Friday, September 30, 2016

मानसून की दुल्हन

पंचों
मानसून की दुल्हन के जाने का समय आ गया है। अपने घर से कहीं भी दूसरी जगह जाना थोड़ा बुरा तो लगता ही है सो विदाई के गम में बिचारी इस वक्त आंसू बहा रही  है– झरझर झरझर। फिर भी जाना तो पड़ेगा ही क्योंकि हमारी गीता मइया ने बहुत पहले ही कह रखा है कि जो आया है उसको जाना भी पड़ेगा। जिस समय यह मायके आयी थी,बड़ी ही खुराफात दिखाई।  क्या–क्या नहीं किया– फसलों को बरबाद करने से लेकर घर गिराने तक। किसी के खेतों को बहा ले गयी तो किसी के घर में ही घुस गयी। लेकिन अब तो इसका मन भी ठण्डा हो गया है क्योंकि सारी अपनी वाली तो इसने कर ली। अब ससुराल जो जाना है। अब समय बदल गया है क्योंकि समय तो सबका बदलता है। इसकी जुल्फों के लहराने से चलती हवा इसके आंसुओं की ठण्डक लेकर आ रही है।  इसके रोने की आवाज में जो तड़प है वो मन में हौल पैदा करती  है। जब यह पलकें झपकाती है तो वो बिजली चमकती है कि किसी निर्जीव में भी जान आ जाय।

Friday, September 23, 2016

श्रीनगर

इस यात्रा के बारे में शुरू से पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें–

वैष्णो देवी और शिवखोड़ी का दर्शन हमारा झुण्ड कर चुका था। वापसी में अभी समय था। तो कश्मीर का प्लान बन गया। हमारे इस झुण्ड में शामिल सारे के सारे लोग पहली ही बार कश्मीर जा रहे थे। किसी के लिए यह शुभ अवसर उसकी जवानी में ही मिल गया था,तो किसी के लिए बुढ़ौती में। ये और बात थी कि कश्मीर के नाम पर बूढ़ों का भी दिल जवान हो गया था। और जवान तो जैसे बच्चे बन गये थे। वैसे कश्मीर के नाम पर पैदा हुए उत्साह के साथ साथ कश्मीर के ही नाम पर पैदा होने वाला डर भी मन में समाया हुआ था। फिर भी जवानों के साथ जब बूढ़ों ने भी रिस्क ले ही लिया था तो डर की कोई खास वजह नहीं थी।

Friday, September 16, 2016

शिव खोड़ी

इस यात्रा के बारे में शुरू से पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें–

19 जून की शाम को जब हम सोकर उठे तो वैष्णो देवी की चढ़ाई की थकान अभी पूरी तरह शरीर पर हावी थी। नींद पूरी न होने की खुमारी सिर पर सवार थी। फिर भी अगला कार्यक्रम बनाना था। यात्रा की यही तो खूबसूरती है। शिवखोड़ी का प्लान बन चुका था। तो शाम को टहलते हुए कटरा बस स्टैण्ड पहुँचे। बस स्टैण्ड के सामने स्थित मूनलाइट ट्रैवेल एजेंसी में 200 रूपये प्रति व्यक्ति की दर से बस में सीट बुक हुई और निश्चिन्त होकर हम लोग काफी देर तक सड़कें नापते रहे। अगले दिन अर्थात 20 जून की सुबह 9 बजे से बस कटरा से शिवखोड़ी के लिए रवाना होनी थी। सो हम काफी पहले बस में धरना दे चुके थे।

Friday, September 9, 2016

वैष्णो देवी दर्शन

यह 9 दिन लम्बी यात्रा थी,भारत के स्वर्ग कहे जाने वाले जम्मू और कश्मीर की। 17 जून 2014 से 25 जून 2014 तक। वैसे इस यात्रा का महत्व इस बात में नहीं था कि यह 9 दिन लम्बी थी वरन इसका महत्व इस बात को लेकर था कि इसमें 18 लोग शामिल थे। सभी अपने–अपने क्षेत्र के दिग्गज,प्रतिष्ठित विद्वान। और विद्वान होने का मतलब– "मुण्डे–मुण्डे मतिर्भिन्ना।" यात्रा का मुख्य उद्देश्य तो वैष्णो देवी का दर्शन था लेकिन लगे हाथ कश्मीर का दर्शन भी हो गया तो विद्वानों की राय में यात्रा सफल मानी जानी ही थी। तो सर्वप्रथम बेगमपुरा एक्सप्रेस से,वाराणसी से हमने 17 जून को 12.50 पर प्रस्थान किया और लगभग 24 घण्टे चलकर अगले दिन अर्थात 18 जून को दोपहर 12.10 बजे जम्मू पहुंचे। चूंकि हमारी संख्या 18 थी अतः वह सारी समस्याएं जो एक बड़े समूह को संयोजित करने में आ सकती थीं,आनी शुरू हो गयी थीं लेकिन इस तरह की यात्रा का भी एक अलग ही आनन्द था।

Friday, September 2, 2016

गंगा मइया की कृपा हो गयी

पंचों,

चारों तरफ बाढ़ आयी है। सुनते हैं कि सब कुछ बहा गया। घर दुआर,आदमी,गाइ–भंइस,गाड़ी–बस वगैरा वगैरा। और तो और टीवी पर देखा कि मध्य प्रदेश में एगो जेसीबियो बहा गया। पहाड़ पर तो मानो आफते आ गयी है। सब औकात में आ गये। पर पंचों,हम तो ठहरे बांगर के आदमी। अपने यहां दू चार गो चिंउटा–चिंउटी,कीरा–बिच्छी,मूस–मुसरी बहाते तो हमने भी देखा है पर इतना कुछ बहाते हमने नहीं देखा था। उधर बिहार में तो लालू जी ने एकदम सच्ची बात कह दी। गंगा मइया खुश हैं सो चौके तक में आ गयीं। अहोभाग्य बिहार के लोगों का। पर अपनी तो किस्मते खराब है। दू–चार बीघा धान रोपे हैं उ भी सूख रहा है। हे गंगा मइया,हमसे का गलती हो गयी। मत आती हमारे चौके तक,खेत में ही आ जाती। अपने बच्चों में ऐसा भेद क्यों करती हो। बनारस में सारे घाटों को बराबर कर दिया। ना कोई छोटा ना कोई बड़ा। सबका महत्व बराबर। पर क्या कहें इस बुरबक पब्लिक को,बात का बतंगड़ बना देती है। बरखा होती है तो कहती है कि भगवान बरस रहे हैं और गंगा मइया दुआरे पर आईं हैं तो कहती है कि बाढ़ आ गयी।
Top