7 बज गये। वैसे इससे हम लोगों का समय के अतिरिक्त और कोई विशेष नुकसान नहीं हुआ। लेकिन हमारे लिए समय ही सबसे महत्वपूर्ण चीज थी। ग्वालियर पहुँच कर भी वैसा ही हुआ जैसा कि हर जगह होता है। हम लोग स्टेशन से बाहर प्लेटफार्म नं0 1 की ओर बाहर निकले और ऑटो वालों की शरण में पड़े।
Friday, July 7, 2017
भोपाल–राजा भोज के शहर में
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24 मई को दिन में भोजपुर मन्दिर और भीमबेटका की गुफाएं देखने के बाद शाम के 7 बजे तक हम कमरे पर थे। अब समय आराम करने का था क्योंकि दिन में इतनी धूप लगी थी कि शरीर तो क्या आत्मा भी जल उठी थी। लेकिन हमारी किस्मत में आराम कहाँǃ नीरज के मन में एक कीड़ा कुलबुलाने लगा। महाकालेश्वर दर्शन की इच्छा जगी। मैंने भी आधे मन से सहमति दे दी। आधे मन से इसलिए,क्योंकि महाकालेश्वर के दर्शन मैं पहले भी कर चुका था और इस यात्रा में हमारे पास समय कम था। आज रात की ही योजना बन गई। खाना खाकर रात के 9 बजे निकल पड़े भोपाल के आई.एस.बी.टी. स्टेशन के लिए। हमारे मित्र सुरेन्द्र गुप्ता ने बताया था कि उज्जैन के लिए रात के दस बजे तक आराम से बसें मिल जाती हैं। टाउनशिप के सामने से हमने लोकल बस पकड़ी। भोपाल होशंगाबाद रोड पर स्थित औद्योगिक क्षेत्र मण्डीदीप से भोपाल के लिए लोकल बसें चलती हैं। हम ऐसी ही एक बस में चढ़े थे। अब लोकल बस में बैठे हैं और अन्जान जगह है तो बार–बार सिर उचकाकर बाहर देखना तो पड़ेगा ही कि कहाँ तक पहुँचे हैं।
24 मई को दिन में भोजपुर मन्दिर और भीमबेटका की गुफाएं देखने के बाद शाम के 7 बजे तक हम कमरे पर थे। अब समय आराम करने का था क्योंकि दिन में इतनी धूप लगी थी कि शरीर तो क्या आत्मा भी जल उठी थी। लेकिन हमारी किस्मत में आराम कहाँǃ नीरज के मन में एक कीड़ा कुलबुलाने लगा। महाकालेश्वर दर्शन की इच्छा जगी। मैंने भी आधे मन से सहमति दे दी। आधे मन से इसलिए,क्योंकि महाकालेश्वर के दर्शन मैं पहले भी कर चुका था और इस यात्रा में हमारे पास समय कम था। आज रात की ही योजना बन गई। खाना खाकर रात के 9 बजे निकल पड़े भोपाल के आई.एस.बी.टी. स्टेशन के लिए। हमारे मित्र सुरेन्द्र गुप्ता ने बताया था कि उज्जैन के लिए रात के दस बजे तक आराम से बसें मिल जाती हैं। टाउनशिप के सामने से हमने लोकल बस पकड़ी। भोपाल होशंगाबाद रोड पर स्थित औद्योगिक क्षेत्र मण्डीदीप से भोपाल के लिए लोकल बसें चलती हैं। हम ऐसी ही एक बस में चढ़े थे। अब लोकल बस में बैठे हैं और अन्जान जगह है तो बार–बार सिर उचकाकर बाहर देखना तो पड़ेगा ही कि कहाँ तक पहुँचे हैं।
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