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Friday, December 23, 2016

Friday, December 16, 2016

Friday, December 9, 2016

नैनीताल और आस–पास

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11 अक्टूबर को हम नैनीताल के आस–पास के पर्यटन–स्थलों तक पहुंचने की सोच रहे थे। कई विकल्प हमारे सामने थे– एक तो था भुवाली–रानीखेत–अल्मोड़ा,दूसरा था जिम कार्बेट तथा तीसरा था– लेक टूर यानी सातताल–भीमताल–नौकुचियाताल। समय अभी हमारे पास तीन दिन था क्योंकि हमारी वापसी 13 तारीख को थी। इसमें से एक दिन अभी हम नैनी झील के लिए रखना चाह रहे थे और आस–पास थोड़ा और घूमना चाह रहे थे और जिम कार्बेट में 1 जून से 14 नवम्बर तक मानसून की वजह से प्रवेश नहीं होता,लेकिन इस बात की जानकारी हमें उस समय नहीं थी।

Friday, December 2, 2016

सातताल

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12 अक्टूबर को हम झीलों की यात्रा पर निकल रहे थे। झीलों की यात्रा यानी नैनीताल के आस–पास स्थित झीलों का दर्शन। हमने एक छोटी गाड़ी 1500 रूपये किराये पर ले ली और निकल पड़े। किराये की बाइक भी मिल रही थी लेकिन सब कुछ जोड़–घटा कर वह महँगी पड़ रही थी। तो सबसे पहले नैनीताल से लगभग 22 किमी दूर स्थित सातताल। कहते हैं कि सातताल सात छोटी–बड़ी झीलों का समूह है लेकिन यहां के ड्राइवर⁄ट्रैवल एजेण्ट या तो इसकी जानकारी नहीं देते या खुद नहीं जानते। एक और बात भी है और वो यह कि एक बड़ी झील के आस–पास एक–दो छोटी झीलें भी हैं जिनके बारे हर कोई नहीं जानता। बाहर से आने वाले पर्यटक के लिए ऐसी जगहों पर पहुंच पाना असंभव नहीं तो काफी मुश्किल है।

Friday, November 25, 2016

नैनीताल भ्रमण

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9 अक्टूबर को यानी नैनीताल पहुंचने के अगले दिन हमने स्नो व्यू प्वाइंट तक पैदल चलने का निश्चय किया और चल दिये। बिल्कुल सही रास्ता पता नहीं था अतः पूछते हुए चल दिये। एक दिन पहले टैक्सी से भी हम यहां पहुंच चुके थे लेकिन इन पहाड़ी घुमावदार रास्तों पर टैक्सीवाला किधर से वहां पहुंचा,समझ में नहीं आया था। वैसे बहुत ज्यादा पूछने की आवश्यकता भी नहीं थी। माल रोड पर ही चिड़ियाघर जाने के लिए छोटी गाड़ियों का स्टैण्ड है और वहीं से ऊपर चढ़ाई करते हुए एक सड़क गई है जिस पर कुछ दूर आगे जाने पर स्नो व्यू प्वाइंट जाने वाला रास्ता बायें कट जाता है और दाहिने का रास्ता चिड़ियाघर चला जाता है। सुबह के लगभग आठ बजे हम निकले और पैदल टहलते हुए 10.30 बजे तक अर्थात लगभग ढाई घंटे में ढाई किमी की दूरी तय कर ली। 

Friday, November 18, 2016

नैनीताल

सच में,नैनीताल तुम बहुत खूबसूरत होǃ
नैनीताल से वापसी के समय ट्रेन में बगल की सीट पर एक खूबसूरत नवयुगल यात्रा कर रहा था। मेरी नजर बार–बार उधर गयी तो उनकी नजरें भी मेरी तरफ आने लगीं। और जब कई बार ऐसा हुआ तो मैंने नजरें हटाना ही बेहतर समझा। अन्त में हार मानकर मैंने खिड़की से बाहर नजरें टिका लीं और मन को सांत्वना दिया–
‘सच में नैनीताल तुम बहुत खूबसूरत हो और तुम से अच्छा तो यहां कोई नहीं।‘
मेरे मन की यह भावना काफी हद तक वास्तविक होती अगर नैनीताल की वास्तविकता को वास्तविक ही रहने दिया गया होता।
सुन्दरता क्या श्रृंगार के आडम्बर में ही छ्पिी होती हैǃ

Friday, November 11, 2016

हरिद्वार और आस–पास

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28 मई की शाम को थके होने के कारण अगले दिन के लिए हम कोई प्रोग्राम तय नहीं कर पाये। अभी हमारे पास चार दिन थे क्योंकि हमारा वापसी का रिजर्वेशन 1 जून को था और घूमने के स्थान भी दिमाग में कई थे–हरिद्वार,ऋषिकेश,मंसा देवी–चण्डी देवी मंदिर,राजाजी नेशनल पार्क वगैरह–वगैरह। अगला दिन रविवार था,अतः भीड़–भाड़ वाली बात भी दिमाग में थी क्योंकि शनिवार और रविवार किसी भी पर्यटन स्थल के लिए वीकेण्ड मनाने का दिन होता है। 28 मई की शाम को हरिद्वार के एक रेस्टोरेण्ट में खाना खाने के बाद मैंने सबको वापस कमरे पर भेज दिया और स्वयं आइसक्रीम पैक कराने लगा। इसी बीच भयंकर आँधी–तूफान का दौर शुरू हुआ  जिसमें मैं घिर गया और घण्टे भर बाद ही कमरे पहुंच सका। इस आंधी–पानी का असर अगले दिन देखने को मिला। बिजली व्यवस्था ध्वस्त हो गयी।

Friday, November 4, 2016

गंगोत्री

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26 मई को जानकी चट्टी से दिन में 1 बजे हम वापस पुराने रास्ते पर ही चल दिये और बड़कोट पहुंचे। बड़कोट से हमने गंगोत्री के लिए रास्ता बदला और धरासू की ओर चल दिये। बड़कोट से धरासू के रास्ते में कोई बड़ी नदी नहीं है पर पहाड़ों से घिरा घुमावदार रास्ता और घने जंगल बहुत अच्छे लगे। रास्ते में कई जगह सीढ़ीदार खेतों का मनमोहक दृश्य मिला जहां रूककर फोटो खींचे गये। इसी साल की गर्मियों में,उत्तराखण्ड के जंगलों में लगी आग से बरबाद हुए जंगलों का दृश्य भी मिला। देखकर मन बहुत खिन्न हुआ। फिर ध्ररासू से उत्तरकाशी। यमुनोत्री से गंगोत्री की कुल दूरी लगभग 228 किमी है।

Friday, October 28, 2016

यमुनोत्री

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25 मई को सुबह 7.10 बजे हमारी इण्डिगो कार हरिद्वार से यमुनोत्री के लिये रवाना हो गयी। लगभग पूरा रास्ता पहाड़ी है और साथ ही चढ़ाई वाला भी। हम देहरादून–मसूरी–बड़कोट के रास्ते होकर गये। मई का महीना था लेकिन सफर बहुत ही आनन्ददायक रहा। ऊंचे पहाड़, नदी, झरने इत्यादि ने मन मोह लिया।
हरिद्वार या ऋषिकेश से यमुनाेत्री जाने के दो रास्ते हैं– पहला ऋषिकेश से देहरादून,मसूरी,बड़कोट होते हुए जानकी चट्टी तथा दूसरा ऋषिकेश से नरेन्द्रनगर,चम्बा,टिहरी,धरासू,बड़कोट होते हुए जानकी चट्टी। हम पहले रास्ते से गये तथा दूसरे रास्ते से वापस आये। इस रूटीन का यह फायदा है कि देहरादून–मसूरी भी घूम लेते हैं तथा वापसी में टिहरी झील भी देख लेते हैं।

Friday, October 21, 2016

हरिद्वार–यात्रा का आरम्भ

हरिद्वार कहिए या हरद्वार या और कुछ भी। हरिद्वार तो इसलिए कहा जाता है कि श्री बद्रीनारायण की यात्रा या चार धाम यात्रा का शुभारम्भ इसी स्थान से होता है और उनके हरि नाम के कारण इसको हरिद्वार कहा जाता है। शिवजी के परमधाम केदारनाथ की यात्रा भी यहीं से आरम्भ होती है।
हर की पैड़ी हरिद्वार का सबसे प्रसिद्ध स्थान है। इसके अतिरिक्त हरिद्वार में पर्यटन की दृष्टि से दक्ष प्रजापति का मन्दिर,मनसा देवी,चण्डी देवी व माया देवी के मन्दिर,भीमगोडा मन्दिर व कुण्ड,सप्तर्षि आश्रम,परमार्थ आश्रम,भारत माता मन्दिर तथा शान्ति कुंज आदि प्रमुख स्थल हैं। लेकिन हम तो इनमें से किसी को भी लक्ष्‍य बनाकर नहीं चले थे। हमारा लक्ष्‍य तो कहीं और था और वह था सुरम्य प्रकृति की गोद में,पहाड़ों की शीतल घाटियों में बसे यमुनोत्री व गंगोत्री मन्दिर। ये वे स्थान हैं जहां देवदार के जंगलों से ढके तथा बर्फीली चोटियों वाले पहाड़ उत्साही दर्शनार्थियों को मूक भाव से,इशारों ही इशारों में बुलाते रहते हैं।

Friday, October 14, 2016

चन्दे वाले पैराकमाण्डो

पंचों,
त्योहारों का मौसम आ गया है।
आजकल बड़ी गहमागहमी है। अपने मनबढ़ पड़ोसी ससुर पाकिस्तान को लेकर देश की सारी जनता गुस्से में है। हर कोई अपने–अपने तरीके से मन की भड़ास निकाल रहा है। कोई देशभक्ति की राजनीति कर रहा है तो कोई देशद्रोह की राजनीति कर रहा है। कोई सर्जिकल स्ट्राइक के सबूत मांग रहा है तो कोई सबूत मांगने वालों की खिंचाई कर रहा है। सबका अपना–अपना मतलब है। कोई बार्डर पर तार लगवाने की बात कर रहा है तो कोई पहरा बढ़ाने की बात कर रहा है। और पंचों आप तो  जानते ही हैं कि हम हिन्दुस्तानी एक दूसरे की टांग खींचने में माहिर हैं। सो टंगखिंचउवल तो होनी ही है। पर भाइयों हम तो कुछ दूसरी ही बात कहेंगे।

Friday, October 7, 2016

गुलमर्ग

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23 जून को हमें गुलमर्ग की तरफ जाना था। दरअसल ड्राइवर ने श्रीनगर से बाहर जाने के लिए हमारे सामने दो प्रस्ताव रखे थे– सोनमर्ग या गुलमर्ग। बर्फ पर उछलने–कूदने के लिए ये दोनों ही विकल्प ठीक थे। हमने गुलमर्ग को चुना। क्योंकि हम भी अपने तरीके से पता लगाने की कोशिश कर रहे थे कि अधिक बर्फ कहाँ मिलेगी। हमारे झुण्ड के 18 लोगों में से 2 की तबीयत कुछ नासाज हो गयी थी। कश्मीर आ कर किसी के साथ ऐसा कुछ हो तो बुरा तो लगता ही है। इस वजह वे से होटल में ही रूक गये। जिससे बस में जो एडजस्ट करने वाली समस्या थी,वह समाप्त हो गयी। श्रीनगर से तंगमर्ग होते हुए गुलमर्ग की दूरी 50 किमी है।

Friday, September 30, 2016

मानसून की दुल्हन

पंचों
मानसून की दुल्हन के जाने का समय आ गया है। अपने घर से कहीं भी दूसरी जगह जाना थोड़ा बुरा तो लगता ही है सो विदाई के गम में बिचारी इस वक्त आंसू बहा रही  है– झरझर झरझर। फिर भी जाना तो पड़ेगा ही क्योंकि हमारी गीता मइया ने बहुत पहले ही कह रखा है कि जो आया है उसको जाना भी पड़ेगा। जिस समय यह मायके आयी थी,बड़ी ही खुराफात दिखाई।  क्या–क्या नहीं किया– फसलों को बरबाद करने से लेकर घर गिराने तक। किसी के खेतों को बहा ले गयी तो किसी के घर में ही घुस गयी। लेकिन अब तो इसका मन भी ठण्डा हो गया है क्योंकि सारी अपनी वाली तो इसने कर ली। अब ससुराल जो जाना है। अब समय बदल गया है क्योंकि समय तो सबका बदलता है। इसकी जुल्फों के लहराने से चलती हवा इसके आंसुओं की ठण्डक लेकर आ रही है।  इसके रोने की आवाज में जो तड़प है वो मन में हौल पैदा करती  है। जब यह पलकें झपकाती है तो वो बिजली चमकती है कि किसी निर्जीव में भी जान आ जाय।

Friday, September 23, 2016

श्रीनगर

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वैष्णो देवी और शिवखोड़ी का दर्शन हमारा झुण्ड कर चुका था। वापसी में अभी समय था। तो कश्मीर का प्लान बन गया। हमारे इस झुण्ड में शामिल सारे के सारे लोग पहली ही बार कश्मीर जा रहे थे। किसी के लिए यह शुभ अवसर उसकी जवानी में ही मिल गया था,तो किसी के लिए बुढ़ौती में। ये और बात थी कि कश्मीर के नाम पर बूढ़ों का भी दिल जवान हो गया था। और जवान तो जैसे बच्चे बन गये थे। वैसे कश्मीर के नाम पर पैदा हुए उत्साह के साथ साथ कश्मीर के ही नाम पर पैदा होने वाला डर भी मन में समाया हुआ था। फिर भी जवानों के साथ जब बूढ़ों ने भी रिस्क ले ही लिया था तो डर की कोई खास वजह नहीं थी।

Friday, September 16, 2016

शिव खोड़ी

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19 जून की शाम को जब हम सोकर उठे तो वैष्णो देवी की चढ़ाई की थकान अभी पूरी तरह शरीर पर हावी थी। नींद पूरी न होने की खुमारी सिर पर सवार थी। फिर भी अगला कार्यक्रम बनाना था। यात्रा की यही तो खूबसूरती है। शिवखोड़ी का प्लान बन चुका था। तो शाम को टहलते हुए कटरा बस स्टैण्ड पहुँचे। बस स्टैण्ड के सामने स्थित मूनलाइट ट्रैवेल एजेंसी में 200 रूपये प्रति व्यक्ति की दर से बस में सीट बुक हुई और निश्चिन्त होकर हम लोग काफी देर तक सड़कें नापते रहे। अगले दिन अर्थात 20 जून की सुबह 9 बजे से बस कटरा से शिवखोड़ी के लिए रवाना होनी थी। सो हम काफी पहले बस में धरना दे चुके थे।

Friday, September 9, 2016

वैष्णो देवी दर्शन

यह 9 दिन लम्बी यात्रा थी,भारत के स्वर्ग कहे जाने वाले जम्मू और कश्मीर की। 17 जून 2014 से 25 जून 2014 तक। वैसे इस यात्रा का महत्व इस बात में नहीं था कि यह 9 दिन लम्बी थी वरन इसका महत्व इस बात को लेकर था कि इसमें 18 लोग शामिल थे। सभी अपने–अपने क्षेत्र के दिग्गज,प्रतिष्ठित विद्वान। और विद्वान होने का मतलब– "मुण्डे–मुण्डे मतिर्भिन्ना।" यात्रा का मुख्य उद्देश्य तो वैष्णो देवी का दर्शन था लेकिन लगे हाथ कश्मीर का दर्शन भी हो गया तो विद्वानों की राय में यात्रा सफल मानी जानी ही थी। तो सर्वप्रथम बेगमपुरा एक्सप्रेस से,वाराणसी से हमने 17 जून को 12.50 पर प्रस्थान किया और लगभग 24 घण्टे चलकर अगले दिन अर्थात 18 जून को दोपहर 12.10 बजे जम्मू पहुंचे। चूंकि हमारी संख्या 18 थी अतः वह सारी समस्याएं जो एक बड़े समूह को संयोजित करने में आ सकती थीं,आनी शुरू हो गयी थीं लेकिन इस तरह की यात्रा का भी एक अलग ही आनन्द था।

Friday, September 2, 2016

गंगा मइया की कृपा हो गयी

पंचों,

चारों तरफ बाढ़ आयी है। सुनते हैं कि सब कुछ बहा गया। घर दुआर,आदमी,गाइ–भंइस,गाड़ी–बस वगैरा वगैरा। और तो और टीवी पर देखा कि मध्य प्रदेश में एगो जेसीबियो बहा गया। पहाड़ पर तो मानो आफते आ गयी है। सब औकात में आ गये। पर पंचों,हम तो ठहरे बांगर के आदमी। अपने यहां दू चार गो चिंउटा–चिंउटी,कीरा–बिच्छी,मूस–मुसरी बहाते तो हमने भी देखा है पर इतना कुछ बहाते हमने नहीं देखा था। उधर बिहार में तो लालू जी ने एकदम सच्ची बात कह दी। गंगा मइया खुश हैं सो चौके तक में आ गयीं। अहोभाग्य बिहार के लोगों का। पर अपनी तो किस्मते खराब है। दू–चार बीघा धान रोपे हैं उ भी सूख रहा है। हे गंगा मइया,हमसे का गलती हो गयी। मत आती हमारे चौके तक,खेत में ही आ जाती। अपने बच्चों में ऐसा भेद क्यों करती हो। बनारस में सारे घाटों को बराबर कर दिया। ना कोई छोटा ना कोई बड़ा। सबका महत्व बराबर। पर क्या कहें इस बुरबक पब्लिक को,बात का बतंगड़ बना देती है। बरखा होती है तो कहती है कि भगवान बरस रहे हैं और गंगा मइया दुआरे पर आईं हैं तो कहती है कि बाढ़ आ गयी।

Friday, August 26, 2016

हरिद्वार–मसूरी

26 मई 2010 को जी.आर्इ.सी़ प्रवक्ता की मेरी हरिद्वार में परीक्षा थी। दो मित्र और भी मिल गये जिनका भी लक्ष्‍य यही था। फिर क्या था, बन गया कार्यक्रम हरिद्वार और मसूरी की यात्रा का। अत्यधिक भीड़ होने के कारण ट्रेन में आरक्षण नहीं हो पाया और हरिहरनाथ एक्सप्रेस (मुजफ्फरपुर–अम्बाला कैण्ट) में आर.ए.सी. टिकट ही मिल पाया। हमारी ट्रेन बलिया से 24 मई को दिन में लगभग 1 बजे रवाना हुई। यह हरिद्वार होकर नहीं जाती अतः 25 मई को सुबह 7 बजे के आस–पास  हमने लक्सर में इसे छोड़ दिया। लक्सर पहुंचने के पहले ही ट्रेन में अपने क्षेत्र की तुलना में मौसम में हल्के–फुल्के अन्तर का आभास हो रहा था। चूंकि हमारी ट्रेन समय से थी अतः हमने सोच रखा था कि लक्सर से तत्काल आरक्षण द्वारा वापसी का टिकट ले लिया जाय। परन्तु लक्सर एक छोटा सा कस्बा है और इण्टरनेट द्वारा आरक्ष्‍ाण करने वाली एक ही दुकान थी जो उस दिन बन्द थी और रेलवे काउण्टर के क्लर्क की घूसखोरी की वजह से लाइन में लगे किसी भी व्यक्ति का आरक्षण नहीं हो सका। हम बेवकूफ बन कर रह गये। अन्ततः हमने हरिद्वार जाने का निश्चय किया।

Friday, August 19, 2016

अभिलाषा

आशा की डाली हुई पल्लवित औ
प्रकाशित हुई रवि किरण हर कली में,
जगी भावनायें किसी प्रिय वरण की
सजाये सुमन उर की प्रेमांजली में,
अरेǃ तुम अभी आ गये क्रूर पतझड़
सुरभि उड़ गई, जा मिली रज तली में।

Friday, August 12, 2016

ठूंठ

त्याग दिये पत्ते क्यों, हे तरूǃ
हारे बाजी जीवन की।
क्यों उजाड़ते हो धरती को,
हरते शोभा उपवन की।
हुए अचानक क्यों तुम निष्ठुर,
बहुत सुना तेरा गुणगान,
पर उपकारी, बहु गुणकारी,
तरू धरती का पुत्र महान।

Friday, August 5, 2016

ओंकारेश्वर–महाकालेश्वर

मेरा यह यात्रा कार्यक्रम कुल छः दिनों का था। 15 अक्टूबर 2009 से 20 अक्टूबर 2009 तक। मेरे मित्र ईश्वर जी भी मेरे साथ थे। हमारा रिजर्वेशन कामायनी एक्सप्रेस,1072 अप में था जो वाराणसी से लाेकमान्य तिलक टर्मिनल को जाती है। वाराणसी से इसका प्रस्थान समय शाम 4 बजे था जबकि हम सुबह 10 बजे ही वाराणसी पहुंच गये थे। सो हमने सोचा कि समय का सदुपयोग कर लिया जाय। वाराणसी में बाबा विश्वनाथ का दर्शन करने से बड़ी चीज क्या हो सकती है इसलिए खाना वगैरह खाया और आराम से टहलते हुए पहुंच गये बाबा के दर पर। पर जब दर्शन की लम्बी लाइन और पण्डों की जोर जबरदस्ती देखी तो मन बिदक गया। डर यह भी था कि कहीं लाइन में बहुत ज्यादा समय लग गया तो ट्रेन छूट जायेगी। प्लान फेल हो गया। हार मानकर गंगा मैया की शरण ली। दशाश्वमेध घाट पर बैठ कर गंगा दर्शन का लाभ लिया और स्टेशन को वापस हो लिये।

Friday, July 29, 2016

यथार्थ

एक दिन
मैंने बनाई,
एक खूबसूरत पेंटिंग
मन के विस्तीर्ण कैनवस पर।
जिसमें खिला था–
सुनहरा सवेरा,
महाकवि माघ के प्रभात को लज्जित करता हुआ।
झील से मिलते धरती और आकाश,
बुझती युगों–युगों की प्यास।
गिरि–शिखरों के कोने से झांकता सूरज।

Friday, July 22, 2016

निवेदन

हे प्रियतमǃ तुम आये
मन के मोती खनखनाये।
कौन कहता हैǃ
शंकर ने कामदेव को जला दिया,
तुम सशरीर मेरे पास हो।


मेरी जीवनरूपी आकांक्षा की चरम परिणति,
जन्मों की संचित अभिलाषा का मूर्त रूप,
मेरे आंगन के फूलों के माली।

Friday, July 15, 2016

भविष्य

मैं सपने बुनता हूं
स्वर्णिम भविष्य के।
टूटते हैं रोज फिर भी
मेरी जिजीविषा अनन्त है।
पहले दूसरों से सुनता था
अब खुद भी कहता हूं–
‘‘कुछ करके दिखाउंगा,
कुछ बन के दिखाउंगा।‘‘
उजले कागजों को स्याह कर डालता हूं,
बाप की कमाई से सपनों का पेट पालता हूं,
क्योंकि मैं एक शिक्षित बेरोजगार हूं,
हर लक्ष्‍य के लिए संघर्ष करने को तैयार हूं।

Friday, July 8, 2016

शान्ति की खोज में

मैं शोर से आक्रान्त हूं
इसलिए मैं भागता हूं, हर जगह से
पर मैं पलायनवादी नहीं हूं
इसलिए मैं भटकता हूं
शान्ति की खोज में।

मैंने सुनी–
फूलों से भरी, लताओं से घिरी,
अकेली डगर की कराहǃ
पता नहीं कब तक चलना है;
कहां है मेरी सीमा।

Friday, July 1, 2016

यही है जिंदगी

कभी कभी मेरे दिल में खयाल आता है,
क्या यही है जिन्दगी
जिसके बारे में हम कभी सोचते ही नहीं है।
सुबह होती है,शाम जाती है,जिन्दगी यूं ही तमाम होती है।
रोज की भागदौड़ में पता ही नहीं चलता कि कैसे मिनटों और घण्टों की शक्ल में पूरा दिन ही बीत गया।
दिन और हफ्तों की गिनती में महीने और साल बीत गये। साल दर साल बीतते गये। बचपन का वो सुनहरा दौर कैसे बीता,उसके बारे में तब सोचते हैं जब केवल सोच ही सकते हैं।
जब कुछ सोच कर करने का समय होता है, उस समय जवानी का  जोश इतना ज्यादा होता है कि उमर जोश को संभालने में ही बीत जाती है और कुछ समय बाद गुजरता समय बताता है कि अरे यार थोड़ा सा यहां चूक गये। ये बात समझने में थोड़ी सी चूक हो गयी,हमने ये क्यों नहीं सोचा ǃ
और फिर बाद में सोचते रह जाते हैं
क्योंकि अब सोच ही सकते हैं
करने को तो कुछ रह नहीं जाता
और लगता है–
‘क्या यही है जिन्दगी‘