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Friday, January 13, 2017

वाराणसी दर्शन–नया विश्वनाथ मन्दिर

भोले बाबा की नगरी–
वाराणसी
मां गंगा का नगर,भगवान बुद्ध का नगर,फक्कड़ों का नगर,पंडो–पुजारियों का नगर,मन्दिरों का नगर,घाटों का नगर,गलियों का नगर,अखाड़ों का नगर,सन्तों का नगर,औघड़ों का नगर ............
और भी पता नहीं कितने विशेषण जुड़े हैं इस शहर के साथ।
लेकिन वाराणसी या बनारस अपनी ऐतिहासिकता के लिए प्रसिद्ध है। इसकी जड़ें इतिहास में हैं जिन्हें खोजते हुए तमाम विदेशी और हम भारतीय भी इसकी ओर खिंचे चले आते हैं।
तो हम भी एक दिन चल पड़े बनारस। जनवरी का पहला सप्ताह। कड़कड़ाती ठंड और कपड़ों व शरीर के साथ साथ आत्मा काे भिगोता कुहरा। मौसम की बेवफाई और यात्रा का उत्साह। देखते हैं कौन बीस है और कौन उन्नीस।
तो हमने भी– हम यानी मैं और संगीता ने,बस पकड़ी और अपने घर से लगभग 140 किमी दूर पहुंच गये घाटों के शहर वाराणसी में। बस इसलिए पकड़ी कि इस मौसम में ट्रेनों को उनका कंट्रोल रूम नहीं बल्कि कोहरा कंट्रोल करता है।

इस बार हमारी इच्छा थी बनारस के घाटों पर भ्रमण करने की और शाम को गंगा आरती देखने की। समय काफी था और सुबह के समय कोहरा भी काफी था, अतः घाट पर जाने से पहले सोचा कि क्यों न कहीं और भी घूम लिया जाय। इसलिए बनारस हिन्दू विश्वविद्यालय स्थित विश्वनाथ मन्दिर की ओर चल पड़े।
बनारस की कुछ अपनी विशेषताएं हैं जिन्हें बनारस घूमने से पहले जान लेना आवश्यक है। बनारस का रेलवे स्टेशन कैण्ट में है और बस स्टेशन भी पास में ही है। प्राइवेट बस स्टैण्ड 1 किमी दूर चौकाघाट में है। बनारस कैण्ट से इसके हर भाग में पहुंचने के लिए छोटी वाली ऑटो रिक्शा उपलब्ध है। ये इसकी सबसे अच्छी विशेषता है। लेकिन इसका एक दूसरा पहलू भी है। बनारस बहुत पुराना बसा शहर है और इस वजह से इसकी सड़कें और गलियां बहुत ही संकरी हैं। बढ़ती आबादी की वजह से ऑटो रिक्शा की बढ़ती संख्या और संकरी सड़कें– सोच लीजिए कितना भयंकर जाम लग सकता है और कहीं जाम में फंस गये तो हो गया घूमना।
बनारस की ऐतिहासिकता से प्रभावित होकर सारी दुनिया से पर्यटक यहां आते हैं। अतः बनारस में रहने और खाने के लिए हर बजट के होटलों की भरमार है और कोई भी इस दृष्टि से निश्चिन्त होकर बनारस घूमने आ सकता है। बनारस घूमने के लिए अगर महंगी गाड़ियां चाहिए तो वो भी उपलब्ध हैं और नहीं तो फिर आटो रिक्शा तो हैं ही। अगर शहर की सड़कों की जानकारी है तो आटो पकड़ते जाइए और घूमते जाइए और नहीं तो सस्ते में आटो ही बुक कर लीजिए। आटो वाले पांच सवारी बैठाते हैं और रिजर्व में पांच का ही किराया मांगते हैं। हां,अगर कोई विदेशी हुआ तो उसे लूटने के लिए भी बेहिचक तैयार रहते हैं।

सुबह के 10 बजे तक विश्वनाथ मन्दिर के दर्शन हेतु हम बी.एच.यू. पहुंच चुके थे लेकिन कोहरा इतना अधिक था कि मन्दिर का शिखर पूरी तरह छ्पिा हुआ था। तो हमने कुछ समय चाय–नाश्ते में गंवाया और 50 रूपये प्लेट का मसाला–डोसा हजम किया। तब तक धूप खिल गई और शानदार नजारा सामने था। विश्वनाथ मन्दिर का भव्य स्वरूप देखकर मन प्रफुल्लित हाे गया। कोहरे का कुछ असर अभी भी था इसलिए फोटो तो बहुत अच्छी नहीं आ रही थी फिर भी ठीक–ठाक थी। बनारस कैण्ट स्टेशन से बी.एच.यू. की दूरी लगभग 7 किमी है।
यह मन्दिर नया विश्वनाथ मन्दिर अथवा बिरला मन्दिर के नाम से भी जाना जाता है। क्योंकि पुराने विश्वनाथ जी का मन्दिर तो दशाश्वमेध घाट पर स्थित काशी विश्वनाथ मन्दिर ही है। नये विश्वनाथ मन्दिर का निर्माण सन 1931 से 1966 के बीच हुआ। इस मन्दिर का निर्माण बी.एच.यू. के संस्थापक पं0 मदन मोहन मालवीय के प्रयासों एवं बिरला परिवार के आर्थिक सहयोग से हुआ। इसी कारण इसे बिरला मन्दिर भी कहा जाता है। यह मन्दिर बी.एच.यू. के मुख्य गेट से लगभग 2 किमी अन्दर अवस्थित है।
मन्दिर अधिकांशतः मार्बल से बना हुआ है। यह मन्दिर भारत के कुछ सबसे ऊंचे मन्दिरों मे से एक है। इसकी कुल ऊंचाई 77 मीटर या 253 फीट है। वैसे तो यह मन्दिर मुख्य रूप से भगवान शिव को समर्पित है लेकिन इसमें सम्मिलित रूप से कुल नौ देवी–देवताओं के मन्दिर हैं। इसमें नीचे के तल पर भगवान शिव के अलावा नटराज,पार्वती,गणेश,सरस्वती,पंचमुखी महादेव,हनुमान एवं नन्दी की मूर्तियां हैं जबकि प्रथम तल पर महामाया,शंकर तथा लक्ष्‍मीनारायण की मूर्तियां स्थापित हैं। मन्दिर के अन्दर फोटोग्राफी प्रतिबन्धित है। कहीं भी इस तरह का प्रतिबन्ध मुझे बहुत अखरता है।
यह मन्दिर हमारे भारत के अन्य सामान्य मन्दिरों की तुलना में काफी कुछ भिन्न है। यहां सफाई व्यवस्था बहुत ही अच्छी है। दूसरे मन्दिरों की तरह दर्शनार्थियों को बेवकूफ बनाने वाले पण्डे–पुजारी नहीं हैं। अत्यधिक भीड़–भाड़ एवं एवं उसकी वजह से लगने वाली लाइन नहीं है। नहीं तो मेरे जैसा भीड़ से डरने वाला आदमी तो मन्दिरों की भीड़ देखकर दूर से ही हाथ जोड़कर भगवान से यह प्रार्थना करते हुए लौट आता है कि,‘हे भगवान तुम मुझे सपने में ही आकर दर्शन दे देना। इस भीड़ के धक्के खाने की कुव्वत मेरे अन्दर नहीं है।‘ मेरे साथ कई बार ऐसा हो भी चुका है।

खैर मन्दिर में भीड़ नहीं थी तो काफी आराम से हमने अन्दर और बाहर मन्दिर का सूक्ष्‍म निरीक्षण किया। वास्तुकला की कोई विशेष जानकारी नहीं है इसलिए इस बारे कुछ विशेष मैं नहीं बता सकता। मन्दिर के बाहर चारों आधुनिक विशेषता वाले पार्क बनाये गये हैं जिनमें आराम भी फरमाया जा सकता है साथ ही साथ मन्दिर की सुन्दरता का दर्शन भी किया जा सकता है। अगर मन्दिर न भी हो तो ये पार्क भी खूबसूरती में कहीं कम नहीं हैं।
मन्दिर से निकलकर हमने बी.एच.यू. परिसर में ही स्थित भारत कला भवन जाने का निश्चय किया जो कि प्राचीन मूर्तियों,सिक्कों का अनुपम संग्रहालय है। मन्दिर से इसकी दूरी लगभग 1 किमी है लेकिन समय बचाने के लिहाज से हमने 20 रूपये में एक रिक्शा लिया और अगले 5 मिनट में भारत कला भवन के गेट पर पहुंच गये। संग्रहालय के अन्दर कैमरा,मोबाइल,पर्स वगैरह ले जाना प्रतिबन्धित है और इसे गेट के बाहर ही जमा करना पड़ा। संग्रहालय का टिकट हम लट्ठमार भारतीयों के लिए केवल 15 रूपये तथा अंग्रेजी पढ़े–लिखे विदेशियों के लिए 150 रूपये है।
संग्रहालय में प्राचीन भारत गुप्त काल,कुषाण काल आदि राजवंशों की,खुदाई में प्राप्त मृण्मूर्तियों,पत्थर की मूर्तियों,सिक्कों इत्यादि का अनमोल संग्रह है। इन सबके बारे में एक–एक कर बताना तो संभव ही नहीं है क्योंकि इनकी संख्या कई हजारों में है। बी.एच.यू. के संस्थापक पं0 मदन मोहन मालवीय से सम्बन्धित एक अलग से गैलरी बनाई गयी है जिसमें उनके बारे में तमाम जानकारियों सहित उनके उपयोग की वस्तुओं को संग्रहीत किया गया है।
अब तक दोपहर के 1 बज चुके थे। अब तक हम गंगा किनारे जाने को बेताब हो चुके थे। तो फिर एक रिक्शा पकड़ा और बी.एच.यू. मेन गेट पर पहुंचे। यहां से आटाे रिक्शा में सवार हो गये। गोदौलिया चौराहे का किराया 20 रूपये। चलो भाई।


अपने भव्य स्वरूप में विश्वनाथ मन्दिर

मन्दिर के ठीक सामने मालवीय जी की मूर्ति
पार्क में


अगला भागः वाराणसी दर्शन–गंगा के घाट और गंगा आरती

सम्बन्धित यात्रा विवरण–


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