Friday, April 20, 2018

खजुराहो–एक अलग परम्परा (तीसरा भाग)

इस यात्रा के बारे में शुरू से पढ़ने के लिए यहाँ क्लिक करें–

पश्चिमी मंदिर समूह के पास से लगभग 15 मिनट चलने के बाद मैं चौंसठ योगिनी मंदिर पहुँचा तो रास्ते में और मंदिर के आस–पास मुझे कोई भी आदमी नहीं दिखा। केवल मंदिर के पास एक सुरक्षा गार्ड धूप से बचने के लिए बनाये गये टीन शेड के नीचे बैठा पेपर पढ़ रहा था। अास–पास चर रही बकरियां उसे परेशान किये हुए थीं। बिचारा मंदिर में अनधिकृत रूप से प्रवेश कर रही बकरियों को जब तक भगाने गया तब तक उसका पेपर हवा उड़ा ले गयी। दोहरी मारǃ
चौंसठ योगिनी मंदिर एक काफी ऊँचे और संभवतः खजुराहो के किसी भी मंदिर से ऊँचे प्लेटफार्म पर बना है जिसके खण्डहर ही अब अवशेष हैं। मैं भी सामने बनी सीढ़ियों से ऊपर चढ़ गया। एक खुले प्रांगण के चारों ओर बनी छोटी–छोटी कोठरियों में कोई भी मूर्ति वगैरह नहीं है। ये सभी कोठरियां भी पूरी तरह सुरक्षित नहीं बची हैं। वास्तव में यहाँ खण्डहर भी पूरी तरह से सुरक्षित नहीं बचे हैं। चौंसठ योगिनी मंदिर खजुराहो का सबसे प्राचीन मंदिर है जिसका निर्माण छठीं शताब्दी में अर्थात चंदेल साम्राज्य के अस्तित्व में आने से भी तीन सदी पहले हुआ था। खजुराहो में चौंसठ योगिनी मंदिर का अस्तित्व यह प्रमाणित करता है कि यहाँ तंत्र साधना की परम्परा काफी प्राचीन काल से ही रही है। यह मंदिर लावा पत्थर का बना हुआ है। खजुराहो के अधिकांश मंदिर पूर्वाभिमुख हैं,साथ ही दो मंदिर– चतुर्भुज तथा ललगुंवा महादेव पश्चिमाभिमुख हैं जबकि चौंसठ याेगिनी उत्तराभिमुख है। इस मंदिर में एक चतुष्कोणीय खुले प्रांगण के चारों ओर छोटे–छोटे कक्ष बनाये गये हैं। इन कक्षों की संख्या प्रारम्भ में 67 थी जो वर्तमान में 35 की संख्या में शेष बचे हैं। वर्तमान में इन कक्षों में किसी भी तरह की कोई मूर्ति स्थापित नहीं है। एक कक्ष में मुझे कुछ टूटी हुई छोटी मूर्तियां तथा कुछ पत्थर रखे दिखे जिन पर फूल वगैरह चढ़ाया गया था। लेकिन यह संभवतः किसी स्थानीय व्यक्ति का काम रहा होगा।

चौंसठ योगिनी मंदिर का निरीक्षण कर और फोटो खींचने के बाद मैं बाहर निकला और पुनः खजुराहो की ओर वापस चला तो मंदिर के पीछे बसे गाँव की तरफ से आता हुआ एक युवक जल्दी–जल्दी मेरे पास पहुँच गया और मुझ पर डोरे डालना शुरू किया। उसने मेरी पीठ पर बैग और गले में कैमरा लटका देख मेरे बारे में बहुत कुछ अनुमान लगा लिया था। मुझे डर लगा कि यह क्यों मेरे पीछे पड़ा। मेरी बगल में चलते हुए उसने बिना किसी औपचारिकता के पूछना शुरू किया–
'आप घूमने आये हैं सर?'
मैंने सहमति में सर हिलाया यह सोचते हुए कि कहीं यह कोई ज्योतिषी तो नहीं।
उसने प्रस्ताव रखा– 'आप कहेंगे तो बाइक से आपको घुमा दूँगा।'
अब मेरी समझ में पूरी बात आई तो मैंने बिना किसी लाग–लपेट के पूछा– 'कितने पैसे लोगे?'
'सर,समझ के जो भी आप दे दीजिएगा। मेरे पास दो–दो बाइक हैं। आप जो कहेंगे ला दूँगा। आपको चलानी भी नहीं पड़ेगी।'
मैंने सोचा कि बाइक तो मैं प्रतिदिन लगभग पन्द्रह साल से 80-90 किलोमीटर नियमित रूप से चलाता आ रहा हूँ। वह खजुराहो के पूर्वी और दक्षिणी मंदिर समूहों में से सबके नाम गिना गया तो मुझे लगा कि यह लड़का भविष्य में खजुराहो का ट्रैवल एजेंट बनेगा। मैंने सुबह में खजुराहो घुमाने के लिए एक–दो आॅटो वालों से बात की थी तो लगा था कि तीन से साढ़े तीन सौ तक में बात बन सकती है। मैंने इस लड़के से भी बाइक के माइलेज,खर्चे व फायदे पर बात की तो तीन सौ में बात तय हो गयी। लड़का बोला कि आप यहीं रूकिए और मैं अपनी बाइक लेकर आता हूँ। मैं सशंकित था कि कहीं यह अपनी बाइक लेकर लौटे ही नहीं तो मैं इसे यहीं खड़ा ढूँढ़ता रह जाऊँगा। मैंने उसे अपना मोबाइल नंबर देना चाहा ताकि वह मुझे सूचित कर सके कि वह बाइक लेकर आ रहा है या नहीं लेकिन मेरा नंबर सेव करने के लिए उसने मोबाइल निकाला तो उसका मोबाइल स्विच आॅफ था। मैंने उसका नंबर ले लिया। लड़का दस मिनट का वादा कर दौड़ते हुए भागा। मैं उसका इंतजार करने के लिए वापस चौंसठ योगिनी मंदिर के पास चला आया और वहाँ गार्ड के लिए बने टीन शेड के अंदर बैठ गया और गार्ड महोदय से बातें करना शुरू किया। दस की बजाय बीस मिनट गुजर गये। मैंने लड़के का नंबर मिलाया तो स्विच आॅफ। मैं हार मानकर उठा और खजुराहो की ओर धीरे–धीरे टहलते हुए चल पड़ा। लेकिन विश्वास पर आज भी धरती टिकी हुई है। पाँच मिनट बाद ही वह लड़का भागता हुआ आया और क्षमा याचना के शब्दों में बोला– "सर मेरी एक बाइक पंचर है और दूसरी बाइक मेरे पापा लेकर चले गये हैं इसलिए नहीं ला सका लेकिन आप कहेंगे तो कल ला दूॅंगा।" मैं उससे किसी तरह पिण्ड छुड़ाकर आगे भागा। वैसे एक बात तो तय है कि खजुराहो और इसके आस–पास बसे गाँवों के लोग खजुराहो के महत्व को समझ चुके हैं और इससे मिलने वाले लाभ को भुनाने में तत्परता से लगे हैं। हो सकता है यहाँ भविष्य में गाइडों और ट्रेवेल एजेण्टों की भारी फौज खड़ी हो जाय।

अब तक 3.00 बज चुके थे। मैं अब पूर्वी मंदिर समूह की ओर बढ़ चला। खुद के बनाये नजरी–नक्शे और लोगों से की गयी पूछताछ के आधार पर चलते हुए सबसे पहले ब्रह्मा मंदिर पहुँचा। एक तालाब के पूर्वी किनारे पर बना यह एक छोटा सा मंदिर है। इस तालाब को खजुराहो सागर या निनोरा ताल के नाम से जाना जाता है। मंदिर पर एक विदेशी युगल ऑटो से पहुँचा था और मंदिर के पास बैठे दो स्थानीय व्यक्ति उन्हें मंदिर के बारे में कुछ बता रहे थे। मैं बहुत आश्चर्य में था यह देखकर कि खजुराहो के लोग पता नहीं कितनी विदेशी भाषाओं के कामचलाऊ शब्द सीख चुके हैं। उनके हटने के बाद मैं भी मंदिर में घुसा क्योंकि मंदिर के अंदर कई लोगों के एक साथ प्रवेश करने लायक जगह नहीं है। यह मंदिर खजुराहो के कुछ अन्य एकल शिखर वाले मंदिरों जैसे मातंगेश्वर मंदिर,वाराह मंदिर,ललगुंवा के महादेव मंदिर की श्रेणी का ही है जिनके शिखर पिरामिड की आकृति के हैं। इस मंदिर के अंदर चतुर्मुखी शिवलिंग स्थापित है। इस शिवलिंग के चारों तरफ बने मुखों के कारण ही इसे भ्रमवश ब्रह्मा मंदिर नाम दे दिया गया। मंदिर में पूजा नहीं होती है।
मंदिर के पास मैंने पूछताछ की तो पता चला कि वामन मंदिर और जवारी मंदिर भी पास ही हैं,लगभग आधे किलोमीटर के दायरे में। ब्रह्मा मंदिर से थोड़ा ही आगे बढ़ने पर खेतों के बीच बने ये मंदिर दिखने लगे। इन मंदिरों तक पहुँचने के लिए पक्का रास्ता उपलब्ध नहीं हैं। पुरातत्व विभाग ने वामन व जवारी मंदिर के बाहर चारदीवारी बना दी है तथा एक गार्ड भी तैनात कर दिया है लेकिन अभी टिकट नहीं लगा है। ब्रह्मा मंदिर बिल्कुल खुले में स्थित है।

वामन मंदिर के गेट से जब मैंने अंदर प्रवेश किया तो कुछ स्थानीय छोटे–छोटे बच्चे मेरा परिचय पूछने लगे। साथ ही मुझे कुछ छोटी–मोटी चीजें भी बेचनी की कोशिश की लेकिन यहाँ तो ऐसी कितनी भी कोशिशें बेकार ही होनी थीं। वामन मंदिर में तैनात गार्ड दो–चार अंग्रेजी के शब्द बोलकर एक विदेशी युवती के साथ फोटो खिंचवाने में मशगूल था। मेरे पास इतना सौभाग्य कहाँǃ वैसे भी सौभाग्य तो विशेष रूप से महिलाओं के साथ ही रहता है। वामन मंदिर निरंधार शैली का ही एक मंदिर है अर्थात इसके गर्भगृह के चारों ओर प्रदक्षिणा पथ नहीं है। इस मंदिर का प्रवेश द्वार क्षतिग्रस्त हो चुका है। मंदिर के गर्भगृह में भगवान विष्णु के चतुर्भुज वामन अवतार की प्रतिमा स्थापित है। मंदिर की वाह्य दीवारों पर प्रतिमाएं दो पंक्तियों में हैं। इस मंदिर में मिथुन प्रतिमाएं नहीं हैं वरन केवल आलिंगन की कुछ प्रतिमाएं ही हैं। अधिकांश प्रतिमाएं अकेली नायिकाओं की ही बनी हैं। प्रतिमाओं व स्थापत्य शैली के आधार पर इस मंदिर का निर्माण काल 1050 से 1075 ई0 निर्धारित किया जाता है।
वामन मंदिर से जवारी मंदिर का रास्ता थोड़ा घूमकर था। लेकिन जब कच्चा ही रास्ता था तो रास्ते की क्या जरूरत। मैंने पगडंडियों की राह पकड़ी व धूल में चलते व नालियों को पार करते जवारी मंदिर पहुँच गया। जवारी मंदिर एक छोटा मंदिर है लेकिन काफी सुंदर है। मंदिर में केवल प्रवेश द्वार और गर्भगृह हैं। प्रवेश द्वार में छोटा सा मकर तोरण बना है। गर्भगृह में भगवान विष्णु की प्रतिमा स्थापित है। इस छोटे से मंदिर की वाह्य दीवारों पर अंकित मूर्तियां काफी सघन रूप में एवं तीन पंक्तियों में हैं। कुछ मिथुन प्रतिमाएं भी हैं। इस मंदिर का निर्माण 1075 से 1100 ई0 के मध्य हुआ माना जाता है।

अभी मेरे पास दिन का काफी समय शेष बचा था तो मैंने जवारी मंदिर पर तैनात गार्ड से आस–पास स्थित अन्य मंदिरों के बारे में पता किया। उसने भी मुझे पैदल देखा तो शार्टकट रास्ता बता दिया– "बस सीधी पगडंडी पकड़ लीजिए। वो सामने जहाँ ईंट रखी है वहाँ से गाँव में प्रवेश कर जाइए। पूछते हुए गलियों में चलते जाइए। गाँव के बीच में ही घण्टाई मंदिर के अवशेष हैं। गाँव से बाहर निकलेंगे तो पक्की सड़क मिल जायेगी और उसपर थोड़ा सा आगे चलेंगे तो जैन मंदिर मिल जायेगा। जहाँ न समझ में आये वहाँ किसी से रास्ता पूछ लीजिए।" मैंने उसे धन्यवाद देते हुए कृतज्ञता ज्ञापित की और खेतों में चलता हुआ गाँव की ओर बढ़ चला। अपने गाँव से सैकड़ों किलोमीटर दूर मध्य प्रदेश के गाँवों की गलियों में पैदल चलना काफी रोमांचक लग रहा था। गाँव के लोग–बाग व बच्चे काफी उत्सुकता से मेरी ओर देख रहे थे क्योंकि पर्यटक यहाँ आते जरूर हैं लेकिन गाँवों की गलियों में इस तरह शायद ही कोई घूमता होगा।
खजुराहो गाँव की गलियों में चलते हुए मैं घंटाई मंदिर पहुँचा तो वहाँ का गार्ड गेट की सिटकनी अंदर से बन्द कर कुंभकर्णी निद्रा में सो गया था। शायद उसे पता था कि इस खण्डहर को देखने कौन आएगा। एक–दो बार आवाज लगाने पर भी नहीं उठा तो मैंने गेट के अंदर हाथ घुसा कर सिटकनी खोल ली और अंदर चला गया। दो–चार फोटाे खींचने के बाद बाहर भी निकल गया लेकिन गार्ड की नींद नहीं खुली। घण्टाई मंदिर में अब खण्डहर ही अवशेष हैं। इन खण्डहरों में भी कुछ स्तंभ तथा इन पर टिकी हुई छत ही दिखायी पड़ रही थी। इसी छत के नीचे मंदिर का गार्ड निश्चिंत भाव से सो रहा था। मंदिर के अवशेषों के आधार पर इसे जैन मंदिर माना जाता है। मंदिर के स्तंभों पर साँकलों से बँधी हुई घंटियों की आकृतियां बनी हुई हैं। संभवतः इन्हीं की वजह से इसे घण्टाई मंदिर नाम दिया गया है।
अब मुझे जैन मंदिर पहुँचना था। गाँव वालों से जैन मंदिर का रास्ता पूछते हुए मैं गाँव से बाहर निकल कर मुख्य सड़क पर आ गया। अब यहाँ से रास्ता पूछने की कोई जरूरत नहीं थी। दूर से ही जैन मंदिर दिख रहा था और गाड़ियों की आवाजाही भी हो रही थी। गेट तक पहुँचा तो अंदर भारी भीड़ दिख रही थी। संयोग अच्छा था कि यह भीड़ बाहर निकल रही थी और मंदिर बिल्कुल खाली हो रहा था। दरअसल यह दो बसों से आया हुआ यह विदेशी पर्यटकों का समूह था जो मंदिरों के दर्शन कर चुकने के बाद अब लौटने वाला था। मेरे लिए यह राहत की बात थी। अब मैं मंदिर की कलाकृतियों को देखने और फोटो खींचने के लिए अकेला था। यहाँ मेरे साथ एक छोटी सी घटना घटित हुई। जब मैं जैन मंदिर के गेट तक पहुँचा तो छोटे–छोटे गिफ्ट आइटम बेचने वाला एक दुकानदार मेरे पीछे पड़ा। मैं उसके सामानों की कीमत अभी पूछ ही रहा था कि उसकी नजर मंदिर से बाहर निकलते विदेशी पर्यटकों पर पड़ी। उस बिचारे ने आव देखा न ताव,अपनी सारी दुकान समेट कर मुझे ठेंगा दिखाते हुए उन विदेशी पर्यटकों की ओर दौड़ पड़ा। वैसे मुझे भी खरीदारी करनी ही कहाँ थी।

जवारी मंदिर से जैन मंदिर समूह की दूरी लगभग 1.5 किलोमीटर है। जैन मंदिर समूह में तीन मुख्य मंदिर हैं– पार्श्वनाथ मंदिर,आदिनाथ मंदिर व शांतिनाथ मंदिर। जैन मंदिर समूह में पार्श्वनाथ मंदिर सबसे विशाल है। यह एक सांधार मंदिर है। यह मंदिर मूलरूप से आदिनाथ के लिए बना था लेकिन इसमें पार्श्वनाथ की प्रतिमा स्थापित है। इस मंदिर के महामण्डप के प्रवेश द्वार पर अंकित एक शिलालेख के अनुसार इस मंदिर का निर्माण लगभग 950 ई0 में पाहिल नामक एक श्रेष्ठि ने करवाया था। यह लक्ष्‍मण और विश्वनाथ मंदिर की तरह पंचरथ शैली का मंदिर है। मंदिर की बाहरी दीवारों पर सघन मूर्तियों को तीन पंक्तियों में अंकित किया गया है। पार्श्वनाथ मंदिर की एक सबसे बड़ी विशेषता यह है कि इसके गर्भगृह के पीछे एक और लघु मंदिर जुड़ा हुआ है। इससे स्पष्ट होता है कि यह मंदिर खजुराहो की काफी विकसित शैली का नमूना है।
पार्श्वनाथ के बिल्कुल पास ही उत्तर दिशा में आदिनाथ का मंदिर है। यह निरंधार शैली का मंदिर है। इस मंदिर का गर्भगृह तथा उसका शिखर ही अपने मूल रूप में विद्यमान हैं। क्योंकि इसके आगे का अंतराल बाद में निर्मित किया गया। मंदिर के गर्भगृह में जैन तीर्थंकर आदिनाथ की प्रतिमा स्थापित है।
शांतिनाथ मंदिर का निर्माण 11वीं शताब्दी में हुआ था। इसके गर्भगृह में 4.5 मीटर ऊँची शांतिनाथ की प्रतिमा स्थापित है। मूल मंदिर के आस–पास बाद के काल में काफी निर्माण किये गये हैं। इस मंदिर में धार्मिक गतिविधियां भी की जाती हैं और जैन मतावलम्बी दर्शन करने के लिए भी आते हैं।

वैसे तो कोई भी धर्म कामक्रियाओं के उन्मुक्त प्रदर्शन अथवा इनसे सम्बन्धित मूर्तियाें के निर्माण की अनुमति नहीं देता लेकिन जैन समूह के मंदिरों में इस तरह की मूर्तियां लगभग अनुपस्थित हैं। यद्यपि स्त्री–पुरूष सम्बन्ध एक असामान्य तथ्य नहीं है पर हमारे अधिकांश समाज और धर्म इसे गोपनीय ही रखना चाहते हैं। लेकिन खजुराहो ने इस परम्परा को तोड़ा है। धार्मिक देवताओं के मंदिरों के साथ इन क्रियाओं को जोड़कर खजुराहो के निर्माणकर्ताओं ने इन्हें वैधता प्रदान करने की कोशिश की है। खजुराहो की ये मूर्तियां यदि हिंदू धर्म के आराध्य देवों के मंदिरों से जुड़ी न होतीं तो इन पर अश्लील होने का ठप्पा तो लग ही चुका होता या फिर शायद ये अपना अस्तित्व ही खो चुकी होतीं। मंदिरों की दीवारों पर इस तरह की मूर्तियों के निर्माण के कारण चाहे जो भी रहे हों,यह भारतीय परम्परा के विरूद्ध तो है ही,शोध और विश्लेषण का विषय भी है।

जैन मंदिर समूह परिसर की बाहरी चारदीवारी के अंदर एक छोटे से परिसर में कुछ दुकानों को जगह दी गयी है जिनमें गिफ्ट आइटम वगैरह तथा जैन परम्परा से सम्बन्धित वस्तुएं विक्रय के लिए उपलब्ध हैं। जैन मंदिर समूह के आदिनाथ,शांतिनाथ,पार्श्वनाथ और कुछ अन्य छोटे मंदिरों को देखने के बाद मैं बाहर निकला। गेट पर एक चाय वाले के यहाँ चाय पी और तब मुझे समझ में आया कि दिन का समय और मेरे शरीर में ऊर्जा,बिल्कुल भी नहीं बची है। धीरे–धीरे टहलते हुए मैं खजुराहो के मुख्य चौराहे या बाजार की ओर चल पड़ा। 6 बजे तक मैं पश्चिमी मंदिर समूह तक पहुँच चुका था। अभी तुरंत खाना खाने की इच्छा नहीं थी। अब शरीर कुछ देर बैठ कर आराम करने को कह रहा था इसलिए मैं बैठने के लिए कोई जगह ढूँढ़ने के फेर में पड़ा। पश्चिमी मंदिर समूह का गेट पाँच बजे बंद हो जाता है। वैसे भी इस परिसर में प्रवेश करने के लिए 30 रूपये का टिकट लेना पड़ता। मंदिर परिसर की चारदीवारी से सटकर सड़क किनारे कई बेंचें रखी गयी हैं लेकिन वहाँ बैठने की इच्छा नहीं कर रही थी। तो अब एक ही सहारा बचा था– मातंगेश्वर मंदिर।
मातंगेश्वर मंदिर खजुराहो के मंदिरों में एकमात्र ऐसा मंदिर है जहाँ पूजा होती है। यह भी पश्चिमी मंदिर समूह का ही एक मंदिर है लेकिन संभवतः पूजा होने की वजह से पुरातत्व विभाग ने इसे अलग कर दिया है। पश्चिमी मंदिर समूह की चारदीवारी इसे बाकी मंदिरों से अलग कर देती है। मातंगेश्वर मंदिर के पास पश्चिमी मंदिर समूह की चारदीवारी में एक छोटा सा गेट लगा हुआ है लेकिन उसमें ताला बंद रहता है। मातंगेश्वर मंदिर में पूजा करने या फिर इसकी सीढ़ियों पर बैठकर आराम फरमाने का कोई टिकट नहीं है। तो फिर खजुराहो के लोगों के लिए शांति के साथ शाम का समय बिताने के लिए इससे अच्छी जगह क्या हो सकती है। मैं भी इसी भीड़ में शामिल हो गया। लगभग घण्टे भर तक मंदिर में आते–जाते लोगों को देखने और सीढ़ियों पर बैठे लोगों की रोजमर्रा की गिटर–पिटर सुनने के बाद मैं मंदिर परिसर से बाहर निकला। क्योंकि अब चलने के साथ–साथ बैठने की इच्छा भी समाप्त हो गयी थी। अब केवल खाने और सोने की इच्छा ही शेष बची थी।


चौंसठ योगिनी मंदिर


बाहर से चौंसठ योगिनी मंदिर 

ब्रह्मा मंदिर 
ब्रह्मा मंदिर के अंदर चार मुख वाला शिवलिंग



वामन मंदिर की वाह्य दीवार पर सघन मूर्तियां
वामन मंदिर
वामन मंदिर
वामन मंदिर की वाह्य दीवार
वामन मंदिर का गर्भगृह
वामन मंदिर का शीर्ष
वामन मंदिर
जवारी मंदिर
जवारी मंदिर का गर्भगृह
जवारी मंदिर
घंटाई मंदिर
पार्श्वनाथ मंदिर
पार्श्वनाथ की प्रतिमा
पार्श्वनाथ मंदिर के अंदर की छत
पार्श्वनाथ मंदिर की वाह्य दीवार की मूर्तियां
शांतिनाथ मंदिर
शांतिनाथ की प्रतिमा
शांतिनाथ मंदिर
आदिनाथ मंदिर में आदिनाथ की प्रतिमा
आदिनाथ मंदिर

अगला भाग ः खजुराहो–एक अलग परम्परा (चौथा भाग)

सम्बन्धित यात्रा विवरण–
1. खजुराहो–एक अलग परम्परा (पहला भाग)
2. खजुराहो–एक अलग परम्परा (दूसरा भाग)
3. खजुराहो–एक अलग परम्परा (तीसरा भाग)
4. खजुराहो–एक अलग परम्परा (चौथा भाग)
5. कालिंजर
6. अजयगढ़

पूर्वी मंदिर समूह का गूगल मैप–

4 comments:

  1. अद्भुत है खजुराहो की कला और पत्थरों पे की गई नक्कासी

    ReplyDelete
    Replies
    1. धन्यवाद भाई। आगे भी ऐसे ही आते रहिए। हर शुक्रवार शाम सात बजे के आस पास एक पोस्ट जरूर आती है।

      Delete
  2. जिस जगह की गार्ड को कदर नही वो जगह भी आप घूम रहे है....इसे ही कहते है घुमक्कड़ी और आप है पक्के घुमक्कड़...

    ReplyDelete
    Replies
    1. हर जगह को बारीकी से घूमकर देखना अच्छा लगता है। मन को संतोष मिल जाता है।

      Delete

Top