कल देर शाम हम अजंता से लौटे थे। अच्छा और शुद्ध शाकाहारी होटल खोजने में थोड़ा समय गँवाया। औरंगाबाद सेन्ट्रल बस स्टेशन के आस–पास कुछ देर तक टहलते रहे। तो सोने में थोड़ी देर होनी ही थी। और दिन भर भागदौड़ करने के बाद रात में थोड़ी देर से सोयेंगे तो उठने में भी थोड़ी देर होनी ही थी। और देर का मतलब सुबह उठने में पौने सात बज गये। आज एलोरा की तैयारी थी। कल अजंता में थे। वैसे तो औरंगाबाद से एलोरा की दूरी अजंता की तुलना में काफी कम है लेकिन कल रविवार के दिन अजंता में मनुष्यों की भीड़ और भीड़ के सेल्िफयाना अंदाज ने हमें अंदर तक हिला दिया था और हम जल्दी निकलने के लिये तैयार होेने में काफी तेजी दिखा रहे थे।
समस्या भीड़ से नहीं भीड़ के अंदाज से थी। यदि गुफा की मूर्तियों और चित्रों को सभी लोग बस देख रहे होते तो कोर्इ समस्या नहीं थी लेकिन बुरा हो इस स्मार्टफोन काǃ सेल्फी के जुनून में लाेग भूल जा रहे थे कि उनके आगे–पीछे या फिर अगल–बगल कोई और भी है जो अजंता की गुफाएं देखने आया है। वहाँ तैनात कर्मचारियों का चिल्लाना तो जैसे आशीर्वाद तुल्य था।
तेजी का आलम यह रहा कि हम दोनों केवल 45 मिनट में नहा–धोकर कमरे से निकल लिये। औरंगाबाद के सेन्ट्रल बस स्टेशन पहुँचे तो चालीसगाँव या धुले जाने वाली बस लगी थी। जगह भी अभी काफी खाली थी। कल के अनुभव का फायदा उठाते हुए हमने आटो और छोटी गाड़ी वालों को बिल्कुल ना कर दिया। 7.45 बजे बस भी रवाना हो गयी। औरंगाबाद से एलोरा की दूरी 28 किमी। बस का किराया 40 रूपये। रास्ते में ही औरंगाबाद से 15 किमी की दूरी पर दौलताबाद स्थित है। यहाँ का किला भी हमारे रडार पर था पर अभी नहीं बल्कि लौटते समय। इसके आगे औरंगाबाद से 24 किमी की दूरी पर खुल्दाबाद स्थित है जहाँ औरंगजेब का मकबरा बना है। यहाँ का भद्रा मारूति मंदिर भी काफी प्रसिद्ध है। लेकिन यह भी लौटते समय। इसके अलावा घृष्णेश्वर ज्योतिर्लिंग भी हमारे प्लान में था लेकिन अभी तो एलोरा ही जाना था। लगभग 45 मिनट में अर्थात 8.30 बजे तक हम एलोरा पहुँच गये। जगह–जगह सूचना बोर्ड पर वेरूळ लिखा दिख रहा था। पूछा तो पता चला कि इसका स्थानीय नाम वेरूल ही है। वैसे नाम में क्या रखा है– वेरूल हो या एलोरा। हमें तो यहाँ की गुफाएं देखनी हैं।
एलोरा की गुफाएं मुख्य सड़क के पास ही हैं। बस से उतरने के बाद हम बैरिकेडिंग करके बनाये गये रास्ते से गुफा परिसर में प्रवेश करते हैं। मेन गेट पर भीड़ लगी थी। बहुत से स्थानीय लग रहे लोग गाेला बनाकर खड़े थे। आगे बढ़कर देखा तो दो–तीन बंदर सड़क पर बैठे हुए थे और लोगों द्वारा फेंके गये बिस्कुट वगैरह खा रहे थे। अब हिन्दुस्तान में भीड़ जुटने के लिए इतना तमाशा काफी है। थोड़ा ही आगे टिकट काउण्टर है। टिकट की दर 30 रूपये। टिकट काउण्टर पर लाइन अभी नहीं लगानी पड़ रही थी। वैसे टिकट लेकर आगे बढ़े तो टिकट चेकिंग के लिए लम्बी लाइन लगी थी। टिकट चेकर ने हमें आगे बुला लिया। पता चला कि लाइन में बस से आये हुए स्कूली बच्चे लगे थे। उनका टिकट अभी खरीदा जा रहा था। हम आगे निकले तो बहुत भीड़ दिख रही थी लेकिन कल वाली अजंता जैसी भीड़ नहीं थी। टिकट काउण्टर के पास ही बस स्टैण्ड भी था जहाँ से दूर स्िथत गुफाओं तक बसें पर्यटकों को ले जा रही थीं। वैसे हमने बस पर अधिक ध्यान नहीं दिया और पैदल मार्च करने का इरादा किया। टिकट काउण्टर से सीधे आगे बढ़ने पर ठीक सामने एलोरा का प्रसिद्ध कैलाश मंदिर दिखायी पड़ता है। यह गुफा संख्या 16 में स्थित है। यहाँ से दाहिने क्रमशः गुफा संख्या 15,14 आदि होते हुए गुफा संख्या 1 की ओर रास्ता जाता है जबकि बायें क्रमशः 17,18 होते हुए गुफा संख्या 34 की ओर रास्ता जाता है। हमने गुफा संख्या 1 की ओर जाने वाला रास्ता पकड़ा। तो सबसे गुफा संख्या 15। गुफाओं में भीड़ थी लेकिन इतनी सहूलियत थी कि हम कुछ देर खड़े होकर अपने पसंद की गुफा देख सकते थे और फोटो भी खींच सकते थे।
10 बजे तक हम गुफा संख्या 1 तक पहुँच चुके थे। गुफा संख्या 1 से आगे की ओर रास्ते पर पत्थरों की कटाई–छँटाई करते कुछ कामगार लगे थे। पता नहीं रास्ते की मरम्मत हो रही थी या नये रास्ते का निर्माण हो रहा था। गुफा 1 देखकर हम वापस गुफा संख्या 16 की तरफ लौटे। रास्ते में छोटे–छोटे गिफ्ट आइटम बिक रहे थे। हमने भी कुछ आइटम खरीदे– 100 वाला 30 में और 150 वाला केवल 50 में। अब इतना डिस्काउण्ट हमारे ये घुमक्कड़ दुकानदार ही दे सकते हैं। किसी माॅल वाले के दिल में इतनी उदारता कहाँǃ
प्राचीन काल में एलोरा,वेरूल के नाम से एक तीर्थस्थल के रूप में विख्यात रहा है। एलोरा की 34 गुफाओं का निर्माण 5वीं शताब्दी से लेकर 11वीं शताब्दी के मध्य लगभग 600 वर्षाें तक एलोरा नामक पहाड़ी में चलता रहा। इस महान निर्माण में मुख्य भूमिका राष्ट्रकूट शासकों की रही। एलोरा की गुफाएं सर्वधर्मसमभाव का अद्भुत उदाहरण प्रस्तुत करती हैं। इन गुफाओं में गुफा संख्या 1-12 बौद्ध धर्म से संबन्धित हैं अर्थात् इनमें बौद्ध मठ व विहार बने हुए हैं। गुफा संख्या 13-29 हिन्दू धर्म से संबन्धित हैं तथा गुफा संख्या 30-34 जैन धर्म से संबन्धित हैं। इस तरह एक ही परिसर में तीन धर्माें का संगम एलोरा में होता है। एलोरा का गुफा परिसर औरंगाबाद से धुले की ओर लगभग उत्तर–पश्चिम दिशा में जाने वाले राष्ट्रीय राजमार्ग संख्या 52 पर अवस्थित है। गुफाएं लगभग उत्तर से दक्षिण दिशा में विस्तृत हैं। सर्वाधिक दक्षिणी सिरे पर गुफाओं का सिलसिला गुफा संख्या 1 से शुरू होता है और एक लाइन से गुफा संख्या 29 तक चला जाता है। गुफा संख्या 30-34,जो जैन धर्म से संबन्धित हैं,कुछ हटकर सबसे उत्तरी छोर पर अवस्थित हैं। सर्वाधिक महत्वपूर्ण गुफा संख्या 16 का कैलाश मंदिर,जो हिन्दू धर्म से संबन्धित है,मुख्य परिसर के लगभग बीच में स्थित है तथा अधिकांश पर्यटक इसे ही देखने आते हैं और बहुत लाेग तो केवल इसे देखकर ही एलोरा की गुफा यात्रा को सम्पूर्ण मान लेते हैं।
गुफा संख्या 1 में एक खुला प्रांगण जैसा है जिसमें छोटी–छोटी कोठरियां बनी हुईं हैं जो सम्भवतः ध्यान लगाने के काम आती रही होंगी।
गुफा संख्या 2 एक बौद्ध विहार के रूप में है जिसका निर्माण सम्भवतः आठवीं शताब्दी में हुआ। इसमें एक बरामदे के दोनों ओर कोठरियाँ तथा सभामण्डप के दोनाें ओर बारह स्तम्भों से युक्त कक्ष हैं। पीछे की दीवार में गर्भगृह है जिसमें भगवान बुद्ध व्याख्यान मुद्रा में विराजमान हैं।
गुफा संख्या 3 व 4 भी बौद्ध विहार हैं। इनमें से गुफा संख्या 4 दोमंजिला है।
गुफा संख्या 5 एक भव्य तथा विस्तृत बौद्ध विहार है जिसका निर्माण सम्भवतः सातवीं शताब्दी में हुआ था। इसके मध्य में लम्बाई में विस्तृत गलियारा है जिसमें लम्बाई के अनुदिश दो लम्बे चबूतरे बने हुए हैं जो संभवतः सभागृह या भोजन के काम में आते रहे होंगे। वर्तमान में ये चबूतरे सेल्फी लेने के काम आ रहे हैं। इनके पीछे दोनों ओर स्तम्भों पर टिके बरामदे हैं जिनके पीछे कोठरियां हैं। पीछे की ओर गर्भगृह है जिसमें बोधिसत्व तथा गंधर्व आकृतियों से घिरी भगवान बुद्ध की प्रतिमा व्याख्यान मुद्रा में विराजमान है।
गुफा संख्या 6 भी एक विहार है। इसकी विशिष्टता यह है कि इसमें हिन्दू देवी सरस्वती की मूर्ति दीवार के सहारे अंकित है। गुफा संख्या 7 व 8 में बहुत सारी मूर्तियां हैं फिर भी ये गुफाएं सम्भवतः अपूर्ण हैं।
गुफा संख्या 9 और 10 चैत्य हैं। गुफा संख्या 10 एलोरा की गुफाओं में एकमात्र दुमंजिला चैत्य है। इसका निर्माण सम्भवतः सातवीं शताब्दी में किया गया था। इसका सभामण्डप चापाकार है जो तीस स्तम्भों से युक्त है। सभामण्डप के दोनाें ओर कोठरियों से युक्त बरामदे हैं। एक ही शिलाखण्ड से बने स्तूप पर बोधिसत्व और गंधर्व प्रतिमाओं से घिरी भगवान बुद्ध की प्रतिमा व्याख्यान मुद्रा में स्थापित है। गुफा के ऊपरी तल को संगीतशाला भी कहा जाता है। इस गुफा को सुतार झोंपड़ी भी कहा जाता है।
गुफा संख्या 11 एक बौद्ध विहार है। यह एक तीनमंजिली गुफा है। इस गुफा में कई हिन्दू मूर्तियां भी पायी जाती हैं।
गुफा संख्या 12 भी तीन मंजिला है और इसे तीनताल भी कहते हैं। यह गुफा भी आठवीं शताब्दी की है। यह बौद्ध धर्म से सम्बन्धित अंतिम गुफा है। प्रथम तल पर अनेक स्तम्भों से युक्त सभामण्डप का दृश्य अत्यंत सुंदर दिखता है। दि्वतीय तल पर भी स्तम्भयुक्त मण्डप और कोठरियों का निर्माण किया गया है। गर्भगृह में बुद्ध की सेविका सुजाता द्वारा बुद्ध को खीर अर्पित करने का दृश्य अंकित किया गया है। तृतीय तल पर अनेक मूर्तियों का निर्माण किया गया है।
गुफा संख्या 13 से हिन्दू धर्म से संबन्धित गुफाओं का आरम्भ माना जाता है। इस गुफा में कुछ भी खास नहीं है। इसका उपयोग विश्रामालय या अन्य किसी उद्देश्य से किया जाता रहा होगा।
गुफा संख्या 14 में रावण द्वारा समुद्र मंथन का दृश्य अंकित किये जाने के कारण इसे रावण की खाई नाम से जाना जाता है। गुफा मंदिर में प्राप्त शिल्प तथा गर्भगृह में प्राप्त आधारपीठ के आधार पर माना जाता है कि यह मंदिर संभवतः शक्ति को समर्पित था। गुफा में स्तम्भयुक्त मण्डप तथा प्रदक्षिणापथ बने हैं। गुफा का बाहरी बरामदा चार स्तम्भों पर आधारित है जबकि इसके पीछे 12 स्तंभों पर टिका हुआ मण्डप है। गर्भगृह के चारों ओर प्रदक्षिणापथ है जिसकी उत्तरी तथा दक्षिणी दीवारों पर अनेक पौराणिक आख्यानों व देवी–देवताओं की मूर्तियों का चित्रण किया गया है। मुख्य द्वार पर भी काफी सुंदर अलंकरण किया गया है। सभामण्डप की दीवारों पर अंकित सप्तमातृका का चित्र शक्तिपूजा के बढ़ते वर्चस्व की ओर इंगित करता है। नृत्य करते शिव तथा कैलाश पर्वत उठाते हुए रावण के दृश्य भी अंकित किये गये हैं।
गुफा संख्या 15 में प्रवेश सीढ़ियों के रास्ते है। इसका निर्माण 8वीं शताब्दी में दंतिदुर्ग के शासन काल में किया गया था। गुफा में प्रवेश करते ही सामने एक बड़ा चौकोर मण्डप है जिसे नाट्यमण्डप भी कहा जाता है। यहाँ प्रसिद्ध राष्ट्रकूट राजा दंतिदुर्ग का अभिलेख उत्कीर्णित है। भगवान विष्णु के अवतारों से संबन्धित अंकनों के कारण इस गुफा को दशावतार गुफा के नाम से भी जाना जाता है। यहाँ भगवान विष्णु के दस अवतारों को मूर्तियों द्वारा प्रदर्शित किया गया है। विष्णु द्वारा नृसिंह रूप धारण कर हिरण्यकश्यप का वध किये जाने का दृश्य सुंदर ढंग से अंकित किया गया है। यह गुफा दुमंजिली है जिसका निचला तल स्तम्भों पर आधारित एक हॉल के रूप में है। जबकि ऊपरी तल भगवान शिव को समर्पित है। यहाँ मण्डप में शिव के वाहन नंदी की मूर्ति स्थापित है जबकि गर्भगृह में विशाल शिवलिंग बना है। गर्भगृह के द्वार और सभामण्डप की दीवारों पर सुंदर अलंकरण किया गया है।
गुफा संख्या 16 अर्थात कैलाश मंदिर में भयंकर भीड़ लगी थी। कम से कम इतनी तो थी ही हमारी हिम्मत नहीं पड़ी मंदिर में प्रवेश करने की। वैसे अभी हमारे पास विकल्प था। तो हम गुफा संख्या 17 की ओर बढ़ चले। आश्चर्यजनक रूप से इधर भीड़ काफी कम थी। हम आराम से एक–एक गुफा का निरीक्षण करते और फोटो खींचते हुए आगे बढ़ते रहे। एक–दो जगह जल्दबाजी भी करनी पड़ी क्योंकि पीछे से स्कूली बच्चों का एक समूह टिड्डी दल की भाँति आगे बढ़ता चला आ रहा था।
गुफा संख्या 17 भी एक बड़ी गुफा है। इसमें स्तम्भों पर आधारित एक बड़ा हाॅल है। मुख्य हॉल के प्रवेश द्वार पर ब्रह्मा व विष्णु की मूर्तियां है जबकि गर्भगृह में शिवलिंग स्थापित है। स्तम्भों पर सुंदर आकृतियां उकेरी गयी हैं। वैसे गुफा के प्रवेश द्वार पर एक प्राकृतिक पुल जैसी संरचना बन गयी है जो सर्वाधिक आकर्षण की वस्तु है। हम भी इसकी फोटो लेना चाह रहे थे। लेकिन इस सुंदर स्थान पर कुछ सुंदरियों ने कब्जा कर रखा था। कुछ तरह–तरह की मुद्राओं में सेल्फी ले रही थीं तो कुछ अभी लिपस्टिक और काजल वाली क्रियाओं में व्यस्त थीं। इनको वहाँ से हटाना मुश्किल लग रहा था। मैंने एक उपाय लगाया। गुफा के हॉल में सफाई कर रहे कर्मचारी से इशारों ही इशारों में इन सुंदरियों को बेदखल करने का निवेदन किया। बस फिर क्या था। वह तुरंत अपना झाड़ू लिये मौके पर पहुँच गया। जो काम हमें बहुत कठिन लग रहा था वह कुछ सेकण्डों में हो गया।
गुफा संख्या 17 के बाद की अधिकांश गुफाएं काफी छोटी हैं तथा पथरीले ढलान पर बिल्कुल पास–पास बनी हैं। गुफा संख्या 18 और 19 में केवल शिवलिंग बने हैं। गुफा संख्या 20 में भी कुछ आकृतियां उकेरी गयी हैं।
गुफा संख्या 21 एक महत्वपूर्ण गुफा है। भगवान शिव को समर्पित यह गुफा रामेश्वर के नाम से जानी जाती है। इस गुफा का निर्माण सातवीं शताब्दी में किया गया था। गुफा द्वार के पास एक चबूतरे पर शिव के वाहन नंदी की मूर्ति बनी हुई है। नंदी का चबूतरा अनेक आकृतियों से अलंकृत है। गर्भगृह में शिवलिंग की स्थापना की गयी है। इसके अतिरिक्त कई कोठरियों में हिंदू धर्म से संबन्धित मूर्तियां स्थापित हैं।
गुफा संख्या 22 का नाम नीलकण्ठ है। गर्भगृह में स्थापित शिवलिंग के अलावा इसमें गणेश जी,गजलक्ष्मी और कार्तिकेय की भी मूर्तियां स्थापित हैं। एक छोटे से चबूतरे पर नंदी की मूर्ति भी विराजमान है।
गुफा संख्या 23 व 24 में बिल्कुल पास–पास स्थित कई गुफाएं सम्मिलित हैं। इन्हें गणेश गुफा समूह कहा जाता है। इनका शिल्प साधारण है। सभी गुफाओं के गर्भगृह में शिवलिंग स्थापित है। इस समूह की सबसे बड़ी विशिष्टता यह है कि यहाँ एक गुफा में ब्रह्मा,विष्णु और शिव की एक संयुक्त मूर्ति है जिसे त्रिमूर्ति भी कहा जाता है।
गुफा संख्या 25 एक बड़ी गुफा है और एक चबूतरे पर बनी है। इसमें हिन्दू धर्म से संबन्धित धन के देवता कुबेर की मूर्ति स्थापित है। गुफा के गर्भगृह में कोई शिवलिंग नहीं है। गुफा संख्या 26 में दो नारी द्वारपालों के साथ एक शिवलिंग स्थापित है। इसके स्तम्भों पर बहुत ही सुंदर कारीगरी की गयी है।
गुफा संख्या 27 में कई हिंदू मूर्तियां प्रदर्शित हैं। बायीं ओर वाराह अवतार,महिषासुरमर्दिनी तथा ब्रह्मा,विष्णु व शिव की मूर्तियां बनी हैं जबकि दायीं ओर बलराम और श्रीकृष्ण की मूर्तियां हैं। इसके अलावा शेषनाग के ऊपर भगवान विष्णु की मूर्ति भी प्रदर्शित है।
गुफा संख्या 27 के पास जाकर रास्ता बन्द हो गया। गुफाएं तो आगे भी दिख रहीं थी लेकिन उनका रास्ता पत्थर वगैरह गिरने से क्षतिग्रस्त हो चुका था तथा क्षतिग्रस्त रास्ते से बिल्कुल सटे हुए नीचे दिखता तालाब किसी अन्य रास्ते की सम्भावनाओं को भी खत्म कर रहा था। आस–पास दर्शक तो काफी थे लेकिन रास्ता बताने वाला कोई नहीं दिख रहा था। लेकिन हम भी कहाँ हार मानने वाले थे। थोड़ा सा पीछे लौटे तो दायीं ओर नीचे उतरकर जाती हुई एक पगडण्डी दिखी। उसी पर चल दिये। रास्ता भले मालूम नहीं था,दिशा समझ में आ रही थी। उस पगडण्डी पर थोड़ा आगे चले तो पक्की सड़क मिल गयी। यह सड़क एलोरा गुफा परिसर के टिकट काउण्टर के पास स्थित बस–स्टैण्ड से आ रही थी क्योंकि इस पर बसें आती–जाती दिखीं। इस पर थोड़ा आगे बढ़े तो एक तिराहा मिला। इस तिराहे पर रास्ता बताता हुआ दोमुँहे तीर का निशान बना एक बोर्ड लगा था। दाहिनी तरफ गुफा संख्या 29 जबकि बायीं तरफ गुफा संख्या 30-34। अब तक सारा नक्शा मेरी समझ में आ चुका था। अगले पाँच मिनट में हम गुफा संख्या 29 में पहुँच गये। थोड़ी चढ़ाई चढ़नी पड़ी जिसकी वजह से संगीता को मेरे ऊपर गुस्सा अाने लगा। ऐसा अक्सर होता है। मैं इसका अभ्यस्त हो चुका हूँ।
गुफा संख्या 29 काफी बड़ी और सुंदर है। यह एक ऊँचे चबूतरे पर स्थित है जिस पर चढ़ने के लिए सीढ़ियां बनी हुई हैं। वर्तमान में एक रैम्प भी बना दिया गया है। यह गुफा भगवान शिव को समर्पित है। इसे दूमारलेणा के नाम से जाना जाता है। गुफा की दीवार पर अंकित यमुना की प्रतिमा को भ्रमवश पहले सीता समझ लिया गया था जिस कारण इसका नाम सीता की नाहनी अर्थात् सीता के नहाने का स्थान भी पड़ गया। आठवीं शताब्दी में निर्मित इस गुफा का शिल्प अति उत्कृष्ट है। कैलाश मंदिर के बाद यह एलोरा गुफा समूह की दूसरी सबसे बड़ी गुफा है। इसका मुख्य मण्डप 26 स्तम्भों पर आधारित है तथा इसमें उत्तर के मुख्य द्वार के अतिरिक्त पूर्व और पश्चिम में भी द्वार हैं। मण्डप की दीवारों पर विशालकाय मूर्तियों का अंकन किया गया है। गुफा द्वार पर दो विशालकाय सिंह बने हैं। मंदिर के पार्श्व भाग में गर्भगृह है जिसमें शिवलिंग स्थापित है। गर्भगृह के चार प्रवेश द्वार हैं जिनपर द्वारपालों की विशाल मूर्तियां बनायी गयी हैं।
गुफा संख्या 29 के बाद अब हमें गुफा संख्या 30-34 में जाना था।
अगला भाग ः एलोरा–धर्माें का संगम (दूसरा भाग)
समस्या भीड़ से नहीं भीड़ के अंदाज से थी। यदि गुफा की मूर्तियों और चित्रों को सभी लोग बस देख रहे होते तो कोर्इ समस्या नहीं थी लेकिन बुरा हो इस स्मार्टफोन काǃ सेल्फी के जुनून में लाेग भूल जा रहे थे कि उनके आगे–पीछे या फिर अगल–बगल कोई और भी है जो अजंता की गुफाएं देखने आया है। वहाँ तैनात कर्मचारियों का चिल्लाना तो जैसे आशीर्वाद तुल्य था।
तेजी का आलम यह रहा कि हम दोनों केवल 45 मिनट में नहा–धोकर कमरे से निकल लिये। औरंगाबाद के सेन्ट्रल बस स्टेशन पहुँचे तो चालीसगाँव या धुले जाने वाली बस लगी थी। जगह भी अभी काफी खाली थी। कल के अनुभव का फायदा उठाते हुए हमने आटो और छोटी गाड़ी वालों को बिल्कुल ना कर दिया। 7.45 बजे बस भी रवाना हो गयी। औरंगाबाद से एलोरा की दूरी 28 किमी। बस का किराया 40 रूपये। रास्ते में ही औरंगाबाद से 15 किमी की दूरी पर दौलताबाद स्थित है। यहाँ का किला भी हमारे रडार पर था पर अभी नहीं बल्कि लौटते समय। इसके आगे औरंगाबाद से 24 किमी की दूरी पर खुल्दाबाद स्थित है जहाँ औरंगजेब का मकबरा बना है। यहाँ का भद्रा मारूति मंदिर भी काफी प्रसिद्ध है। लेकिन यह भी लौटते समय। इसके अलावा घृष्णेश्वर ज्योतिर्लिंग भी हमारे प्लान में था लेकिन अभी तो एलोरा ही जाना था। लगभग 45 मिनट में अर्थात 8.30 बजे तक हम एलोरा पहुँच गये। जगह–जगह सूचना बोर्ड पर वेरूळ लिखा दिख रहा था। पूछा तो पता चला कि इसका स्थानीय नाम वेरूल ही है। वैसे नाम में क्या रखा है– वेरूल हो या एलोरा। हमें तो यहाँ की गुफाएं देखनी हैं।
एलोरा की गुफाएं मुख्य सड़क के पास ही हैं। बस से उतरने के बाद हम बैरिकेडिंग करके बनाये गये रास्ते से गुफा परिसर में प्रवेश करते हैं। मेन गेट पर भीड़ लगी थी। बहुत से स्थानीय लग रहे लोग गाेला बनाकर खड़े थे। आगे बढ़कर देखा तो दो–तीन बंदर सड़क पर बैठे हुए थे और लोगों द्वारा फेंके गये बिस्कुट वगैरह खा रहे थे। अब हिन्दुस्तान में भीड़ जुटने के लिए इतना तमाशा काफी है। थोड़ा ही आगे टिकट काउण्टर है। टिकट की दर 30 रूपये। टिकट काउण्टर पर लाइन अभी नहीं लगानी पड़ रही थी। वैसे टिकट लेकर आगे बढ़े तो टिकट चेकिंग के लिए लम्बी लाइन लगी थी। टिकट चेकर ने हमें आगे बुला लिया। पता चला कि लाइन में बस से आये हुए स्कूली बच्चे लगे थे। उनका टिकट अभी खरीदा जा रहा था। हम आगे निकले तो बहुत भीड़ दिख रही थी लेकिन कल वाली अजंता जैसी भीड़ नहीं थी। टिकट काउण्टर के पास ही बस स्टैण्ड भी था जहाँ से दूर स्िथत गुफाओं तक बसें पर्यटकों को ले जा रही थीं। वैसे हमने बस पर अधिक ध्यान नहीं दिया और पैदल मार्च करने का इरादा किया। टिकट काउण्टर से सीधे आगे बढ़ने पर ठीक सामने एलोरा का प्रसिद्ध कैलाश मंदिर दिखायी पड़ता है। यह गुफा संख्या 16 में स्थित है। यहाँ से दाहिने क्रमशः गुफा संख्या 15,14 आदि होते हुए गुफा संख्या 1 की ओर रास्ता जाता है जबकि बायें क्रमशः 17,18 होते हुए गुफा संख्या 34 की ओर रास्ता जाता है। हमने गुफा संख्या 1 की ओर जाने वाला रास्ता पकड़ा। तो सबसे गुफा संख्या 15। गुफाओं में भीड़ थी लेकिन इतनी सहूलियत थी कि हम कुछ देर खड़े होकर अपने पसंद की गुफा देख सकते थे और फोटो भी खींच सकते थे।
10 बजे तक हम गुफा संख्या 1 तक पहुँच चुके थे। गुफा संख्या 1 से आगे की ओर रास्ते पर पत्थरों की कटाई–छँटाई करते कुछ कामगार लगे थे। पता नहीं रास्ते की मरम्मत हो रही थी या नये रास्ते का निर्माण हो रहा था। गुफा 1 देखकर हम वापस गुफा संख्या 16 की तरफ लौटे। रास्ते में छोटे–छोटे गिफ्ट आइटम बिक रहे थे। हमने भी कुछ आइटम खरीदे– 100 वाला 30 में और 150 वाला केवल 50 में। अब इतना डिस्काउण्ट हमारे ये घुमक्कड़ दुकानदार ही दे सकते हैं। किसी माॅल वाले के दिल में इतनी उदारता कहाँǃ
प्राचीन काल में एलोरा,वेरूल के नाम से एक तीर्थस्थल के रूप में विख्यात रहा है। एलोरा की 34 गुफाओं का निर्माण 5वीं शताब्दी से लेकर 11वीं शताब्दी के मध्य लगभग 600 वर्षाें तक एलोरा नामक पहाड़ी में चलता रहा। इस महान निर्माण में मुख्य भूमिका राष्ट्रकूट शासकों की रही। एलोरा की गुफाएं सर्वधर्मसमभाव का अद्भुत उदाहरण प्रस्तुत करती हैं। इन गुफाओं में गुफा संख्या 1-12 बौद्ध धर्म से संबन्धित हैं अर्थात् इनमें बौद्ध मठ व विहार बने हुए हैं। गुफा संख्या 13-29 हिन्दू धर्म से संबन्धित हैं तथा गुफा संख्या 30-34 जैन धर्म से संबन्धित हैं। इस तरह एक ही परिसर में तीन धर्माें का संगम एलोरा में होता है। एलोरा का गुफा परिसर औरंगाबाद से धुले की ओर लगभग उत्तर–पश्चिम दिशा में जाने वाले राष्ट्रीय राजमार्ग संख्या 52 पर अवस्थित है। गुफाएं लगभग उत्तर से दक्षिण दिशा में विस्तृत हैं। सर्वाधिक दक्षिणी सिरे पर गुफाओं का सिलसिला गुफा संख्या 1 से शुरू होता है और एक लाइन से गुफा संख्या 29 तक चला जाता है। गुफा संख्या 30-34,जो जैन धर्म से संबन्धित हैं,कुछ हटकर सबसे उत्तरी छोर पर अवस्थित हैं। सर्वाधिक महत्वपूर्ण गुफा संख्या 16 का कैलाश मंदिर,जो हिन्दू धर्म से संबन्धित है,मुख्य परिसर के लगभग बीच में स्थित है तथा अधिकांश पर्यटक इसे ही देखने आते हैं और बहुत लाेग तो केवल इसे देखकर ही एलोरा की गुफा यात्रा को सम्पूर्ण मान लेते हैं।
गुफा संख्या 1 में एक खुला प्रांगण जैसा है जिसमें छोटी–छोटी कोठरियां बनी हुईं हैं जो सम्भवतः ध्यान लगाने के काम आती रही होंगी।
गुफा संख्या 2 एक बौद्ध विहार के रूप में है जिसका निर्माण सम्भवतः आठवीं शताब्दी में हुआ। इसमें एक बरामदे के दोनों ओर कोठरियाँ तथा सभामण्डप के दोनाें ओर बारह स्तम्भों से युक्त कक्ष हैं। पीछे की दीवार में गर्भगृह है जिसमें भगवान बुद्ध व्याख्यान मुद्रा में विराजमान हैं।
गुफा संख्या 3 व 4 भी बौद्ध विहार हैं। इनमें से गुफा संख्या 4 दोमंजिला है।
गुफा संख्या 5 एक भव्य तथा विस्तृत बौद्ध विहार है जिसका निर्माण सम्भवतः सातवीं शताब्दी में हुआ था। इसके मध्य में लम्बाई में विस्तृत गलियारा है जिसमें लम्बाई के अनुदिश दो लम्बे चबूतरे बने हुए हैं जो संभवतः सभागृह या भोजन के काम में आते रहे होंगे। वर्तमान में ये चबूतरे सेल्फी लेने के काम आ रहे हैं। इनके पीछे दोनों ओर स्तम्भों पर टिके बरामदे हैं जिनके पीछे कोठरियां हैं। पीछे की ओर गर्भगृह है जिसमें बोधिसत्व तथा गंधर्व आकृतियों से घिरी भगवान बुद्ध की प्रतिमा व्याख्यान मुद्रा में विराजमान है।
गुफा संख्या 6 भी एक विहार है। इसकी विशिष्टता यह है कि इसमें हिन्दू देवी सरस्वती की मूर्ति दीवार के सहारे अंकित है। गुफा संख्या 7 व 8 में बहुत सारी मूर्तियां हैं फिर भी ये गुफाएं सम्भवतः अपूर्ण हैं।
गुफा संख्या 9 और 10 चैत्य हैं। गुफा संख्या 10 एलोरा की गुफाओं में एकमात्र दुमंजिला चैत्य है। इसका निर्माण सम्भवतः सातवीं शताब्दी में किया गया था। इसका सभामण्डप चापाकार है जो तीस स्तम्भों से युक्त है। सभामण्डप के दोनाें ओर कोठरियों से युक्त बरामदे हैं। एक ही शिलाखण्ड से बने स्तूप पर बोधिसत्व और गंधर्व प्रतिमाओं से घिरी भगवान बुद्ध की प्रतिमा व्याख्यान मुद्रा में स्थापित है। गुफा के ऊपरी तल को संगीतशाला भी कहा जाता है। इस गुफा को सुतार झोंपड़ी भी कहा जाता है।
गुफा संख्या 11 एक बौद्ध विहार है। यह एक तीनमंजिली गुफा है। इस गुफा में कई हिन्दू मूर्तियां भी पायी जाती हैं।
गुफा संख्या 12 भी तीन मंजिला है और इसे तीनताल भी कहते हैं। यह गुफा भी आठवीं शताब्दी की है। यह बौद्ध धर्म से सम्बन्धित अंतिम गुफा है। प्रथम तल पर अनेक स्तम्भों से युक्त सभामण्डप का दृश्य अत्यंत सुंदर दिखता है। दि्वतीय तल पर भी स्तम्भयुक्त मण्डप और कोठरियों का निर्माण किया गया है। गर्भगृह में बुद्ध की सेविका सुजाता द्वारा बुद्ध को खीर अर्पित करने का दृश्य अंकित किया गया है। तृतीय तल पर अनेक मूर्तियों का निर्माण किया गया है।
गुफा संख्या 13 से हिन्दू धर्म से संबन्धित गुफाओं का आरम्भ माना जाता है। इस गुफा में कुछ भी खास नहीं है। इसका उपयोग विश्रामालय या अन्य किसी उद्देश्य से किया जाता रहा होगा।
गुफा संख्या 14 में रावण द्वारा समुद्र मंथन का दृश्य अंकित किये जाने के कारण इसे रावण की खाई नाम से जाना जाता है। गुफा मंदिर में प्राप्त शिल्प तथा गर्भगृह में प्राप्त आधारपीठ के आधार पर माना जाता है कि यह मंदिर संभवतः शक्ति को समर्पित था। गुफा में स्तम्भयुक्त मण्डप तथा प्रदक्षिणापथ बने हैं। गुफा का बाहरी बरामदा चार स्तम्भों पर आधारित है जबकि इसके पीछे 12 स्तंभों पर टिका हुआ मण्डप है। गर्भगृह के चारों ओर प्रदक्षिणापथ है जिसकी उत्तरी तथा दक्षिणी दीवारों पर अनेक पौराणिक आख्यानों व देवी–देवताओं की मूर्तियों का चित्रण किया गया है। मुख्य द्वार पर भी काफी सुंदर अलंकरण किया गया है। सभामण्डप की दीवारों पर अंकित सप्तमातृका का चित्र शक्तिपूजा के बढ़ते वर्चस्व की ओर इंगित करता है। नृत्य करते शिव तथा कैलाश पर्वत उठाते हुए रावण के दृश्य भी अंकित किये गये हैं।
गुफा संख्या 15 में प्रवेश सीढ़ियों के रास्ते है। इसका निर्माण 8वीं शताब्दी में दंतिदुर्ग के शासन काल में किया गया था। गुफा में प्रवेश करते ही सामने एक बड़ा चौकोर मण्डप है जिसे नाट्यमण्डप भी कहा जाता है। यहाँ प्रसिद्ध राष्ट्रकूट राजा दंतिदुर्ग का अभिलेख उत्कीर्णित है। भगवान विष्णु के अवतारों से संबन्धित अंकनों के कारण इस गुफा को दशावतार गुफा के नाम से भी जाना जाता है। यहाँ भगवान विष्णु के दस अवतारों को मूर्तियों द्वारा प्रदर्शित किया गया है। विष्णु द्वारा नृसिंह रूप धारण कर हिरण्यकश्यप का वध किये जाने का दृश्य सुंदर ढंग से अंकित किया गया है। यह गुफा दुमंजिली है जिसका निचला तल स्तम्भों पर आधारित एक हॉल के रूप में है। जबकि ऊपरी तल भगवान शिव को समर्पित है। यहाँ मण्डप में शिव के वाहन नंदी की मूर्ति स्थापित है जबकि गर्भगृह में विशाल शिवलिंग बना है। गर्भगृह के द्वार और सभामण्डप की दीवारों पर सुंदर अलंकरण किया गया है।
गुफा संख्या 16 अर्थात कैलाश मंदिर में भयंकर भीड़ लगी थी। कम से कम इतनी तो थी ही हमारी हिम्मत नहीं पड़ी मंदिर में प्रवेश करने की। वैसे अभी हमारे पास विकल्प था। तो हम गुफा संख्या 17 की ओर बढ़ चले। आश्चर्यजनक रूप से इधर भीड़ काफी कम थी। हम आराम से एक–एक गुफा का निरीक्षण करते और फोटो खींचते हुए आगे बढ़ते रहे। एक–दो जगह जल्दबाजी भी करनी पड़ी क्योंकि पीछे से स्कूली बच्चों का एक समूह टिड्डी दल की भाँति आगे बढ़ता चला आ रहा था।
गुफा संख्या 17 भी एक बड़ी गुफा है। इसमें स्तम्भों पर आधारित एक बड़ा हाॅल है। मुख्य हॉल के प्रवेश द्वार पर ब्रह्मा व विष्णु की मूर्तियां है जबकि गर्भगृह में शिवलिंग स्थापित है। स्तम्भों पर सुंदर आकृतियां उकेरी गयी हैं। वैसे गुफा के प्रवेश द्वार पर एक प्राकृतिक पुल जैसी संरचना बन गयी है जो सर्वाधिक आकर्षण की वस्तु है। हम भी इसकी फोटो लेना चाह रहे थे। लेकिन इस सुंदर स्थान पर कुछ सुंदरियों ने कब्जा कर रखा था। कुछ तरह–तरह की मुद्राओं में सेल्फी ले रही थीं तो कुछ अभी लिपस्टिक और काजल वाली क्रियाओं में व्यस्त थीं। इनको वहाँ से हटाना मुश्किल लग रहा था। मैंने एक उपाय लगाया। गुफा के हॉल में सफाई कर रहे कर्मचारी से इशारों ही इशारों में इन सुंदरियों को बेदखल करने का निवेदन किया। बस फिर क्या था। वह तुरंत अपना झाड़ू लिये मौके पर पहुँच गया। जो काम हमें बहुत कठिन लग रहा था वह कुछ सेकण्डों में हो गया।
गुफा संख्या 17 के बाद की अधिकांश गुफाएं काफी छोटी हैं तथा पथरीले ढलान पर बिल्कुल पास–पास बनी हैं। गुफा संख्या 18 और 19 में केवल शिवलिंग बने हैं। गुफा संख्या 20 में भी कुछ आकृतियां उकेरी गयी हैं।
गुफा संख्या 21 एक महत्वपूर्ण गुफा है। भगवान शिव को समर्पित यह गुफा रामेश्वर के नाम से जानी जाती है। इस गुफा का निर्माण सातवीं शताब्दी में किया गया था। गुफा द्वार के पास एक चबूतरे पर शिव के वाहन नंदी की मूर्ति बनी हुई है। नंदी का चबूतरा अनेक आकृतियों से अलंकृत है। गर्भगृह में शिवलिंग की स्थापना की गयी है। इसके अतिरिक्त कई कोठरियों में हिंदू धर्म से संबन्धित मूर्तियां स्थापित हैं।
गुफा संख्या 22 का नाम नीलकण्ठ है। गर्भगृह में स्थापित शिवलिंग के अलावा इसमें गणेश जी,गजलक्ष्मी और कार्तिकेय की भी मूर्तियां स्थापित हैं। एक छोटे से चबूतरे पर नंदी की मूर्ति भी विराजमान है।
गुफा संख्या 23 व 24 में बिल्कुल पास–पास स्थित कई गुफाएं सम्मिलित हैं। इन्हें गणेश गुफा समूह कहा जाता है। इनका शिल्प साधारण है। सभी गुफाओं के गर्भगृह में शिवलिंग स्थापित है। इस समूह की सबसे बड़ी विशिष्टता यह है कि यहाँ एक गुफा में ब्रह्मा,विष्णु और शिव की एक संयुक्त मूर्ति है जिसे त्रिमूर्ति भी कहा जाता है।
गुफा संख्या 25 एक बड़ी गुफा है और एक चबूतरे पर बनी है। इसमें हिन्दू धर्म से संबन्धित धन के देवता कुबेर की मूर्ति स्थापित है। गुफा के गर्भगृह में कोई शिवलिंग नहीं है। गुफा संख्या 26 में दो नारी द्वारपालों के साथ एक शिवलिंग स्थापित है। इसके स्तम्भों पर बहुत ही सुंदर कारीगरी की गयी है।
गुफा संख्या 27 में कई हिंदू मूर्तियां प्रदर्शित हैं। बायीं ओर वाराह अवतार,महिषासुरमर्दिनी तथा ब्रह्मा,विष्णु व शिव की मूर्तियां बनी हैं जबकि दायीं ओर बलराम और श्रीकृष्ण की मूर्तियां हैं। इसके अलावा शेषनाग के ऊपर भगवान विष्णु की मूर्ति भी प्रदर्शित है।
गुफा संख्या 27 के पास जाकर रास्ता बन्द हो गया। गुफाएं तो आगे भी दिख रहीं थी लेकिन उनका रास्ता पत्थर वगैरह गिरने से क्षतिग्रस्त हो चुका था तथा क्षतिग्रस्त रास्ते से बिल्कुल सटे हुए नीचे दिखता तालाब किसी अन्य रास्ते की सम्भावनाओं को भी खत्म कर रहा था। आस–पास दर्शक तो काफी थे लेकिन रास्ता बताने वाला कोई नहीं दिख रहा था। लेकिन हम भी कहाँ हार मानने वाले थे। थोड़ा सा पीछे लौटे तो दायीं ओर नीचे उतरकर जाती हुई एक पगडण्डी दिखी। उसी पर चल दिये। रास्ता भले मालूम नहीं था,दिशा समझ में आ रही थी। उस पगडण्डी पर थोड़ा आगे चले तो पक्की सड़क मिल गयी। यह सड़क एलोरा गुफा परिसर के टिकट काउण्टर के पास स्थित बस–स्टैण्ड से आ रही थी क्योंकि इस पर बसें आती–जाती दिखीं। इस पर थोड़ा आगे बढ़े तो एक तिराहा मिला। इस तिराहे पर रास्ता बताता हुआ दोमुँहे तीर का निशान बना एक बोर्ड लगा था। दाहिनी तरफ गुफा संख्या 29 जबकि बायीं तरफ गुफा संख्या 30-34। अब तक सारा नक्शा मेरी समझ में आ चुका था। अगले पाँच मिनट में हम गुफा संख्या 29 में पहुँच गये। थोड़ी चढ़ाई चढ़नी पड़ी जिसकी वजह से संगीता को मेरे ऊपर गुस्सा अाने लगा। ऐसा अक्सर होता है। मैं इसका अभ्यस्त हो चुका हूँ।
गुफा संख्या 29 काफी बड़ी और सुंदर है। यह एक ऊँचे चबूतरे पर स्थित है जिस पर चढ़ने के लिए सीढ़ियां बनी हुई हैं। वर्तमान में एक रैम्प भी बना दिया गया है। यह गुफा भगवान शिव को समर्पित है। इसे दूमारलेणा के नाम से जाना जाता है। गुफा की दीवार पर अंकित यमुना की प्रतिमा को भ्रमवश पहले सीता समझ लिया गया था जिस कारण इसका नाम सीता की नाहनी अर्थात् सीता के नहाने का स्थान भी पड़ गया। आठवीं शताब्दी में निर्मित इस गुफा का शिल्प अति उत्कृष्ट है। कैलाश मंदिर के बाद यह एलोरा गुफा समूह की दूसरी सबसे बड़ी गुफा है। इसका मुख्य मण्डप 26 स्तम्भों पर आधारित है तथा इसमें उत्तर के मुख्य द्वार के अतिरिक्त पूर्व और पश्चिम में भी द्वार हैं। मण्डप की दीवारों पर विशालकाय मूर्तियों का अंकन किया गया है। गुफा द्वार पर दो विशालकाय सिंह बने हैं। मंदिर के पार्श्व भाग में गर्भगृह है जिसमें शिवलिंग स्थापित है। गर्भगृह के चार प्रवेश द्वार हैं जिनपर द्वारपालों की विशाल मूर्तियां बनायी गयी हैं।
गुफा संख्या 29 के बाद अब हमें गुफा संख्या 30-34 में जाना था।
गुफा संख्या 5 |
गुफा संख्या 5 |
गुफा संख्या 5 |
गुफा संख्या 5 की छत से गिरता एक छोटा सा झरना |
गुफा संख्या 5 |
गुफा संख्या 2 |
गुफा संख्या 2 |
गुफा संख्या 2 |
गुफा संख्या 2 |
गुफा संख्या 2 |
गुफा संख्या 7 व 8 |
गुफा संख्या 7 व 8 |
गुफा संख्या 10 |
गुफा संख्या 10 |
गुफा संख्या 11 |
गुफा संख्या 12 |
गुफा संख्या 12 |
गुफा संख्या 12 |
गुफा संख्या 14 |
गुफा संख्या 14 |
गुफा संख्या 14 |
गुफा संख्या 14 |
गुफा संख्या 15 |
गुफा संख्या 15 |
गुफा संख्या 15 |
गुफा संख्या 15 का प्रवेश द्वार |
गुफा संख्या 17 |
गुफा संख्या 19 |
गुफा संख्या 19 |
गुफा संख्या 21 |
गुफा संख्या 22 |
गुफा संख्या 24 |
गुफा संख्या 26 |
गुफा संख्या 27 |
गुफा संख्या 27 |
गुफा संख्या 29 |
गुफा संख्या 29 |
गुफा संख्या 29 |
गुफा संख्या 29 |
गुफा संख्या 29 |
गुफा संख्या 29 |
सम्बन्धित यात्रा विवरण–
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