धार्मिक और ऐतिहासिक नगरी वाराणसी से लगभग 9 किमी दूर उत्तर–पूर्व में स्थित सारनाथ भगवान बुद्ध के जीवन से सम्बन्धित चार प्रमुख स्थानों– कपिलवस्तु, बोधगया, सारनाथ तथा कुशीनगर में से एक है। कपिलवस्तु में उनका जन्म हुआ, बोधगया में उन्हें ज्ञान प्राप्त हुआ, सारनाथ में उन्होंने अपने शिष्यों को पहला उपदेश प्रदान किया जिसे धर्मचक्रप्रवर्तन कहा जाता है तथा कुशीनगर में उन्हें निर्वाण प्राप्त हुआ। तो आज मैं इसी बुद्ध नगरी सारनाथ में सशरीर उपस्थित था।
सारनाथ से ही बौद्ध धर्म के प्रचार–प्रसार का आरम्भ माना जाता है। सारनाथ में बुद्ध ने अपना पहला उपदेश 533 ई0 पूर्व में दिया था लेकिन इसके बाद सारनाथ इतिहास के गर्त में समा गया। क्योंकि इसके बाद कई सौ सालों तक सारनाथ के इतिहास के बारे में कुछ विशेष पता नहीं चलता है। पुनः मौर्य सम्राट अशोक के काल में विभिन्न स्तूपों एवं बौद्ध मठों का निर्माण हुआ जिसकी वजह से आज का सारनाथ प्रसिद्ध है और जिसे देखने तमाम देशी और विदेशी पर्यटक यहां खिंचे चले आते हैं। अशोक के उत्तराधिकारियों के काल में सारनाथ का महत्व कम हो गया। वैसे सारनाथ के इतिहास में गुप्तकाल सबसे गौरवपूर्ण समय रहा। इसके बाद के काल में न जाने कितनी बार सारनाथ का उत्थान और पतन हुआ होगा लेकिन मेरे लिए सारनाथ का इतना ही इतिहास–ज्ञान काफी था और एक दिन अचानक ही बिना किसी पूर्व तैयारी के मैं वाराणसी जा धमका और वहां से सारनाथ।
अच्छा,तो अब सारनाथ के इतिहास को छोड़कर इसके भूगोल पर नजर डालते हैं। यदि आप वाराणसी से थोड़े–बहुत परिचित हैं तो सारनाथ पहुंचना कोई भारी काम नहीं है। वाराणसी के मुख्य रेलवे स्टेशन कैण्ट से हर तरह के साधन उपलब्ध हैं। पूरी तरह रिजर्व वाहन तो महंगा पड़ेगा लेकिन बहुत ज्यादा नहीं। छोटी ऑटो रिक्शा वाले पांच सवारी बैठाते हैं। अकेले अगर रिजर्व करेंगे तो पांच का किराया अकेले चुकाना पड़ेगा। दूसरी गाड़ियां और ज्यादा महंगी पड़ेगीं। मैंने कोई रिजर्वेशन नहीं किया। कैण्ट से पाण्डेयपुर वाली ऑटो पकड़ी– किराया 15 रूपये। पाण्डेयपुर से आशापुर वाली ऑटो में बैठा– किराया 10 रूपये। फिर आशापुर से सारनाथ वाली ऑटो– किराया केवल 5 रूपये। अर्थात कुल 30 रूपये। ऑटो में बैठकर बहुत ज्यादा इन्तजार भी नहीं करना है। औसतन लगभग 5 मिनट। ऑटो से जहां उतरे, वहीं आगे वाली ऑटो भी मिल जायेगी, कहीं खोजना नहीं है। इसके अतिरिक्त वाराणसी में रहने और खाने के लिए होटलों की कोई समस्या नहीं है। ये यहां पर हर बजट में उपलब्ध हैं बशर्ते थोड़ा सा सतर्क रहा जाय। सतर्क इसलिए कि हर कदम पर लुट जाने के पूरे चांस रहते हैं।
सारनाथ में ऑटो स्टैण्ड पहुंचने के कुछ पहले ही सारनाथ की ऐतिहासिकता का दर्शन शुरू हो जाता है। सबसे पहले सड़क के बायें किनारे पर जो बड़ी संरचना दिखती है वह है चौखण्डी स्तूप। बेहतर है कि ऑटो रिक्शा को यहीं छोड़ दिया जाय और पैदल यात्रा शुरू कर दी जाय। मैंने भी यही किया।
चौखण्डी स्तूप सारनाथ की मुख्य संरचना धमेख स्तूप से लगभग 10 मिनट की पैदल दूरी पर है और इस बीच में और भी मंदिर और इमारतें हैं इसलिए यहां पैदल चलना ही ठीक है। बौद्ध धर्म में स्तूप मृत्यु का प्रतीक है लेकिन इस हिसाब से यह स्तूप कुछ अलग है। इसके बारे में कहा जाता है कि चूंकि बुद्ध ने यहां अपने शिष्यों को पहला उपदेश प्रदान किया था, इसलिए स्मारक के रूप में इस स्तूप का निर्माण किया गया था। इस स्तूप में ईंटों के बने हुए चबूतरे हैं जो ऊपर की ओर आकार में घटते हुए एक के ऊपर एक स्थापित हैं और इनकी संख्या 3 है। सबसे ऊपर एक छोटी सी बुर्जी बनी है जिसमें आठ पार्श्व हैं।
और हां, सड़क किनारे बोर्ड पर ऋषिपत्तन मार्ग लिखा देखकर याद आया कि सारनाथ का प्राचीन नाम ऋषिपत्तन या मृगदाव भी है।
और हां, सड़क किनारे बोर्ड पर ऋषिपत्तन मार्ग लिखा देखकर याद आया कि सारनाथ का प्राचीन नाम ऋषिपत्तन या मृगदाव भी है।
चौखण्डी स्तूप से आगे चलने पर बायें किनारे पर थाई मन्दिर दिखता है जिसे थाई समुदाय के लाेगों के सहयोग से बनवाया गया है। यह एक नया बना मन्दिर है जिसके परिसर में बुद्ध की लगभग 80 फीट ऊंची विशाल प्रतिमा स्थापित की गयी है। इस मन्दिर को सुन्दर पार्कों व अन्य कलाकृतियों से सजाया गया है।
इस मन्दिर से थोड़ा ही आगे बढ़ने पर दाहिने हाथ संग्रहालय दिखता है। यह भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण का प्राचीनतम संग्रहालय है। सारनाथ में 1904 में खुदाई आरम्भ हुई थी अतः खुदाई में प्राप्त वस्तुओं के संरक्षण एवं अध्ययन हेतु 1910 में इस संग्रहालय की स्थापना की गयी। संग्रहालय का टिकट बिक्री काउण्टर इसके अपोजिट साइड अर्थात सड़क के बायें किनारे पर है। इसी कमरे में धमेख स्तूप का टिकट काउण्टर भी है। संग्रहालय का टिकट 5 रूपये तथा धमेख स्तूप का 15 रूपये है लेकिन सावधानǃ यह दरें केवल भारतीयों के लिए हैं। विदेशी पर्यटकों के लिये यह 150 रूपये है। संग्रहालय के अन्दर कैमरा ले जाना प्रतिबन्धित है, इसलिए मैंने कैमरे व बैग को लाॅकर में जमा कर दिया। संग्रहालय के अन्दर रखी ऐतिहासिक वस्तुएं वास्तव में सारनाथ के उस प्राचीन गौरव को पुनर्स्थापित करती हैं जो उसे मौर्य सम्राट अशोक के समय प्राप्त था। संग्रहालय शुक्रवार को बन्द रहता है।
संग्रहालय से निकलकर मैं धमेख स्तूप की ओर बढ़ा। यह एक बड़ी चारदीवारी के अन्दर स्थित प्रांगण में स्थापित है। इस चारदीवारी के अन्दर धमेख स्तूप के अतिरिक्त सारनाथ का उत्खनित भाग भी अवस्थित है। यह उत्खनित भाग बहुत ही महत्वपूर्ण है क्योंकि इसमें कई प्राचीन इमारतों के खण्डहर प्राप्त हुए हैं। इनमें मूलगंध कुटी विहार, धर्मराजिका स्तूप, बौद्ध मठ और प्रसिद्ध अशोक स्तम्भ इत्यादि सम्मिलित हैं। अशोक स्तम्भ काफी ऊंचा था लेकिन वर्तमान में इसका टूटा हुआ निचला भाग ही उपलब्ध है। धर्मराजिका स्तूप की अब निचली वेदिका ही अवशेष है। इस प्रांगण की चारदीवारी से सटे एक जैन मंदिर भी है। जैन मंदिर में भीड़–भाड़ नहीं है और कम भीड़ मुझे हमेशा ही अच्छी लगती है। लेकिन धमेख स्तूप के प्रांगण में से इसमें प्रवेश करने के लिए कोई रास्ता नहीं है और इसके लिए पुनः मुख्य मार्ग पर आना पड़ता है।
मूलगंध कुटी विहार एक विशाल मंदिर का अवशेष है जिसके नाम पर यहां से कुछ दूरी पर एक नया मंदिर भी बन गया है जो इसी प्रांगण की चारदीवारी से सटे एक दूसरे प्रांगण में है। यह नवीन मंदिर बहुत ही भव्य एवं दर्शनीय है। इस नवीन मंदिर के पास पांच शिष्यों को उपदेश देती हुई एक बुद्ध प्रतिमा भी स्थापित है। मंदिर के चारों तरफ हरा–भरा खुला पार्क है जिसमें शांति के साथ कुछ पल बिताये जा सकते हैं। इस मन्दिर की स्थापना महाबोधि सोसायटी के द्वारा की गई है। महाबोधि सोसायटी सम्भवतः श्रीलंका से सम्बन्धित है। नवीन मूलगंध कुटी विहार मंदिर के प्रांगण से होकर सारनाथ के डियर पार्क का रास्ता भी है। यह डियर पार्क एक छोटा–मोटा चिड़ियाघर है जो देखभाल के अभाव में अपना आकर्षण खो रहा है। हां,वाराणसी के निवासियों के लिए घूमने–टहलने के लिए एक स्थान जरूर उपलब्ध कराता है।
धमेख स्तूप से नवीन मूलगंध कुटी विहार मंदिर की ओर जाते मुख्य मार्ग पर ही बायें हाथ एक तिब्बती मंदिर दिखाई पड़ता जिसे बुद्ध धर्म संघ द्वारा स्थापित किया गया है। यह एक छोटा सा मंदिर है लेकिन इसकी तिब्बती शैली बहुत ही सुन्दर लगती है।
सारनाथ वैसे तो मुख्यतः बौद्ध धर्म से सम्बन्धित है लेकिन इसे जैन एवं हिन्दू धर्म में भी काफी महत्व प्राप्त है। जैन ग्रंथों के अनुसार इसका नाम सिंहपुर है। कहा जाता है कि ग्यारहवें जैन तीर्थंकर श्रेयांसनाथ का जन्म यहां हुआ था। हिन्दुओं के लिए महत्वपूर्ण सारंगनाथ महादेव का मंदिर भी यहां धमेख स्तूप से लगभग 1 किमी की दूरी पर स्थापित है। माना जाता है कि इन्हीं सारंगनाथ के नाम पर इस स्थान का नाम सारनाथ पड़ा। प्रसिद्धि बौद्ध धर्म के कारण और नाम हिन्दू धर्म की वजह सेǃ
कुल मिलाकर दिनभर पैदल चला था और थकान हो गयी थी इसलिए वापस लौटना पड़ा। सारनाथ की यात्रा पूरी हो चुकी थी। सारनाथ रहने और खाने की दृष्टि से उपयुक्त स्थान नहीं है। हां,नाश्ते–पानी की पर्याप्त दुकानें सड़क पर टहलते हुए कहीं भी मिल जायेंगी। सजावटी वस्तुओं ओर गिफ्ट आइटम की दुकानें भी हर कदम पर दिखती रहेंगी लेकिन मोलभाव में कच्चे आदमी के लिए धोखा खाना मुमकिन है।
अगला भाग ः रामनगर और चुनार
सम्बन्धित यात्रा विवरण–
सारनाथ का गूगल फोटो–
मूलगंध कुटी विहार एक विशाल मंदिर का अवशेष है जिसके नाम पर यहां से कुछ दूरी पर एक नया मंदिर भी बन गया है जो इसी प्रांगण की चारदीवारी से सटे एक दूसरे प्रांगण में है। यह नवीन मंदिर बहुत ही भव्य एवं दर्शनीय है। इस नवीन मंदिर के पास पांच शिष्यों को उपदेश देती हुई एक बुद्ध प्रतिमा भी स्थापित है। मंदिर के चारों तरफ हरा–भरा खुला पार्क है जिसमें शांति के साथ कुछ पल बिताये जा सकते हैं। इस मन्दिर की स्थापना महाबोधि सोसायटी के द्वारा की गई है। महाबोधि सोसायटी सम्भवतः श्रीलंका से सम्बन्धित है। नवीन मूलगंध कुटी विहार मंदिर के प्रांगण से होकर सारनाथ के डियर पार्क का रास्ता भी है। यह डियर पार्क एक छोटा–मोटा चिड़ियाघर है जो देखभाल के अभाव में अपना आकर्षण खो रहा है। हां,वाराणसी के निवासियों के लिए घूमने–टहलने के लिए एक स्थान जरूर उपलब्ध कराता है।
धमेख स्तूप से नवीन मूलगंध कुटी विहार मंदिर की ओर जाते मुख्य मार्ग पर ही बायें हाथ एक तिब्बती मंदिर दिखाई पड़ता जिसे बुद्ध धर्म संघ द्वारा स्थापित किया गया है। यह एक छोटा सा मंदिर है लेकिन इसकी तिब्बती शैली बहुत ही सुन्दर लगती है।
सारनाथ वैसे तो मुख्यतः बौद्ध धर्म से सम्बन्धित है लेकिन इसे जैन एवं हिन्दू धर्म में भी काफी महत्व प्राप्त है। जैन ग्रंथों के अनुसार इसका नाम सिंहपुर है। कहा जाता है कि ग्यारहवें जैन तीर्थंकर श्रेयांसनाथ का जन्म यहां हुआ था। हिन्दुओं के लिए महत्वपूर्ण सारंगनाथ महादेव का मंदिर भी यहां धमेख स्तूप से लगभग 1 किमी की दूरी पर स्थापित है। माना जाता है कि इन्हीं सारंगनाथ के नाम पर इस स्थान का नाम सारनाथ पड़ा। प्रसिद्धि बौद्ध धर्म के कारण और नाम हिन्दू धर्म की वजह सेǃ
कुल मिलाकर दिनभर पैदल चला था और थकान हो गयी थी इसलिए वापस लौटना पड़ा। सारनाथ की यात्रा पूरी हो चुकी थी। सारनाथ रहने और खाने की दृष्टि से उपयुक्त स्थान नहीं है। हां,नाश्ते–पानी की पर्याप्त दुकानें सड़क पर टहलते हुए कहीं भी मिल जायेंगी। सजावटी वस्तुओं ओर गिफ्ट आइटम की दुकानें भी हर कदम पर दिखती रहेंगी लेकिन मोलभाव में कच्चे आदमी के लिए धोखा खाना मुमकिन है।
चौखण्डी स्तूप के शीर्ष पर बना बुर्ज |
थाई मन्दिर का प्रवेश द्वार |
थाई मन्दिर |
थाई मन्दिर एवं परिसर में स्थापित 80 फीट ऊंची बुद्ध प्रतिमा |
थाई मन्दिर परिसर में बनी अशोक स्तम्भ शीर्ष की प्रतिकृति |
पुरातत्व विभाग का संग्रहालय |
धमेख स्तूप परिसर के अन्दर का दृश्य |
धमेख स्तूप परिसर के अन्दर धमेख स्तूप एवं साथ में दिखता जैन मन्दिर |
धमेख स्तूप परिसर के अन्दर पूजन–अर्चन के लिए एकत्रित विदेशी श्रद्धालु जन |
अशोक स्तम्भ |
धर्मराजिका स्तूप |
धमेख स्तूप के बगल में दिखता नवीन मूलगंध कुटी विहार मन्दिर |
धमेख स्तूप पर उकेरी गयी आकृतियां |
बुद्ध धर्म संघ द्वारा स्थापित तिब्बती मंदिर |
नवीन मूलगंध कुटी विहार मंदिर |
शिष्यों का उपदेश देते बुद्ध |
जैन मंदिर |
सम्बन्धित यात्रा विवरण–
सारनाथ का गूगल फोटो–
रोचक और लाभकारी
ReplyDeleteसारनाथ और नालंदा की कुछ कलाकृतियां बिलकुल एक जैसी दिखती हैं
अभयानंद जी ने मेरे मुंह की बात छीन ली यही मैं कहने वाला था । बक्सर जाते हुए हर बार सारनाथ होकर गुजरता हूं और हर बार यह सोचता हूं कि अगली बार जरूर सारनाथ घूमूंगा परंतु संयोग नहीं बन पाता । आज आपकी इस पोस्ट की वजह से सारनाथ हमने भी घूम लिया । आपने सारंग नाथ शिव मंदिर के दर्शन नहीं कराए । सारनाथ का बहुत अच्छा और विस्तृत वर्णन पढ़कर मन प्रसन्न हुआ इसके लिए आपको बहुत बहुत धन्यवाद ।
ReplyDeleteअभयानंद जी ने मेरे मुंह की बात छीन ली यही मैं कहने वाला था । बक्सर जाते हुए हर बार सारनाथ होकर गुजरता हूं और हर बार यह सोचता हूं कि अगली बार जरूर सारनाथ घूमूंगा परंतु संयोग नहीं बन पाता । आज आपकी इस पोस्ट की वजह से सारनाथ हमने भी घूम लिया । आपने सारंग नाथ शिव मंदिर के दर्शन नहीं कराए । सारनाथ का बहुत अच्छा और विस्तृत वर्णन पढ़कर मन प्रसन्न हुआ इसके लिए आपको बहुत बहुत धन्यवाद ।
ReplyDeleteबहुत बहुत धन्यवाद जी अपना बहुमूल्य समय देने के लिए। बुद्ध से संबंधित सभी स्थलाें में कुछ न कुछ साम्य है ही। मैंने कुशीनगर भी देखा है। वैसे सारनाथ में बारीकी से निरीक्षण करने के लिए अभी बहुत कुछ है।
Deleteबहुत बढ़िया ब्रजेश भाई बनारस गए 7 साल हो गए देखो कब किस्मत में लिखा होता है
ReplyDeleteधन्यवाद जी। वैसे 7 साल तो बहुत लम्बा हो गया। एक बार घूम ही लीजिए।
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