Friday, August 13, 2021

भीमबंध के जंगलों में

इस यात्रा के बारे में शुरू से पढ़ने के लिए यहाँ क्लिक करें–

सुबह के 8.30 बजे मैं भागलपुर से सुल्तानगंज की ओर चल पड़ा। इसी रास्ते पर भागलपुर के पास ही,नाथनगर में एक जैन मंदिर के बारे में पता चला था। लेकिन यह मंदिर किस गली में था,मैं नहीं ढूँढ़ पाया। कई लोगों से पूछने के बाद भी इसका सही पता नहीं लग पाया। अधिक समय नष्ट करना भी मुनासिब नहीं था। अगले एक घण्टे में मैं सुल्तानगंज के गंगा घाट पर था। रास्ते में अत्यधिक ट्रैफिक मिला। सुल्तानगंज का नाम मैंने बहुत सुन रखा था। मेरे गाँव के मित्र यहीं से काँवड़ लेकर देवघर स्थित बाबा वैद्यनाथ धाम तक की लगभग 104 किलोमीटर की पैदल यात्रा करते रहे हैं। मेरे साथ ऐसा दुर्भाग्य रहा कि मैं एक बार भी काँवड़ न ले जा सका।

Friday, August 6, 2021

मंदार पहाड़ी पर

इस यात्रा के बारे में शुरू से पढ़ने के लिए यहाँ क्लिक करें–

विक्रमशिला के बाद अब मेरी अगली मंजिल थी– मंदार पहाड़ी। वैसे तो यहाँ जाने के लिए बारिश का मौसम ही बेहतर होता है क्योंकि उस समय पर्याप्त हरियाली होती है,लेकिन मुझे तो अप्रैल का महीना ही मिला था। वो कहते हैं न कि सावन के अंधे को हर जगह हरा ही सूझता है,तो मुझे भी घूमने के लिए किसी मौसम की दरकार नहीं होती। अब मुझे कहलगाँव और उससे आगे मंदार हिल तक जाना था। भरी दुपहरी और आगे मिलने वाले रास्ते के बारे में सोचकर ही रूह काँप रही थी। लेकिन जब ओखली में सिर दिया तो मूसलों का क्या डरǃ भागलपुर–कहलगाँव वाली सड़क के दोनों किनारे बने ईंट–भट्ठों को कोसते हुए मैं चलता रहा। खराब सड़क का डर मन में इतना गहरे पैठ गया था कि मंदार हिल जाने के लिए गलत रास्ता पकड़ लिया।

Friday, July 30, 2021

विक्रमशिला–गौरवशाली अतीत

इस यात्रा के बारे में शुरू से पढ़ने के लिए यहाँ क्लिक करें–

4 लेन के बरौनी–पूर्णिया हाइवे पर मेरी बाइक धुआँधार भागने लगी। लेकिन यह खुशी कुछ ही किलोमीटर जाने के बाद काफूर हो गयी। दरअसल यह एक निर्माणाधीन हाइवे है और काफी दूर तक मुझे गिट्टी पड़ी सड़क पर ही चलना पड़ा। अभी इसे फोर लेन बनाने की शुरूआत भर हो सकी है। लब्बोलुआब ये कि सड़क दो लेन की ही थी और नतीजा ये कि यात्रा में समय अधिक लगने वाला था। अब मेरी मंजिल थी भागलपुर या फिर भागलपुर के आस–पास स्थित कोई अन्य महत्वपूर्ण स्थल। लगभग सीधी सड़क कभी गंगा के पास तो कभी दूरी बनाते हुए चल रही थी। खगड़िया के बाद तो यह गंगा और कोसी के दोआब क्षेत्र में प्रवेश कर गयी। वैसे तो यह अप्रैल का महीना था लेकिन नदियों ने पर्याप्त हरियाली उपजा रखी थी।

Friday, July 23, 2021

राजनगर–एक भूली बिसरी कहानी

इस यात्रा के बारे में शुरू से पढ़ने के लिए यहाँ क्लिक करें–

सीतामढ़ी एक घना बसा हुआ पुराना शहर है। रेलवे स्टेशन के पास से गुजरती दो लेन की सड़क के बीच डिवाइडर बना हुआ है। वैसे यह डिवाइडर काफी पुराना है। दो लेन की सड़क पर डिवाइडर मैंने पहली बार देखा था। रात को होटल में कमरा लेने के बाद मैं शहर की सड़कों पर टहलने निकल पड़ा था और उसी समय इस डिवाइडर के दर्शन हुए। वैसे तो सीतामढ़ी के बारे में मुझे अधिक कुछ पता नहीं लेकिन इतना जरूर पता था कि यह माँ सीता की जन्मस्थली के रूप में विख्यात रहा है। उस स्थान पर जरूर कोई न कोई मंदिर बना होगा। वहाँ जाने की उत्सुकता मेरे मन में बनी हुई थी लेकिन इस समय रात हो चुकी थी और अब कल ही वहाँ जाना संभव था। पड़ोस में बसे रेस्टोरेण्ट में ʺसाधारणʺ खाना खाकर सीतामढ़ी की सड़कों पर पैदल टहलना पता नहीं क्यों, मुझे बहुत अच्छा लग रहा था। दिन भर की धूप की तपिश में जला शरीर ठण्डक का एहसास कर रहा था। कुछ तो है इस आध्यात्मिक शहर में।

Friday, July 16, 2021

अशोक की स्मृतियाँ-2

इस यात्रा के बारे में शुरू से पढ़ने के लिए यहाँ क्लिक करें–

अगले दिन सुबह उठने में देर हो गयी। यह देरी बाइक से यात्रा करने के नियम के विरूद्ध है। गर्मी के दिनों में बाइक की यात्रा सुबह जल्दी शुरू हो जानी चाहिए। मुझे होटल से निकलने में 8 बज गये। आज के मेरे गंतव्य पूर्व–निर्धारित थे– लौरिया अरेराज और रामपुरवा का अशोक स्तम्भ एवं केसरिया का स्तूप। अरेराज के अशोक स्तम्भ और केसरिया के स्तूप के बारे में तो मुझे कुछ–कुछ पता था लेकिन रामपुरवा की तो मुझे लोकेशन ही नहीं पता थी कि ये है कहाँ? इसके बारे में कोई बताने वाला भी अब तक नहीं मिला था। पूछताछ करने पर इसके बारे में कोई जानकारी नहीं मिल पा रही थी। लेकिन मुझे जाना था,इतना पूरी तरह सुनिश्चित था। मुझे एक संक्षिप्त सी सूचना अवश्य मिली थी। कल जब मैं लौरिया नंदनगढ़ में अशोक स्तम्भ के पास से लाैट रहा तो मुझे नरकटियागंज जाने वाली सड़क पर एक बोर्ड दिखा था जिस पर भितिहरवा स्तम्भ लेख और रामपुरवा का नाम लिखा दिखायी पड़ा था। बस इसी को आधार बना कर,गूगल मैप के सहारे निकल पड़ा।

Friday, July 9, 2021

अशोक की स्मृतियाँ-1

इस यात्रा के बारे में शुरू से पढ़ने के लिए यहाँ क्लिक करें–

नर देवी मंदिर से जब मैं बाहर निकला तो दिन के डेढ़ बज रहे थे। फिर भी गर्मी कुछ खास नहीं महसूस हो रही थी। दूर–दूर तक जंगल की छाया होने का यह असर था। जोर की भूख लग रही थी। रास्ते में खायी गयी सुबह की जलेबियों का असर समाप्त हो चुका था। लेकिन वाल्मीकि नगर के छोटे से बाजार में भाेजन की कहीं भी संभावना नहीं दिख रही थी। एक दो होटलों के बोर्ड कहीं दिखे लेकिन वे बंद थे। इस कोरोना–पीड़ित कलियुग में कौन यहाँ खाना खाने आएगा। एक दुकान पर समोसे दिखे। तो समोसे और कोल्ड ड्रिंक का लंच हुआ और फिर आगे का रास्ता। कुछ किलोमीटर तक तो दो लेन की अच्छी सड़क का साथ रहा लेकिन उसके बाद सड़क ने अपना रूप बदलना शुरू कर दिया। कहीं एक लेन,कहीं डेढ़ लेन तो कहीं पौने दो लेन की सड़क मिल रही थी। ऐसी मायावी सड़क मैंने पहले नहीं देखी थी।

Friday, July 2, 2021

वाल्मीकि टाइगर रिजर्व की यात्रा

पिछली बार की तरह जब इस बार भी कुछ लोगों ने टोका कि यार,क्या बिहार जा रहे होǃ तो एकबारगी मेरे मन में भी शंका बलवती होने लगी। सच मेंǃ है ही क्या बिहार में। लेकिन सच कहूँ तो यह कुछ न होना ही मुझे बिहार की ओर खींच ले जाता है। न कोई बंदिश,न भेदभाव,न किसी तरह की कोई बाधा,न अनुशासन। मैं भी इसी तरह की माटी का बाशिंदा हूँ। फिर मुझे क्या आपत्ति हो सकती है। कुछ होने का आकर्षण तो होता ही है लेकिन कुछ न होने का भी अपना आकर्षण है। ऐसा कैसे हो सकता है कि धरती के एक बड़े टुकड़े पर कुछ हो ही न जो मानवमात्र को आकर्षित कर सके। ऐसी ही क्रिया–प्रतिक्रिया और अंतर्द्वंद्व मन में समेटे मैंने दो पहियों वाले घोड़े यानी बाइक पर,मार्च के अंतिम सप्ताह में अपने बैग बाँध दिये। कोरोना के नाम ने ही शरीर में जंग लगा रखी है। और शायद सच कहूँ तो मन–मस्तिष्क में भी जंग लग रही है। इसे साफ करना है तो इसे चलाना होगा। मानव का स्वभाव है– चरैवेति,चरैवेति।

Friday, June 12, 2020

भारत–चीन युद्ध-2


3 अक्टूबर को अत्यधिक सतर्कता बरतने वाले लेफ्टिनेंट जनरल उमराव सिंह को पूर्वी क्षेत्र के कोर कमाण्डर पद से हटा दिया गया और उनके स्थान पर जनरल बी.एम.कौल को कोर कमाण्डर बना दिया गया जो नेहरू और कृष्ण मेनन के विश्वासपात्र थे। जनरल कौल को कई या सम्भवतः 12 सैन्य अधिकारियों की वरिष्ठता को नजरअंदाज करते हुए प्रमोशन दिया गया था। कौल के पास लड़ाइयों का कोई अनुभव नहीं था। कौल ने अव्यावहारिक तरीका अपनाते हुए और अन्य सैन्य कमाण्डरों की सलाह को अनदेखा करते हुए,ढोला और थागला पर कब्जा करने के लिए दो बटालियनों को मैदानी इलाके से ऊपर बुला लिया।

Friday, June 5, 2020

भारत–चीन युद्ध-1

दि्वतीय विश्व युद्ध से पूर्व चीन को "एशिया का रोगी" (The sickman of Asia) कहा जाता था। ब्रिटेन,फ्रांस,अमेरिका और जापान जैसी शक्तियों ने उसका खूब राजनीतिक और आर्थिक शोषण किया था। वे उसे पूरब का तरबूज (Chinese Melon) समझते थे। किन्तु 1949 में साम्यवादी क्रान्ति के बाद चीन का एक महाशक्ति के रूप में उदय हुआ। 1 अक्टूबर 1949 को माओत्से तुंग के नेतृत्व में पीपुल्स रिपब्लिक ऑफ चाइना की स्थापना हुई। आज की तारीख में भारत को आँखें दिखाना वाला चीन,भारत की स्वतंत्रता के समय गृहयुद्ध में उलझा हुआ था।

Friday, February 14, 2020

भारत की भूगर्भिक संरचना (4)

क्वाटर्नरी समूह की शैलें– इसके अन्तर्गत प्लीस्टोसीन तथा वर्तमान काल (होलोसीन) में निर्मित शैलों को सम्मिलित किया जाता है। इन दोनों कालों के आधार पर इस समूह की शैलों को दो भागों में बाँटा जाता है–

(i) प्लीस्टोसीन क्रम की शैलें– क्वाटर्नरी युग का आरम्भ व्यापक हिमावरण के साथ हुआ। इस कारण मौसम अत्यन्त ठण्डा हो गया। पृथ्वी के कई भागों में हिमनदों का विस्तार हो गया। तापमान में अधिक गिरावट के कारण बहुत से प्राणियों का अन्त हो गया और बहुत सारे अपेक्षाकृत गर्म क्षेत्रों में प्रवास कर गए। हिमालय के निचले प्रदेशों में भी हिमानियों का विस्तार हो गया। इसके निशान हिमालय में मिलते हैं। हिमानियों द्वारा किये गए निक्षेपों,जिन्हें हिमोढ़ कहते हैं,के कारण झीलों का निर्माण हो गया।

Top