कभी कभी मेरे दिल में खयाल आता है,
क्या यही है जिन्दगी
जिसके बारे में हम कभी सोचते ही नहीं है।
सुबह होती है,शाम जाती है,जिन्दगी यूं ही तमाम होती है।
रोज की भागदौड़ में पता ही नहीं चलता कि कैसे मिनटों और घण्टों की शक्ल में पूरा दिन ही बीत गया।
दिन और हफ्तों की गिनती में महीने और साल बीत गये। साल दर साल बीतते गये। बचपन का वो सुनहरा दौर कैसे बीता,उसके बारे में तब सोचते हैं जब केवल सोच ही सकते हैं।
जब कुछ सोच कर करने का समय होता है, उस समय जवानी का जोश इतना ज्यादा होता है कि उमर जोश को संभालने में ही बीत जाती है और कुछ समय बाद गुजरता समय बताता है कि अरे यार थोड़ा सा यहां चूक गये। ये बात समझने में थोड़ी सी चूक हो गयी,हमने ये क्यों नहीं सोचा ǃ
और फिर बाद में सोचते रह जाते हैं
क्योंकि अब सोच ही सकते हैं
करने को तो कुछ रह नहीं जाता
और लगता है–
‘क्या यही है जिन्दगी‘
क्या यही है जिन्दगी
जिसके बारे में हम कभी सोचते ही नहीं है।
सुबह होती है,शाम जाती है,जिन्दगी यूं ही तमाम होती है।
रोज की भागदौड़ में पता ही नहीं चलता कि कैसे मिनटों और घण्टों की शक्ल में पूरा दिन ही बीत गया।
दिन और हफ्तों की गिनती में महीने और साल बीत गये। साल दर साल बीतते गये। बचपन का वो सुनहरा दौर कैसे बीता,उसके बारे में तब सोचते हैं जब केवल सोच ही सकते हैं।
जब कुछ सोच कर करने का समय होता है, उस समय जवानी का जोश इतना ज्यादा होता है कि उमर जोश को संभालने में ही बीत जाती है और कुछ समय बाद गुजरता समय बताता है कि अरे यार थोड़ा सा यहां चूक गये। ये बात समझने में थोड़ी सी चूक हो गयी,हमने ये क्यों नहीं सोचा ǃ
और फिर बाद में सोचते रह जाते हैं
क्योंकि अब सोच ही सकते हैं
करने को तो कुछ रह नहीं जाता
और लगता है–
‘क्या यही है जिन्दगी‘
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