26 मई 2010 को जी.आर्इ.सी़ प्रवक्ता की मेरी हरिद्वार में परीक्षा थी। दो मित्र और भी मिल गये जिनका भी लक्ष्य यही था। फिर क्या था, बन गया कार्यक्रम हरिद्वार और मसूरी की यात्रा का। अत्यधिक भीड़ होने के कारण ट्रेन में आरक्षण नहीं हो पाया और हरिहरनाथ एक्सप्रेस (मुजफ्फरपुर–अम्बाला कैण्ट) में आर.ए.सी. टिकट ही मिल पाया। हमारी ट्रेन बलिया से 24 मई को दिन में लगभग 1 बजे रवाना हुई। यह हरिद्वार होकर नहीं जाती अतः 25 मई को सुबह 7 बजे के आस–पास हमने लक्सर में इसे छोड़ दिया। लक्सर पहुंचने के पहले ही ट्रेन में अपने क्षेत्र की तुलना में मौसम में हल्के–फुल्के अन्तर का आभास हो रहा था। चूंकि हमारी ट्रेन समय से थी अतः हमने सोच रखा था कि लक्सर से तत्काल आरक्षण द्वारा वापसी का टिकट ले लिया जाय। परन्तु लक्सर एक छोटा सा कस्बा है और इण्टरनेट द्वारा आरक्ष्ाण करने वाली एक ही दुकान थी जो उस दिन बन्द थी और रेलवे काउण्टर के क्लर्क की घूसखोरी की वजह से लाइन में लगे किसी भी व्यक्ति का आरक्षण नहीं हो सका। हम बेवकूफ बन कर रह गये। अन्ततः हमने हरिद्वार जाने का निश्चय किया।
Pages
▼
Friday, August 26, 2016
Friday, August 19, 2016
अभिलाषा
आशा की डाली हुई पल्लवित औ
प्रकाशित हुई रवि किरण हर कली में,
जगी भावनायें किसी प्रिय वरण की
सजाये सुमन उर की प्रेमांजली में,
अरेǃ तुम अभी आ गये क्रूर पतझड़
सुरभि उड़ गई, जा मिली रज तली में।
प्रकाशित हुई रवि किरण हर कली में,
जगी भावनायें किसी प्रिय वरण की
सजाये सुमन उर की प्रेमांजली में,
अरेǃ तुम अभी आ गये क्रूर पतझड़
सुरभि उड़ गई, जा मिली रज तली में।
Friday, August 12, 2016
ठूंठ
त्याग दिये पत्ते क्यों, हे तरूǃ
हारे बाजी जीवन की।
क्यों उजाड़ते हो धरती को,
हरते शोभा उपवन की।
हुए अचानक क्यों तुम निष्ठुर,
बहुत सुना तेरा गुणगान,
पर उपकारी, बहु गुणकारी,
तरू धरती का पुत्र महान।
हारे बाजी जीवन की।
क्यों उजाड़ते हो धरती को,
हरते शोभा उपवन की।
हुए अचानक क्यों तुम निष्ठुर,
बहुत सुना तेरा गुणगान,
पर उपकारी, बहु गुणकारी,
तरू धरती का पुत्र महान।
Friday, August 5, 2016
ओंकारेश्वर–महाकालेश्वर
मेरा यह यात्रा कार्यक्रम कुल छः दिनों का था। 15 अक्टूबर 2009 से 20 अक्टूबर 2009 तक। मेरे मित्र ईश्वर जी भी मेरे साथ थे। हमारा रिजर्वेशन कामायनी एक्सप्रेस,1072 अप में था जो वाराणसी से लाेकमान्य तिलक टर्मिनल को जाती है। वाराणसी से इसका प्रस्थान समय शाम 4 बजे था जबकि हम सुबह 10 बजे ही वाराणसी पहुंच गये थे। सो हमने सोचा कि समय का सदुपयोग कर लिया जाय। वाराणसी में बाबा विश्वनाथ का दर्शन करने से बड़ी चीज क्या हो सकती है इसलिए खाना वगैरह खाया और आराम से टहलते हुए पहुंच गये बाबा के दर पर। पर जब दर्शन की लम्बी लाइन और पण्डों की जोर जबरदस्ती देखी तो मन बिदक गया। डर यह भी था कि कहीं लाइन में बहुत ज्यादा समय लग गया तो ट्रेन छूट जायेगी। प्लान फेल हो गया। हार मानकर गंगा मैया की शरण ली। दशाश्वमेध घाट पर बैठ कर गंगा दर्शन का लाभ लिया और स्टेशन को वापस हो लिये।